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Monday, 17 December 2018
Sunday, 16 December 2018
निर्भया 16/12/12
16 दिसम्बर
समय कब करवट ले ले,पता ही नहीं चलता।शायद इसीलिए कहा जाता है,
किस घड़ी क्या घटना है,ये उस घड़ी को भी पता नहीं होता।।
प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक के लिए अयोध्या में तैयारियां होनी शुरू ही हुई थी,
कि तभी घड़ी बदली और प्रभु श्री राम को,
राजसी वस्त्रों की जगह,मुनियों के वस्त्र पहनने पड़े
राजसिंहासन की जगह,कुसासन पर बैठना पड़ा।
एक ही तारीख में,एक ही पल में कब क्या हो जाये इसका किसी को भान नहीं होता।
वही समय किसी के जीवन में खुशियों की सौगात लेकर आता है,
तो किसी अन्य के जीवन में अभिशाप।।
16/12/1971 इतिहास में वर्णित वीरता का वह स्वर्णिम इतिहास,जिसे विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
क्योंकि इस दिन भारतीय सेना ने अपने पराक्रम व शौर्य से पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण के लिए घुटने टेकने को मजबूर कर दिया था,और बंग्लादेश को आजाद करा दिया था।।
भारत की सेना समय-समय पर अपने अदम्य साहस का परिचय देती रही है।।
तारीख वही पर घटना नई
16/12/12
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम विजय दिवस की बधाइयां दे रहे थे,पूरा दिन हँसी-खुशी गुजरा था,क्योंकि रविवार था,तो सब पूरा दिन साथ में ही रहे।।
शाम को न्यूज देखने के लिए जैसे ही टीवी खोली,
सब चैनलों पर एक ही खबर चल रही थी,
"दिल्ली के मुनीरका में सामूहिक बलात्कार"
हर चैनल अपनी-अपनी तरह से खबर को दिखा रहा था,
लोग अपनी तरह से घटना को देख रहे थे,
जहां कुछ लोग बलात्कारियों को दोषी ठहरा रहे थे,वहीं कुछ निर्भया व उसके दोस्त के साथ घूमने को,
कुछ निर्भया के कपड़ो पर टिप्पड़ी कर रहे थे,तो कुछ दोषियों के पकड़े जाने की दुआ कर रहे थे।
जैसे जैसे पुलिस व अस्पताल से रिपोर्ट सामने आ रही थी,
रौंगटे खड़े हो रहे थे,
एक छोटी सी रिपोर्ट संलग्न कर रहे हैं,जो कि जांच के मुख्य पहलू रहे-
आज इस घटना को 6वर्ष पूरे हो गए।।
हर कोई उस घटना की निंदा करता है,
हर कोई आरोपियों को फांसी पर देखना चाहता है,
हर कोई आरोपियों को फांसी पर देखना चाहता है,
फिर समझ में ये नहीं आता,कि ऐसी घटनायें आजतक रुक क्यों नहीं पा रही?
क्यों दानव खुले घूम रहे?
ऐसी घटनाएं मन मस्तिष्क पर ऐसा आघात पहुंचाती हैं,जिनसे निकलना मुश्किल हो जाता है,क्यों दानव खुले घूम रहे?
एक अजीब सी सिहरन होती है सोचकर।
घटना के बाद कैंडल मार्च होता है,
जिसका औचित्य मुझे आजतक समझ नहीं आया।
लोग 1-2घण्टे का समय निकालकर कैंडल मार्च में जाते हैं,और सोच लेते हैं कि उनकी जिम्मेदारी समाप्त।।
दोस्तों ये कैंडल मार्च अपने आसपास के अंधेरे को भी नहीं मिटा पाता।
इससे बेहतर होगा कि आप अपना वो समय लोगों को जागरूक करने में लगाएं।
तब जो प्रकाश होगा,वो हजारों कैंडल के प्रकाश से भी अधिक होगा।
एक कोशिश कीजिये,
अपने आसपास के हर खुराफाती इंसान पर नजर रखिये,
कोशिश कीजिये कि वो नेक रास्ता अपना सके।
दोस्तों जब हम अपने आसपास से अंधकार को समाप्त करने की कोशिश करेंगे,शायद तब ही
बुराईयों की रात छंटेगी,
अच्छाईयों का सूर्य उदय होगा,
न फिर कोई निर्भया होगी,
न फिर कोई समय कलंकित होगा।।
प्रकाश का दीप जलाइए,
अफसोस की कैंडल नहीं!!
समाज सुधार में अपना योगदान दीजिये,
अपने लिए तो सभी जीते हैं,
जीवन के कुछ क्षण परोपकार में भी लगाइए,
आइये ये शपथ लें,कि किसी भी लड़की को उपभोग की नजर से नहीं देखेंगे,
इंसानियत की नजर से देखिये,फिर देखिए जीवन स्वयं सुखमय बन जायेगा।
जो कहते हैं,"जीवन में सुकून नहीं है"
एक बार कुछ अच्छा करके देखिए,
सुकून चलके आपके पास आएगा।।
वैसे भी गलत नजर से किसी को देखकर बद्दुआएं देने से बेहतर है,
इज्जत देकर दुआएं लेना।।
और दुआओं का असर तो आपको दुआएं मिलने के बाद ही समझ आएगा।।
धन्यवाद🙏
अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में अपना नाम लिखकर दें।
Wednesday, 12 December 2018
Tuesday, 11 December 2018
Tuesday, 4 December 2018
4th Part The Feeling Of Heart
Love,"The Feeling Of Heart"
लव द फीलिंग ऑफ हार्ट का ये चौथा पोस्ट है,
जैसा कि प्रत्येक अंक में बताया कि प्यार कोई ढाई अक्षर का लिखा,पढ़ा या कहा गया शब्द नहीं है,
ये वो फीलिंग है जिसे बेजुबान जता सकता है,अंधा व्यक्ति भी महसूस कर सकता है,
यहां तक कि जानवर भी इंसान के प्यार को समझते हैं,जताते हैं,
पहले व दूसरे भाग में आपने क्रमशः माता के प्यार व पिता के प्यार के बारे में जाना।जहां माता की तुलना धरती व पिता की तुलना आकाश से की गई है।माँ-बाप अपनी पूरी जिंदगी अपनी औलाद को पढाने औऱ काबिल बनाने में लगा देते हैं।वहीं तीसरे भाग में आपने भाई-भाई/बहिन-बहिन/भाई-बहिन के प्यार के बारे में पढ़ा।
दोस्तों आपने मेरे सभी पोस्ट्स को भरपूर प्यार दिया,इसके लिए हम आपके आभारी हैं।
आज के ब्लॉग में हम आपको पति-पत्नी के प्यार के बारे में बताएंगे।
शादी के बाद शुरू होता है इस प्यार का प्यारा सा सफर!
क्योंकि यहां आपके साथ होता है आपका हमसफ़र!!
ये प्यार का वो रिश्ता होता,जिसमें हर इंसान प्यार देखता है,
प्यार देखना चाहता है,
प्यार को महसूस करना चाहता है।
जोड़ा(pair) किसी का भी हो,
पक्षी हो,जानवर हो या फिर इंसान...हर कोई इनको साथ ही देखना चाहता है।
दोस्तों किसी भी रिश्ते में मतभेद हों तो हों,
पर मनभेद कभी नहीं होने चाहिए।।
ये एक ऐसा रिश्ता है जो दो परिवारों को जोड़ता है व नए रिश्तों की नींव रखता है।
शादी विभन्न धर्मों में,विभिन्न जातियों में,विभिन्न देशों में,विभन्न सम्प्रदाओं में अलग-अलग तरह से होती है,पर निष्कर्ष सभी का एक ही होता है,
दो लोगों का ज़िंदगी भर के लिए एक होना।
इस रिश्ते में हर कोई ये मान के चलता है,कि प्यार तो होगा ही,
और मेरा मानना है,"प्यार होना ही चाहिए"
क्योंकि असल मायने में सिर्फ यही रिश्ता,
तन,मन,धन तीनों से जुड़ता है।।
हमारे देश में 60% लोग अभी भी एक अनजान इंसान को ही अपना साथी बनाते हैं,
घर,परिवार की पसन्द को ही मान्यता देते हुए शादी के बंधन में बंधते हैं,फिर प्यार,स्नेह व भरोसे से इस रिश्ते को सींचते हैं।
इस रिश्ते में हम पति-पत्नी के प्यार को एक साथ ही लिखेंगे,
क्योंकि जो रिश्ता ही जोड़ से बनता है, उसको घटाकर या हटाकर;मेरा मतलब अलग-२ नहीं लिखा जा सकता।
ये प्यार का वो रिश्ता होता,जिसमें हर इंसान प्यार देखता है,
प्यार देखना चाहता है,
प्यार को महसूस करना चाहता है।
जोड़ा(pair) किसी का भी हो,
पक्षी हो,जानवर हो या फिर इंसान...हर कोई इनको साथ ही देखना चाहता है।
दोस्तों किसी भी रिश्ते में मतभेद हों तो हों,
पर मनभेद कभी नहीं होने चाहिए।।
ये एक ऐसा रिश्ता है जो दो परिवारों को जोड़ता है व नए रिश्तों की नींव रखता है।
शादी विभन्न धर्मों में,विभिन्न जातियों में,विभिन्न देशों में,विभन्न सम्प्रदाओं में अलग-अलग तरह से होती है,पर निष्कर्ष सभी का एक ही होता है,
दो लोगों का ज़िंदगी भर के लिए एक होना।
इस रिश्ते में हर कोई ये मान के चलता है,कि प्यार तो होगा ही,
और मेरा मानना है,"प्यार होना ही चाहिए"
क्योंकि असल मायने में सिर्फ यही रिश्ता,
तन,मन,धन तीनों से जुड़ता है।।
हमारे देश में 60% लोग अभी भी एक अनजान इंसान को ही अपना साथी बनाते हैं,
घर,परिवार की पसन्द को ही मान्यता देते हुए शादी के बंधन में बंधते हैं,फिर प्यार,स्नेह व भरोसे से इस रिश्ते को सींचते हैं।
इस रिश्ते में हम पति-पत्नी के प्यार को एक साथ ही लिखेंगे,
क्योंकि जो रिश्ता ही जोड़ से बनता है, उसको घटाकर या हटाकर;मेरा मतलब अलग-२ नहीं लिखा जा सकता।
पति-पत्नी का प्यार
शादी विभिन्न धर्मों में अलग-2 रीति-रिवाजों से होती है,
पर सबसे खूबसूरती ये रिश्ता जुड़ता है,हिन्दू रीति रिवाज से।
जहां तेल,हल्दी,मेंहदी जैसे रिवाज दुल्हा व दुल्हन की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं,
वहीं जयमाला-फेरे जैसे रिवाज रंग जमा देते हैं,
फिर विदाई की रीति,
जहां से शुरू होती है,नई जिंदगी,नई प्रीति
शायद इसीलिए सदियों से चली आ रही है ये रीति।।
दोस्तों द फीलिंग ऑफ हार्ट के हर एक अंक की व्याख्या हमने रामायण के माध्यम से की है,
तो उसी श्रंखला में आगे बढ़ते हैं-
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥
जिस दिन से भगवान राम जी विवाह करके घर आये हैं, उस दिन से अयोध्या में रोज मंगलगीत व बधाई गीत गाये जा रहे हैं।
भगवान राम जी ने सीता जी को उपहार स्वरूप एक वचन दिया था,कि वो कभी दूसरी शादी नहीं करेंगे।
कुछ दिन बीते,
राम को राज्याभिषेक से पहले माता कैकेयी ने उन्हें वनवास दे दिया,सीता जी पतिव्रता स्त्री थी।
ऐसी कठिन घड़ी में ही पत्नी के प्रेम व धैर्य की परीक्षा होती है।
जो हमेशा महलों में रहीं, हमेशा सुख सुविधाओं में रहीं,
राजकुमारी बनकर रहीं, जनकदुलारी बनकर रहीं,
वो सीता माता आज पति के साथ वन जाने को तैयार हो गयीं,
यद्यपि श्री राम जी उनको चलने से मना किया,
पर जो कठिन समय में पति के साथ न चल सके,वो पत्नी नहीं हो सकती।
"जो पति के पतन में भी साथ रहे,वो पत्नी"
14साल का वनवास मिला था प्रभु राम को,
13वर्ष तक हर तरह से माता सीता,प्रभु राम के साथ रहीं।
इस दौरान प्रभु राम व लक्ष्मण जी ने कई राक्षसों का वध किया,
वन में आने के बाद,राम जी ने प्रतिज्ञा की थी,
"निश्चर हीन करूँ महि,भुज उठाये प्रण कीन"
एक दिन सुपर्णखा ने प्रभु राम से विवाह का प्रस्ताव रखा,जिसे राम जी ने ये कहकर ठुकरा दिया कि उनके साथ उनकी पत्नी जानकी हैं, वो चाहें तो लक्ष्मण जी से विवाह कर ले।
लक्ष्मण जी ने भी प्रस्ताव ठुकरा दिया,
तो वो सीता माता को मारने के लिए आगे बढ़ी,
ये देख लक्ष्मण जी ने उसके नाक कान काट दिए।
जिसका बदला लेने के लिए ,रावण ने सीता माता का हरण कर लिया।
प्रभु राम को जब ये ज्ञात हुआ कि सीता माता रावण की लंका में हैं,
तो उन्होंने हनुमान जी,सुग्रीव,अंगद व जामवंत की मदद से लंका पर आक्रमण की योजना बनाई।
चूंकि लंका जाने के लिए विशाल समुद्र को पार करना पड़ता था,
राम जी के पास न कोई विमान था,न ही मायावी सेना।
तो नल-नील की मदद से प्रभु राम ने भारत को लंका से जोड़ने के लिए पुल का निर्माण कराया,
जिसे रामसेतु के नाम से हम सभी जानते हैं।
दोस्तों इससे बढ़ा प्यार का प्रतीक दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
जो स्वयं अयोध्या के राजा हैं,
जिन्होंने पंपापुर जीतकर सुग्रीव को दे दिया,
लंका जीतकर विभीषण को दे दी,
जो चक्रवर्ती राजा हैं,
उन्होंने अपने रिश्ते को खोने नहीं दिया,
दूसरा विवाह नहीं किया,
पति का धर्म यही होता है,
पत्नी की रक्षा करना
जो कि प्रभु राम ने बखूबी निभाया।
राम जी को आदर्श इसीलिए माना गया है,
क्योंकि वो श्रेष्ठ बेटे,श्रेष्ठ भाई, श्रेष्ठ पति व श्रेष्ठ पिता हैं,
जगतपिता हैं वो।।
जो तोड़कर भी जोड़ दे है, वो हैं श्री राम
धनुष तोड़कर रिश्ता जोड़ा,
पुल बनाकर,रिश्तों के बीच पुल बांध दिया।
प्यार की डोर एक पुल की भांति ही होती है,
जो दो दिलों को जोड़े रहती है।
भगवान राम जी ने सीता जी को उपहार स्वरूप एक वचन दिया था,कि वो कभी दूसरी शादी नहीं करेंगे।
कुछ दिन बीते,
राम को राज्याभिषेक से पहले माता कैकेयी ने उन्हें वनवास दे दिया,सीता जी पतिव्रता स्त्री थी।
ऐसी कठिन घड़ी में ही पत्नी के प्रेम व धैर्य की परीक्षा होती है।
जो हमेशा महलों में रहीं, हमेशा सुख सुविधाओं में रहीं,
राजकुमारी बनकर रहीं, जनकदुलारी बनकर रहीं,
वो सीता माता आज पति के साथ वन जाने को तैयार हो गयीं,
यद्यपि श्री राम जी उनको चलने से मना किया,
पर जो कठिन समय में पति के साथ न चल सके,वो पत्नी नहीं हो सकती।
"जो पति के पतन में भी साथ रहे,वो पत्नी"
14साल का वनवास मिला था प्रभु राम को,
13वर्ष तक हर तरह से माता सीता,प्रभु राम के साथ रहीं।
इस दौरान प्रभु राम व लक्ष्मण जी ने कई राक्षसों का वध किया,
वन में आने के बाद,राम जी ने प्रतिज्ञा की थी,
"निश्चर हीन करूँ महि,भुज उठाये प्रण कीन"
एक दिन सुपर्णखा ने प्रभु राम से विवाह का प्रस्ताव रखा,जिसे राम जी ने ये कहकर ठुकरा दिया कि उनके साथ उनकी पत्नी जानकी हैं, वो चाहें तो लक्ष्मण जी से विवाह कर ले।
लक्ष्मण जी ने भी प्रस्ताव ठुकरा दिया,
तो वो सीता माता को मारने के लिए आगे बढ़ी,
ये देख लक्ष्मण जी ने उसके नाक कान काट दिए।
जिसका बदला लेने के लिए ,रावण ने सीता माता का हरण कर लिया।
प्रभु राम को जब ये ज्ञात हुआ कि सीता माता रावण की लंका में हैं,
तो उन्होंने हनुमान जी,सुग्रीव,अंगद व जामवंत की मदद से लंका पर आक्रमण की योजना बनाई।
चूंकि लंका जाने के लिए विशाल समुद्र को पार करना पड़ता था,
राम जी के पास न कोई विमान था,न ही मायावी सेना।
तो नल-नील की मदद से प्रभु राम ने भारत को लंका से जोड़ने के लिए पुल का निर्माण कराया,
जिसे रामसेतु के नाम से हम सभी जानते हैं।
दोस्तों इससे बढ़ा प्यार का प्रतीक दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
जो स्वयं अयोध्या के राजा हैं,
जिन्होंने पंपापुर जीतकर सुग्रीव को दे दिया,
लंका जीतकर विभीषण को दे दी,
जो चक्रवर्ती राजा हैं,
उन्होंने अपने रिश्ते को खोने नहीं दिया,
दूसरा विवाह नहीं किया,
पति का धर्म यही होता है,
पत्नी की रक्षा करना
जो कि प्रभु राम ने बखूबी निभाया।
राम जी को आदर्श इसीलिए माना गया है,
क्योंकि वो श्रेष्ठ बेटे,श्रेष्ठ भाई, श्रेष्ठ पति व श्रेष्ठ पिता हैं,
जगतपिता हैं वो।।
जो तोड़कर भी जोड़ दे है, वो हैं श्री राम
धनुष तोड़कर रिश्ता जोड़ा,
पुल बनाकर,रिश्तों के बीच पुल बांध दिया।
प्यार की डोर एक पुल की भांति ही होती है,
जो दो दिलों को जोड़े रहती है।
सत्यवान-सावित्री-
सावित्री एक राजकुमारी थी और सत्यवान लकड़हारा।
सावित्री के पिता उनके लिए योग्य वर की तलाश करके थक गए थे,तो उन्होंने सावित्री से कहा कि वो स्वयं वर चुन लें।
सावित्री इसी तलाश में निकली तो सत्यवान से बहुत प्रभावित हुईं
उनका विवाह कर दिया गया।
सत्यवान ने शादी से पहले ही बता दिया था कि उनकी आयु केवल एक साल शेष बची है,
तब भी सावित्री ने उनसे विवाह किया।
जब यमराज सत्यवान को लेने आये,
तो उन्होंने यमराज से कहा कि वो उन्हें भी साथ ले चलें,
यमराज ने उनसे मना कर दिया
ऐसे में जब सावित्री अपनी जिद पर आ गईं,तो यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस कर दिए।
ऐसे एक पत्नी का प्रेम मौत के मुंह से उसके पति को वापस ले आया।।
शिव-पार्वती-
भगवान शिव माता पार्वती से अगाध प्रेम करते हैं,
शिव अमर हैं,जबकि माता पार्वती ने हर जन्म में उन्ही का वरण किया।
शिव के गले में जो मुंडों की माला है, वो पार्वती जी के ही हर जन्म का शीश है।
माता पार्वती की मृत्यु के उपरांत,शिव जी उनके शीश को माला में लगाकर पहने रहते थे।
और जब तक माता से पुनः विवाह नहीं होता,वो समाधी में ही रहते थे।
शिव-पार्वती का प्रेम अमर है।
जयमाला सबसे पहले शिव-पार्वती ने ही डाली थी।अर्धनारीश्वर का रूप भी इसीलिए दिखाया गया है।
शिव अमर हैं,जबकि माता पार्वती ने हर जन्म में उन्ही का वरण किया।
शिव के गले में जो मुंडों की माला है, वो पार्वती जी के ही हर जन्म का शीश है।
माता पार्वती की मृत्यु के उपरांत,शिव जी उनके शीश को माला में लगाकर पहने रहते थे।
और जब तक माता से पुनः विवाह नहीं होता,वो समाधी में ही रहते थे।
शिव-पार्वती का प्रेम अमर है।
जयमाला सबसे पहले शिव-पार्वती ने ही डाली थी।अर्धनारीश्वर का रूप भी इसीलिए दिखाया गया है।
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धन्यवाद🙏
Saturday, 17 November 2018
भारतीय त्यौहार- दीपावली
🕯️दीपावली🕯️
दीपावली भारत में सनातन परम्परा का वो त्यौहार,जो हर तरह के व्यवहार को अपने आप में समाहित किए हुए है,फिर चाहे वो वैज्ञानिक हो या आध्यात्मिक👉
जहां एक तरफ लोग अपने घरों की सफाई,रंगाई,पुताई करते हैं; वहीं दूसरी तरफ स्वादिष्ट पकवान इसकी मिठास को कई गुना और बढ़ा देते हैं।
ये त्यौहार ऐसे समय पड़ता है,
जब वर्षा ऋतु के बाद कई तरह के विषैले कीट उतपन्न हो जाते हैं,तो दीपक की लौ से उनका खात्मा हो जाता है।
इतना ही नहीं,इस समय धान की फसल की कटाई शुरू हो जाती है,तो धान की खील से पूजा इत्यादि भी हो जाती है।।
दोस्तों हमारे हर बड़े से बड़े व छोटे से छोटे त्यौहार के पीछे एक वैज्ञानिक व आध्यात्मिक कारण अवश्य होता है।
दीपावली का आध्यात्मिक कारण-
भगवान राम की पत्नी जानकी का हरण लंकापति रावण ने कर लिया था,हालांकि सीता माता अत्यंत साहसी,बुद्धिमान महिला थी,
यदि सीता माता चाहतीं तो रावण को स्वयं भी दंड दे सकती थी,पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
ये सीता माता के प्रताप का ही असर था कि रावण ने माता सीता को छूने का दुस्साहस नहीं किया।
सीता माता के प्रताप से राजा जनक भली भांति परिचित थे।
बचपन की बात है,माता सीता ने महाराज जनक को खीर परोसी,
राजा जनक खीर खा ही रहे थे कि तभी माता सीता की नजर खीर में पड़े तिनके पर पड़ी,तो उन्होंने उस तिनके को गुस्से से देखा,वो तिनका देखते ही जल गया।
ये बात जनक जी ने समझ ली,और माता सीता को कहा कि क्रोध में वो किसी की तरफ न देखें,क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो उसका हस्र भी तिनके के समान ही होगा।
यदि माता सीता चाहतीं तो रावण को भी अपनी क्रोधाग्नि से जला सकती थी,पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
रावण जो कि महान ज्ञानी था,
जिसने सीता स्वयंवर के समय ही राम भगवान से कह दिया था,
"हे राम तुम्हारी वाम भृकुटि में पिता मरण वनवास लिखा,
दिस दक्ष दाहिनी दक्षिण में,इस लंकापति का नाश लिखा"
ऐसा विदित होने के बावजूद वो इस सच को समझ नहीं पाया कि सीता हरण करके उसने अपने विनाश की गाथा स्वयं लिख ली थी,
यूँ तो रावण को अंगद,हनुमान,लक्ष्मण सभी परास्त कर सकते थे पर उसका मरना नियति ने राम के हाथों ही लिखा था।
परिस्थितियां वैसी ही बनती गयी,निस्तारण भी वैसे ही होता रहा।
रावण का वध श्री राम जी ने किया,
और सीता माता को,लक्ष्मण जी के साथ सकुशल वापस अयोध्या लेकर आये।।
जब अयोध्या के लोगों को पता चला कि प्रभु राम,उनके होने वाले राजा वापस आ गए हैं, तो उन्होंने इस खुशी में दीपक जलाये, तभी से प्रतिवर्ष दीवाली मनाई जा रही है।।
जब अयोध्या के लोगों को पता चला कि प्रभु राम,उनके होने वाले राजा वापस आ गए हैं, तो उन्होंने इस खुशी में दीपक जलाये, तभी से प्रतिवर्ष दीवाली मनाई जा रही है।।
दीपावली का वैज्ञानिक महत्व-
सनातन धर्म में हर त्यौहार की पूजा पद्धति,भोजन सब कुछ वैज्ञानिक ढंग से ही होती है,
दीवाली पर धान की फसल की कटाई हो चुकी होती है।
चूंकि पहले मकान कच्चे होते थे,तो उनकी साफ सफाई,रंगाई पुताई कर दी जाती है,क्योंकि गांव में फसल को खेत से घर मे लाना होता है,
औऱ वर्षा के कारण,कीट-पतंग अधिक हो जाते हैं तो साफ सफाई से उनका भी खात्मा हो जाता है।
वैज्ञानिक कारणों से ही तेल के दीपक जलाने का चलन है।
सरसों का शुध्द तेल प्रदूषण को अवशोषित कर लेता है।
दूसरा कारण यह भी है,कि कुछ किसान धान के बजाय सरसों की खेती कर लेते हैं।
और हमारे देश की परंपरा रही है कि हम हर वस्तु को पहले भगवान को अर्पित करते हैं।
तो धान व सरसों की फसल की पूजा दीवाली पर हो जाती है।।
क्योंकि दीवाली के समय मौसम बदल चुका होता है,तो मिठाइयां एक दूसरे को देते हैं,
रसगुल्ला,गुलावजामुन,बालूशाही,इमरती,पूड़ी,कचौड़ी और न जाने कितने ही पकवान बनते हैं।।
हर त्यौहार के पकवान ऋतु के हिसाब से ही बनाये जाते हैं।
यही खूबसूरती है हमारे धर्म की,
यहां कोई चीज थोपी नहीं गयी,विज्ञान के हर पहलू को ध्यान में रखकर,हमारे ऋषियों ने शोध किये,
और पूजा पद्धति के माध्यम से सबकुछ आसान कर दिया।
अगर ये चीजें थोपी जातीं तो शायद हर कोई इसका पालन न करता,पर इतनी सरलता से सब कुछ आस्था से जोड़ के बताया,तो समाज के हर वर्ग ने खुशी से अपनाया।।
दोस्तों ये आर्टिकल आपको कैसा लगा,
अपना सुझाव नीचे दिए कमेंट बॉक्स में अवश्य दें,
अपना नाम भी कमेंट के साथ लिखें।।
To Be Continued
Wednesday, 31 October 2018
3rd Part The Feeling Of Heart
Love,"The Feeling Of Heart"
दोस्तों "द फीलिंग ऑफ हार्ट"के पहले व दूसरे भाग को आपने खूब सराहा,भरपूर प्यार व आशीर्वाद मिला।।
प्यार कहने को भले ही ढाई आखर से मिलकर बना है,पर इसे पाने में,जताने में,करने में पूरी जिंदगी लग जाती है।
पहले व दूसरे भाग में आपने क्रमशः माता के प्यार व पिता के प्यार के बारे में जाना।जहां माता की तुलना धरती व पिता की तुलना आकाश से की गई है।माँ-बाप अपनी पूरी जिंदगी अपनी औलाद को पढाने औऱ काबिल बनाने में लगा देते हैं।।
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुये आज हम भाई-भाई-/बहिन-भाई/बहिन-बहिन के प्यार के बारे में बताने जा रहे हैं।
यूँ तो कुदरत हमें बहुत कुछ देती है,पर हम उसकी कद्र नहीं कर पाते,उसी तरह मां-बाप हमें ऐसा बहुत कुछ दे देते हैं,जो हम पूरी जिंदगी नहीं कमा सकते।
ऐसा ही अनमोल उपहार होते हैं भाई-बहिन/सहोदर के रिश्ते।।
दो कहानियों के माध्यम से आपको इन अनमोल रिश्तों के बारे में बताते हैं-:
१-भाई-भाई का रिश्ता
राम जी चार भाई थे-
राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुहन
राम जी सबसे बड़े व सभी के अत्यंत प्रिय थे,सभी भाइयों की शिक्षा-दीक्षा एक साथ हुई।विद्या ग्रहण करने के कुछ समय उपरांत ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास सहायता के लिए पहुंचे,
(ऋषि विश्वामित्र जब यज्ञ करते थे,तो राक्षस उसमें हड्डियां डाल जाते थे,सन्तों को मारते थे,अनेक प्रकार से यज्ञ में विघ्न डालते थे)
उनकी सहायतार्थ प्रभु राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ ऋषिवर के साथ चले गए,
जहां उन्होंने राक्षसों को मारा व यज्ञ/धर्म की रक्षा की।
इसके बाद ऋषिवर राम-लक्ष्मण जी को सीता स्वयंवर में लेकर गए,जहां प्रभु राम ने धनुष को तोड़ा और सीता जी से उनका विवाह हो गया।उसके बाद सीता जी की बहिनों का विवाह राम जी के भाइयों से हो गया।
राम-सीता
भरत-मांडवी
लक्ष्मण-उर्मिला
शत्रुहन-श्रुतिकीर्ति
विवाह उपरांत सब अयोध्या आ गए,ततपश्चात राम को राजा बनाने को बात हुई,दिन भी तय हो गया,
उधर नियति को कुछ और ही मंजूर था,
सुबह राम को राजा बनाया जाना था,
पर शाम को ही रानी कैकेयी ने दो वरदान मांगकर सब के अरमानों पर ये कहकर पानी फेर दिया,कि
राम को वनवास व भरत को राज्यपाठ दिया जाएगा।।
अब कथा शुरू होती है भाइयों के प्रेम की-
चूंकि सिर्फ राम जी को वनवास दिया गया था,परन्तु लक्ष्मण जी ने अविलंब साथ चलने को अनुमति मांगी,राम जी ने काफी समझाया पर लक्ष्मण जी ने एक न सुनी,
और राम जी के साथ वन को चले गए।
जब राम जी वन गए थे,उस समय भरत जी अपनी ननिहाल में थे,
वहां उनका मन अचानक ही बिचलित होने लगा,
उन्होंने अपने नाना श्री से आज्ञा ली,और अयोध्या के लिए प्रस्थान किया।
अयोध्या पहुंचकर भरत जी को ज्ञात हुआ कि उनकी मां ने उनके लिए राजगद्दी मांगी,जबकि उनके ज्येष्ठ भाई के लिए वनवास।
भरत जी के क्रोध की सीमा न रही,और उन्होंने कैकेयी को मां कहकर संबोधित भी नहीं किया।
उनको अपना हित रामजी की सेवा में दिखता था,
रामायण में इसका वर्णन भी है।
"हित हमार सिय पति सिवकाई,सो हरलीन मात कुटलाई"
इसके बाद भरतजी शत्रुहन को साथ लेकर राम जी को वापस अयोध्या लाने के लिए वन गए,
जहां रामजी ने उनसे कहा,कि मैं पिता के वचन का पालन कर रहा हूँ,मां की आज्ञा से आया हूँ,
तुम अयोध्या में राजपाठ संभालो।
भरत जी इस बात पर राजी नहीं हुए,तब राम जी ने उन्हें वापस जाने की आज्ञा दी,
जिसको उन्होंने माना,परन्तु सिंहासन पर न बैठने की बात दोहरा दी।
और राम जी की खड़ाऊं मांग ली।
दोस्तो ये भाई-भाई का प्रेम था,जिस पर अयोध्या ही नहीं सम्पूर्ण देश को नाज था।
जहां एक तरफ भरत ने राजसुख का त्याग किया,
वही लक्ष्मण जी अपनी पत्नी से अलग रहे,
शत्रुहन जी भरत जी की आज्ञानुसार कार्य करते रहे।
14 वर्ष तक अयोध्या के सिंहासन पर खड़ाऊं रखी रहीं।
आज 6 महीने राष्ट्रपति शासन लग जाये,तो भूचाल आ जाता है।
स्थिर व्यवस्था वही है,जहां राजा की अनुपस्थिति में भी सबकी उपस्थित चलती रहे,सब अनुशासित रहे।।
राम चरित मानस सिर्फ एक पुस्तक नहीं है,
जीने का ढंग सिखाती है रामायण,
ऐसे ही नहीं रामराज्य की बात की जाती है,
ऐसे ही नहीं संबिधान के प्रथम पृष्ठ पर आज भी राम विराजमान हैं।
२- भाई-बहिन का रिश्ता-
बहिन भाई के रिश्ते के लिए हमें न इतिहास में जाने की जरूरत है न ही पौराणिक युग में।।
क्योंकि ये रिश्ता तो हर घर में खूबसूरती से निभाया जाता है,
ये वो रिश्ता होता है; जहां प्रेम की कोई सीमा नहीं होती,
अन्य किसी जरूरत नहीं होती,
जहां बिना झगड़े खाना हजम नहीं होता,
जहां झगड़ा,प्यार,तकरार सब का अपना अलग ही रंग होता है,
कहते हैं,
रिश्ते में गाँठ नहीं पड़नी चाहिए,
पर ये अपने आप में इतना अनोखा रिश्ता होता है,जो गाँठ बंधने पर और मजबूत हो जाता है।
ये गाँठ रेशम की डोरी में कलाई पर सजती है,
और प्रेम का अनोखा बन्धन बंध जाता है,
जिसे रक्षाबंधन के नाम से जाना जाता है।
रक्षाबंधन पर भाई, बहिन की रक्षा का वचन लेता है।।
कुछ महीने बाद आ जाता है भाई दूज का त्यौहार-
कहते हैं यमराज की बहन यमुना ने भाईदूज के दिन यम से ये वरदान मांगा था कि जो भी यमुना में स्नान करेगा,उसे यमपुरी नहीं जाना पड़ेगा।
ऐसी मान्यता है कि भाईदूज के दिन भाई की लंबी उम्र के लिए ही मनाया जाता है।
बहिन-भाई के प्रेम की अद्भुत मिशाल आप अपने आसपास भी देखते होंगे।
जमाना कितना ही खराब क्यों न हो गया हो,ये रिश्ता अब भी पवित्रता की नजर से ही देखा जाता है।।
३-बहिन-बहिन का रिश्ता-
बहिनों का रिश्ता कितना प्यार भरा होता है,ये वही बता सकता है, जिसकी बहिन हो।
मुझे तो भगवान ने बड़ी बहिन भी दी है,
और छोटी भी।।
जहां बड़ी बहिन आपको निर्णय लेने में,सही-गलत का फर्क करने में मदद करती है,वहीं छोटी बहिन आपके सारे दुःख भुलबा देती है।
कहते हैं कि बड़ी बहिन मां समान होती है,और माँ दोस्त के समान।
आपकी बहिन हो,फिर किसी अन्य के साथ की जरूरत नहीं रह जाती।क्योंकि वो ऐसी दोस्त होती है,जिससे आपका कोई भी राज छुपता नहीं।।
ऐसे दोस्त से कभी डरने की भी आवश्यकता नही होती।।
फोगाट सिस्टर्स को ही देख लो,
उनकी दोस्ती ही उनके हुनर को दुनिया के सामने लाने का कारण बनीं।
न वो लड़का उनको गाली देता,न दोनों बहिनें उसको पीटतीं, न उनके घर शिकायत आती,न उनके पिता जी उनकी क्षमता को जान पाते।।
दोस्तो रिश्ता कोई भी हो,जब तक उसमें प्यार,सम्मान व मित्रता का भाव नहीं होगा,रिश्ता अभाव में रहेगा।।
मतलब रिश्ता मजबूत नहीं हो पायेगा।
हर रिश्ते को जरूरत होती,प्यार स्नेह रुपी खाद पानी की,
जिसे समय समय पर डालना मतलब जताना भी आवश्यक होता है।
दोस्तों आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे दिए कमेंट बॉक्स में अवश्य दें,
आपकी प्रतिक्रिया हमें हौसला देती है।।
धन्यवाद🙏
राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुहन
राम जी सबसे बड़े व सभी के अत्यंत प्रिय थे,सभी भाइयों की शिक्षा-दीक्षा एक साथ हुई।विद्या ग्रहण करने के कुछ समय उपरांत ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास सहायता के लिए पहुंचे,
(ऋषि विश्वामित्र जब यज्ञ करते थे,तो राक्षस उसमें हड्डियां डाल जाते थे,सन्तों को मारते थे,अनेक प्रकार से यज्ञ में विघ्न डालते थे)
उनकी सहायतार्थ प्रभु राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ ऋषिवर के साथ चले गए,
जहां उन्होंने राक्षसों को मारा व यज्ञ/धर्म की रक्षा की।
इसके बाद ऋषिवर राम-लक्ष्मण जी को सीता स्वयंवर में लेकर गए,जहां प्रभु राम ने धनुष को तोड़ा और सीता जी से उनका विवाह हो गया।उसके बाद सीता जी की बहिनों का विवाह राम जी के भाइयों से हो गया।
राम-सीता
भरत-मांडवी
लक्ष्मण-उर्मिला
शत्रुहन-श्रुतिकीर्ति
विवाह उपरांत सब अयोध्या आ गए,ततपश्चात राम को राजा बनाने को बात हुई,दिन भी तय हो गया,
उधर नियति को कुछ और ही मंजूर था,
सुबह राम को राजा बनाया जाना था,
पर शाम को ही रानी कैकेयी ने दो वरदान मांगकर सब के अरमानों पर ये कहकर पानी फेर दिया,कि
राम को वनवास व भरत को राज्यपाठ दिया जाएगा।।
अब कथा शुरू होती है भाइयों के प्रेम की-
चूंकि सिर्फ राम जी को वनवास दिया गया था,परन्तु लक्ष्मण जी ने अविलंब साथ चलने को अनुमति मांगी,राम जी ने काफी समझाया पर लक्ष्मण जी ने एक न सुनी,
और राम जी के साथ वन को चले गए।
जब राम जी वन गए थे,उस समय भरत जी अपनी ननिहाल में थे,
वहां उनका मन अचानक ही बिचलित होने लगा,
उन्होंने अपने नाना श्री से आज्ञा ली,और अयोध्या के लिए प्रस्थान किया।
अयोध्या पहुंचकर भरत जी को ज्ञात हुआ कि उनकी मां ने उनके लिए राजगद्दी मांगी,जबकि उनके ज्येष्ठ भाई के लिए वनवास।
भरत जी के क्रोध की सीमा न रही,और उन्होंने कैकेयी को मां कहकर संबोधित भी नहीं किया।
उनको अपना हित रामजी की सेवा में दिखता था,
रामायण में इसका वर्णन भी है।
"हित हमार सिय पति सिवकाई,सो हरलीन मात कुटलाई"
इसके बाद भरतजी शत्रुहन को साथ लेकर राम जी को वापस अयोध्या लाने के लिए वन गए,
जहां रामजी ने उनसे कहा,कि मैं पिता के वचन का पालन कर रहा हूँ,मां की आज्ञा से आया हूँ,
तुम अयोध्या में राजपाठ संभालो।
भरत जी इस बात पर राजी नहीं हुए,तब राम जी ने उन्हें वापस जाने की आज्ञा दी,
जिसको उन्होंने माना,परन्तु सिंहासन पर न बैठने की बात दोहरा दी।
और राम जी की खड़ाऊं मांग ली।
दोस्तो ये भाई-भाई का प्रेम था,जिस पर अयोध्या ही नहीं सम्पूर्ण देश को नाज था।
जहां एक तरफ भरत ने राजसुख का त्याग किया,
वही लक्ष्मण जी अपनी पत्नी से अलग रहे,
शत्रुहन जी भरत जी की आज्ञानुसार कार्य करते रहे।
14 वर्ष तक अयोध्या के सिंहासन पर खड़ाऊं रखी रहीं।
आज 6 महीने राष्ट्रपति शासन लग जाये,तो भूचाल आ जाता है।
स्थिर व्यवस्था वही है,जहां राजा की अनुपस्थिति में भी सबकी उपस्थित चलती रहे,सब अनुशासित रहे।।
राम चरित मानस सिर्फ एक पुस्तक नहीं है,
जीने का ढंग सिखाती है रामायण,
ऐसे ही नहीं रामराज्य की बात की जाती है,
ऐसे ही नहीं संबिधान के प्रथम पृष्ठ पर आज भी राम विराजमान हैं।
२- भाई-बहिन का रिश्ता-
बहिन भाई के रिश्ते के लिए हमें न इतिहास में जाने की जरूरत है न ही पौराणिक युग में।।
क्योंकि ये रिश्ता तो हर घर में खूबसूरती से निभाया जाता है,
ये वो रिश्ता होता है; जहां प्रेम की कोई सीमा नहीं होती,
अन्य किसी जरूरत नहीं होती,
जहां बिना झगड़े खाना हजम नहीं होता,
जहां झगड़ा,प्यार,तकरार सब का अपना अलग ही रंग होता है,
कहते हैं,
रिश्ते में गाँठ नहीं पड़नी चाहिए,
पर ये अपने आप में इतना अनोखा रिश्ता होता है,जो गाँठ बंधने पर और मजबूत हो जाता है।
ये गाँठ रेशम की डोरी में कलाई पर सजती है,
और प्रेम का अनोखा बन्धन बंध जाता है,
जिसे रक्षाबंधन के नाम से जाना जाता है।
रक्षाबंधन पर भाई, बहिन की रक्षा का वचन लेता है।।
कुछ महीने बाद आ जाता है भाई दूज का त्यौहार-
कहते हैं यमराज की बहन यमुना ने भाईदूज के दिन यम से ये वरदान मांगा था कि जो भी यमुना में स्नान करेगा,उसे यमपुरी नहीं जाना पड़ेगा।
ऐसी मान्यता है कि भाईदूज के दिन भाई की लंबी उम्र के लिए ही मनाया जाता है।
बहिन-भाई के प्रेम की अद्भुत मिशाल आप अपने आसपास भी देखते होंगे।
जमाना कितना ही खराब क्यों न हो गया हो,ये रिश्ता अब भी पवित्रता की नजर से ही देखा जाता है।।
३-बहिन-बहिन का रिश्ता-
बहिनों का रिश्ता कितना प्यार भरा होता है,ये वही बता सकता है, जिसकी बहिन हो।
मुझे तो भगवान ने बड़ी बहिन भी दी है,
और छोटी भी।।
जहां बड़ी बहिन आपको निर्णय लेने में,सही-गलत का फर्क करने में मदद करती है,वहीं छोटी बहिन आपके सारे दुःख भुलबा देती है।
कहते हैं कि बड़ी बहिन मां समान होती है,और माँ दोस्त के समान।
आपकी बहिन हो,फिर किसी अन्य के साथ की जरूरत नहीं रह जाती।क्योंकि वो ऐसी दोस्त होती है,जिससे आपका कोई भी राज छुपता नहीं।।
ऐसे दोस्त से कभी डरने की भी आवश्यकता नही होती।।
फोगाट सिस्टर्स को ही देख लो,
उनकी दोस्ती ही उनके हुनर को दुनिया के सामने लाने का कारण बनीं।
न वो लड़का उनको गाली देता,न दोनों बहिनें उसको पीटतीं, न उनके घर शिकायत आती,न उनके पिता जी उनकी क्षमता को जान पाते।।
दोस्तो रिश्ता कोई भी हो,जब तक उसमें प्यार,सम्मान व मित्रता का भाव नहीं होगा,रिश्ता अभाव में रहेगा।।
मतलब रिश्ता मजबूत नहीं हो पायेगा।
हर रिश्ते को जरूरत होती,प्यार स्नेह रुपी खाद पानी की,
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Sunday, 14 October 2018
2nd Part The Feeling of Heart
LOVE,"THE FEELING OF HEART"
दोस्तो "द फीलिंग ऑफ हार्ट" के पहले भाग को आप सभी का भरपूर प्यार मिला।
"पहले भाग में माँ के प्यार का वर्णन सीता माता के लव-कुश प्रेम व माता सती के गणेश प्रेम के माध्यम से किया गया था।
हालांकि माता के प्रेम औऱ स्नेह की और भी सच्ची कहानियां हैं,
पर यहां सभी के बारे में एक साथ लिखना सम्भव नहीं है"
इसी कड़ी में आज हम पिता के प्रेम के बारे में बताने जा रहे हैं।
दोस्तो जिस तरह धरती को माता कहा गया है,उसी प्रकार आकाश को पिता।
अर्थात पिता शब्द एक विशालता का परिचायक है, जिस प्रकार आकाश का कहीं अंत नहीं;उसी प्रकार पिता के प्रेम की विशालता का कोई अंत नहीं है।
जिस प्रकार आकाश पृथ्वी को एक आवरण की तरह ढके रहता है,
उसी प्रकार पिता; अपनी पत्नी,अपनी संतान की रक्षा के लिए हर परिस्थिति में डटा रहता है।
आपने देखा होगा कि कैसे पिता घर की बागडोर को सम्भाले रहता है।
यद्यपि कई जगह इसके अपर्याय भी देखने को मिल जाते हैं,
जैसे धरती कहीं ऊंची-नीची होती है,
जैसे आकाश के ऊपर बादल छा जाते हैं,
उसी प्रकार कभी-2 कुछ एक मां-बाप भी समय के हाथ की कठपुतली बन के रह जाते हैं,फिर वो अपनी संतान को उस तरह का प्यार-दुलार नहीं दे पाते,जैसा उनके बच्चे चाहते हैं।
पिता प्रेम की कहानी देखिये
1-
राजा दशरथ के चार पुत्र थे,जिनमें ज्येष्ठ पुत्र श्री राम थे।
राजा दशरथ के चार पुत्र थे,जिनमें ज्येष्ठ पुत्र श्री राम थे।
महाराज को अपने चारों ही पुत्रों से अगाध प्रेम था,
जब रानी कैकेयी ने राम के लिए वनवास मांगा,तो राजा दसरथ ने उन्हें वो वरदान दे दिया।क्योंकि
"रघुकुल रीति सदा चल आयी,प्राण जाएं पर वचन न जाई"
चूंकि राजा दशरथ जानते थे कि राम के वन जाते ही उनके प्राण निकल जाएंगे,फिर भी उन्होंने पहले अपने कुल की गरिमा का मान रखा,अपने वचन को निभाया
यही पिता के ह्रदय की विशालता होती है।
एक तरफ अपार प्रेम,दूसरी तरह उसे जाहिर भी न होने देना।।
आज भी कई घरों में ऐसी विषम परिस्थितियां सामने आ जाती है, जिनका हल पिता को ही निकालना होता है।।
2-
कंश की बहन थी देवकी,
जिनका विवाह कंश ने वशुदेव जी के साथ कर दिया था,
यूं तो कंश राक्षस था,जिसने अपने पिता को भी कारागार में डाल दिया था,किन्तु अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था।
देवकी की विदाई के समय हुई एक भविष्यवाणी ने कंश और देवकी के प्रेम में एक खाई खोदने का कार्य किया।
उस भविष्यवाणी के अनुसार देवकी वशुदेव की आठवीं सन्तान,कंश का बध करने वाली थी,इसी डर से कंश ने देवकी को मारने की ठान ली,परन्तु वशुदेव जी ने कंश से इस वादे के साथ देवकी को बचा लिया,कि वो अपनी पहली से आठवीं तक सभी सन्तान कंश को दे देंगे।
वादानुसार वशुदेब जी ने ऐसा ही किया।
आठवीं सन्तान के रूप में स्वयं भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ।
चूंकि कृष्ण विष्णु के अवतार हैं, कंश का बध करने के लिए ही धरती पर आए थे,तो उनके अनुसार ही वशुदेव जी,
कृष्ण को गोकुल लेकर गए,
भादौं की काली रात,
उस पर भी घनघोर बारिश,
जमुना भी उफान पर थी,
पर एक पिता न डरा,न डर के पीछे हटा,
जिसकी सन्तान स्वयं विधाता बनकर आये, उनकी रक्षा के लिए एक पिता ने न सिर्फ अपने प्राण संकट में डाले,अपितु अपने पुत्र की रक्षा भी की।
यही होता है पिता का प्रेम,
जो बिना कुछ कहे सबकुछ कर जाता है।
युग बदलते हैं, स्वरूप बदलते हैं,
पर भावनाएं हमेशा वही रहती हैं,
बदलता है तो सिर्फ उन्हें दर्शाने का तरीका।।
माता-पिता के प्रेम से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता,क्योंकि वो अनमोल है, इसलिए हमेशा उनका सम्मान करें,
पता नहीं कब तक का साथ ईश्वर ने आपको दिया है।।
दोस्तो अपनी राय हमें नीचे👇कमेंट बॉक्स में अवश्य दें
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"रघुकुल रीति सदा चल आयी,प्राण जाएं पर वचन न जाई"
चूंकि राजा दशरथ जानते थे कि राम के वन जाते ही उनके प्राण निकल जाएंगे,फिर भी उन्होंने पहले अपने कुल की गरिमा का मान रखा,अपने वचन को निभाया
यही पिता के ह्रदय की विशालता होती है।
एक तरफ अपार प्रेम,दूसरी तरह उसे जाहिर भी न होने देना।।
आज भी कई घरों में ऐसी विषम परिस्थितियां सामने आ जाती है, जिनका हल पिता को ही निकालना होता है।।
2-
कंश की बहन थी देवकी,
जिनका विवाह कंश ने वशुदेव जी के साथ कर दिया था,
यूं तो कंश राक्षस था,जिसने अपने पिता को भी कारागार में डाल दिया था,किन्तु अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था।
देवकी की विदाई के समय हुई एक भविष्यवाणी ने कंश और देवकी के प्रेम में एक खाई खोदने का कार्य किया।
उस भविष्यवाणी के अनुसार देवकी वशुदेव की आठवीं सन्तान,कंश का बध करने वाली थी,इसी डर से कंश ने देवकी को मारने की ठान ली,परन्तु वशुदेव जी ने कंश से इस वादे के साथ देवकी को बचा लिया,कि वो अपनी पहली से आठवीं तक सभी सन्तान कंश को दे देंगे।
वादानुसार वशुदेब जी ने ऐसा ही किया।
आठवीं सन्तान के रूप में स्वयं भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ।
चूंकि कृष्ण विष्णु के अवतार हैं, कंश का बध करने के लिए ही धरती पर आए थे,तो उनके अनुसार ही वशुदेव जी,
कृष्ण को गोकुल लेकर गए,
भादौं की काली रात,
उस पर भी घनघोर बारिश,
जमुना भी उफान पर थी,
पर एक पिता न डरा,न डर के पीछे हटा,
जिसकी सन्तान स्वयं विधाता बनकर आये, उनकी रक्षा के लिए एक पिता ने न सिर्फ अपने प्राण संकट में डाले,अपितु अपने पुत्र की रक्षा भी की।
यही होता है पिता का प्रेम,
जो बिना कुछ कहे सबकुछ कर जाता है।
युग बदलते हैं, स्वरूप बदलते हैं,
पर भावनाएं हमेशा वही रहती हैं,
बदलता है तो सिर्फ उन्हें दर्शाने का तरीका।।
माता-पिता के प्रेम से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता,क्योंकि वो अनमोल है, इसलिए हमेशा उनका सम्मान करें,
पता नहीं कब तक का साथ ईश्वर ने आपको दिया है।।
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Sunday, 7 October 2018
The Feeling Of Heart
Love, "The feeling of heart"
प्यार- जैसे ही ये शब्द हमारे कानों में सुनाई पड़ता है,तो सिर्फ एक ही खयाल दिमाग में आता है, "लड़का-लड़की का प्यार" जिसे आम बोलचाल की भाषा में चक्कर भी कहा जाता है।
इसको हम गलत भी नहीं कह सकते,क्योंकि आमतौर पर हमारे समाज में ऐसी अवधारणा ही बन गयी है।
दोस्तों प्यार जैसे विशाल शब्द का अगर इतना सूक्ष्म अर्थ होता,तो शायद ये अबतक गायब हो गया होता।
इस एक शब्द का अर्थ हर एक के जीवन में, हर एक रिश्ते के लिए अलग-अलग होता है।
प्यार को स्नेह,लगाव,आत्मीयता जैसे शब्दों से भी जाना जाता है।
आज हम आपको मां के प्यार के बारे में बताने जा रहे हैं
मां शब्द में ही इतना प्यार समाहित होता है,जितना संसार के किसी अन्य शब्द में नहीं,शायद इसीलिए हमारे धर्म में धरती को भी मां कहकर संबोधित किया गया है।
यूं तो आपने कहानी,फिल्मों के माध्यम से मां की महिमा के बारे में सुना और देखा होगा,
पर हम आपको आदिकाल से आजतक के बारे में बताएंगे।
माता पार्वती अपने पुत्र से अगाध प्रेम करती थी,
एक वार माता स्नान करने गयीं और बाल गणेश को पहरेदारी पर खड़ा कर गयी।माता की आज्ञा थी कि बिना उनकी अनुमति के वो किसी को अंदर न आने दें।
कुछ समय बाद शंकर भगवान वहां आये और अंदर जाने लगे,गणेश जी ने उनका काफी विरोध किया।चूंकि शंकर भगवान गणेश जी से परिचित नहीं थे,इस कारण उन्होंने गणेश जी को उनके मार्ग से हट जाने को कहा,
पर बाल गणेश ने उनकी एक न सुनी,
युद्ध हुआ,जिसमें बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।
इसी बीच माता पार्वती स्नान करके वापस गयी,
गणेश जी की ये दशा देख उनका क्रोध भड़क गया,शंकर जी के लाख समझाने पर भी मां का क्रोध शान्त न हुआ,
तब गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया।
कहने का भाव ये है कि शंकर जी से अपार प्रेम करने वाली सती ने पुत्र प्रेम के आगे पति को झुका दिया।
ऐसा ही एक व्रतांत त्रेतायुग में देखने को मिलता है।
माता सीता ने राजभवन से जाने के बाद कभी उसकी तरफ पलटकर नहीं देखा,
प्रभु राम से अपार प्रेम को कभी कम न होने दिया
पर जब बात उनके पुत्रों के हक की आयी,
जब बात उनके पुत्रों की पहिचान की आयी,
तो स्वयं भरी सभा में जाकर अपनी बात कही।
वो माता सीता,जिन्होंने वन जाने के समय प्रभु राम के साथ जाना उचित समझा,किसी माता से कुछ नहीं कहा,
वो माता सीता,जिन्होंने धोबी की बात पर राजभवन से जाना उचित समझा,
वो माता सीता,जिन्होंने लंका से आने के बाद अग्नि परीक्षा दी,
पर न कभी किसी से कुछ कहा, न पूछा
उन्होंने भी अपनी संतान के लिए आवाज उठाई,
यही होता है माँ का प्रेम,जो अपनी संतान के लिए किसी भी हद तक चली जाती है।।
आज के समय की मां भी बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं।
और हो भी क्यों ना,माँ अपने बच्चे को तब से प्यार करने लगती है, जब उसने अपनी संतान को देखा भी नहीं होता।
अगर घर में कोई भी चीज कम है, तो मां अपना हिस्सा भी सन्तान को दे देती है, ये अद्भुत प्रेम है, जिसे विधाता भी नहीं समझ सकते।।
ये सिर्फ इंसानों में ही नहीं जानवरों में भी देखा जा सकता है।
शायद आपको पता न हो,
बन्दर के बच्चे के मरने के बाद भी बंदरिया उसको अपने से अलग नहीं करती।
पर हम इंसान ये कभी देख ही नहीं पाते।
हम कुत्ते के बच्चों को बेचकर अपना पेट भरते हैं,
गाय, बकरी के बच्चों को बेंचकर अपना पेट भरते हैं,
हम कभी नहीं सोचते कि जब हमारा बच्चा कुछ मिनट के लिए ना दिखे तो हम पर क्या बीतती है,
उसी तरह इन जानवरों के बच्चों को हम अलग कर देते हैं,तो उन पर क्या बीतती होगी?
सोचियेगा जरूर कि क्यों हम अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता बांध लेते हैं,
क्यों हम जीभ के स्वाद के लिए मासूम जीवो की,उनके बच्चों की हत्या कर देते हैं?
सोचिए और रोकिये।।
अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में अवश्य दें
धन्यवाद🙏
यूं तो आपने कहानी,फिल्मों के माध्यम से मां की महिमा के बारे में सुना और देखा होगा,
पर हम आपको आदिकाल से आजतक के बारे में बताएंगे।
एक प्रसंग के माध्यम से समझाते है
दोस्तों माता पार्वती और शिव जी के पुत्र थे कर्तिकेय,और गणेश जी को माता पार्वती ने अपने प्रताप से अपने छुटाए हुए उबटन से प्रकट किया था।
माता पार्वती अपने पुत्र से अगाध प्रेम करती थी,एक वार माता स्नान करने गयीं और बाल गणेश को पहरेदारी पर खड़ा कर गयी।माता की आज्ञा थी कि बिना उनकी अनुमति के वो किसी को अंदर न आने दें।
कुछ समय बाद शंकर भगवान वहां आये और अंदर जाने लगे,गणेश जी ने उनका काफी विरोध किया।चूंकि शंकर भगवान गणेश जी से परिचित नहीं थे,इस कारण उन्होंने गणेश जी को उनके मार्ग से हट जाने को कहा,
पर बाल गणेश ने उनकी एक न सुनी,
युद्ध हुआ,जिसमें बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।
इसी बीच माता पार्वती स्नान करके वापस गयी,
गणेश जी की ये दशा देख उनका क्रोध भड़क गया,शंकर जी के लाख समझाने पर भी मां का क्रोध शान्त न हुआ,
तब गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया।
कहने का भाव ये है कि शंकर जी से अपार प्रेम करने वाली सती ने पुत्र प्रेम के आगे पति को झुका दिया।
ऐसा ही एक व्रतांत त्रेतायुग में देखने को मिलता है।
माता सीता ने राजभवन से जाने के बाद कभी उसकी तरफ पलटकर नहीं देखा,
प्रभु राम से अपार प्रेम को कभी कम न होने दिया
पर जब बात उनके पुत्रों के हक की आयी,
जब बात उनके पुत्रों की पहिचान की आयी,
तो स्वयं भरी सभा में जाकर अपनी बात कही।
वो माता सीता,जिन्होंने वन जाने के समय प्रभु राम के साथ जाना उचित समझा,किसी माता से कुछ नहीं कहा,
वो माता सीता,जिन्होंने धोबी की बात पर राजभवन से जाना उचित समझा,
वो माता सीता,जिन्होंने लंका से आने के बाद अग्नि परीक्षा दी,
पर न कभी किसी से कुछ कहा, न पूछा
उन्होंने भी अपनी संतान के लिए आवाज उठाई,
यही होता है माँ का प्रेम,जो अपनी संतान के लिए किसी भी हद तक चली जाती है।।
आज के समय की मां भी बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं।
और हो भी क्यों ना,माँ अपने बच्चे को तब से प्यार करने लगती है, जब उसने अपनी संतान को देखा भी नहीं होता।
अगर घर में कोई भी चीज कम है, तो मां अपना हिस्सा भी सन्तान को दे देती है, ये अद्भुत प्रेम है, जिसे विधाता भी नहीं समझ सकते।।
ये सिर्फ इंसानों में ही नहीं जानवरों में भी देखा जा सकता है।
शायद आपको पता न हो,
बन्दर के बच्चे के मरने के बाद भी बंदरिया उसको अपने से अलग नहीं करती।
पर हम इंसान ये कभी देख ही नहीं पाते।
हम कुत्ते के बच्चों को बेचकर अपना पेट भरते हैं,
गाय, बकरी के बच्चों को बेंचकर अपना पेट भरते हैं,
हम कभी नहीं सोचते कि जब हमारा बच्चा कुछ मिनट के लिए ना दिखे तो हम पर क्या बीतती है,
उसी तरह इन जानवरों के बच्चों को हम अलग कर देते हैं,तो उन पर क्या बीतती होगी?
सोचियेगा जरूर कि क्यों हम अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता बांध लेते हैं,
क्यों हम जीभ के स्वाद के लिए मासूम जीवो की,उनके बच्चों की हत्या कर देते हैं?
सोचिए और रोकिये।।
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Saturday, 6 October 2018
रामसेतु/Adom's Bridge
रामसेतु
जिसके बारे में हम सभी ने राम कथा या रामचरित मानस के माध्यम से सुना है।
दोस्तों ये वही सेतु है,जो नल-नील ने राम नाम के पत्थरों से बनाया था,जिसको पार करके प्रभु श्री राम लंका पहुंचे थे।
ऐसे बहुत से लोग हमारे समाज में मौजूद हैं,जो भगवान राम को सिर्फ एक काल्पनिक पात्र मानते हैं,
जिनको लगता है कि रामकथा एक कपोल कल्पित कथा है,
जबकि भारत ही नहीं बल्कि इंडोनेशिया,नेपाल जैसे देश आज भी राम को भगवान की तरह ही पूजते हैं।
कुछ वर्ष पूर्व कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में राम जी के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए थे,
जबकि आज वही पार्टी लोगों को छलने के लिए चित्रकूट में राम वन गमन पथ पर रथ यात्रा निकाल रही है।
कांग्रेस पार्टी ने तो अपने "सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट" के तहत राम सेतु को तुड़वाने के लिए समुद्र तक RDX व मशीनें भी भेज दी थी,
पर डॉ सुब्रमण्यम स्वामी जी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाल कर इस पर रोक लगवा दी थी।
इस याचिका की कहानी भी काफी दिलचस्प है-
रामसेतु टूटने की सूचना जब डॉ स्वामी को मिली तो वो तुरन्त उस पर स्टे लेने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे,पर उस समय चीफ जस्टिस को विदेश जाना था,और वो चले गए।
इस पर डॉ स्वामी ने दूसरे जज से बात की और उनको पूरी समस्या से अवगत कराया,साथ ही उनसे ये भी कहा कि चीफ जस्टिस की गैर हाजिरी में सीनियर मोस्ट जज इस पर अपना निर्णय दे सकते हैं,
ये सीनियर जज कोई और नहीं बल्कि बी एन अग्रवाल जी ही थे,जिनसे डॉ स्वामी बात कर रहे थे।
तुरन्त सुनवाई हुई,और बी एन अग्रवाल जी ने राम सेतु पर स्टे ऑर्डर दे दिया,और इस तरह राम सेतु को बचा लिया गया।।
अभी डॉ स्वामी रामसेतु को नेशनल हेरिटेज घोषित करवाना चाहते हैं,जिस पर सुप्रीम कोर्ट जल्द ही अपना निर्णय देगा।
रामसेतु को ही एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है।
नाशा द्वारा भी राम सेतु की पुष्टि हुई है, जिसका वीडियो आप देख सकते हैं👇
Thursday, 4 October 2018
Monday, 1 October 2018
राजनीति;तब और अब
दुनियां के तमाम देशों का गुरु है भारत,
हर भारतीय का गुरुर है भारत,
जहां रहते हैं सब प्यार और स्नेह से,
विभिन्नता में एकता का विज्ञान है भारत।।
पर कहते हैं न,जहां चार बर्तन होते हैं,वहां आवाज होती ही है।
भारत के बदलते परिवेश के हाल भी कुछ ऐसा ही है।
भारतीय राजनीति-
1947 में भारत आजाद हुआ,पर आजादी से पहले ही भारत में एक पार्टी बन चुकी थी,जिसका नाम था कांग्रेस।।
इंडियन नेशनल कांग्रेस;हर भारतीय जो भारत को आजाद कराने का सपना देखता था, कांग्रेस को अपना मानता था।
समय-2 पर कांग्रेस के अध्यक्ष बदले जाते रहे,पार्टी चलती रही।
भारत आजाद हो गया।।
अब समय था,भारत में लोकतंत्र स्थापित करने का।
जिसके लिए कांग्रेस की मीटिंग हुई।
देश का पहला प्रधानमंत्री चुनने के लिए कांग्रेस ने वोटिंग की।
जिसमें सबसे अधिक मत सरदार पटेल को मिले।
नियमानुसार पटेल जी को प्रधानमंत्री बनाया जाता,पर नेहरू को ये बात अच्छी नहीं लगी,
और नेहरू ने अपने नाम का प्रस्ताव पहले रखा।
तमाम लोगों के विरोध व गाँधी जी की सहमति से नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बन गए।
कुछ बाद गांधी जी की हत्या कर दी गयी,कहा जाता है कि ये हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी,
पर दुःख की बात है गांधी जी का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया;जो कि विवादास्पद है।
शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने,
1965 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में मात दी थी। इसके बाद साल 1966 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था जिसे ताशकंद समझौता कहा जाता है। इसी के बाद ही लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई थी।
ऐसा कहा जाता है कि शास्त्री जी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी,
जबकि उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर पर नीले चिकत्ते पड़ गए थे,जिससे साफ लग रहा था कि ये प्राकृतिक मृत्यु नहीं अपितु हत्या थी।
शास्त्री जी का भी पोस्टमार्टम कांग्रेस सरकार ने नही कराया।
"वैसे जब कर नहीं तो डर कैसा"
मेरी समझ में नहीं आयी ये पोस्टमार्टम न कराने की राजनीति।
कुछ वर्षों के बाद कांग्रेस पार्टी पर नेहरू खानदान का अधिपत्य हो गया,
जब विचारधारा बदली तो एक नई विचारधारा ने जन्म दिया।
जनता पार्टी
जिसे आज सब भारतीय जनता पार्टी के नाम से जानते हैं।
धीमे-२ राज्यों में अलग-2 पार्टियां बनी,
कुछ जाति विशेष के आधार पर,
कुछ धर्म के आधार पर।
मौजूदा राजनीतिक परिवेश आप सब देख ही रहे हैं।
राजनीति का स्तर गिरता ही जा रहा है।
राजनीति एक जिम्मेदारी कम,
नौकरशाही ज्यादा हो गयी है।
दोषारोपण, इस्तीफा,हर रोज का काम है।
नैतिक जिम्मेदारी नाम की चीज ही नहीं बची।
पर शुक्र है, ऐसे दौर में भारत को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला,जिन पर आजतक भ्र्ष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा,
जिन्होंने सबका साथ,सबका विकास की नीति को अपनाया।
खाऊंगा न खाने दूँगा की बाात को बल दिया।।
अगर मेरा ब्लॉग अच्छा लगे तो अपनी प्रतिक्रिया कमेंट में दें।
कुछ गलत लगे तो भी बताएं।।
धन्यवाद।।
हर भारतीय का गुरुर है भारत,
जहां रहते हैं सब प्यार और स्नेह से,
विभिन्नता में एकता का विज्ञान है भारत।।
पर कहते हैं न,जहां चार बर्तन होते हैं,वहां आवाज होती ही है।
भारत के बदलते परिवेश के हाल भी कुछ ऐसा ही है।
भारतीय राजनीति-
1947 में भारत आजाद हुआ,पर आजादी से पहले ही भारत में एक पार्टी बन चुकी थी,जिसका नाम था कांग्रेस।।
इंडियन नेशनल कांग्रेस;हर भारतीय जो भारत को आजाद कराने का सपना देखता था, कांग्रेस को अपना मानता था।
समय-2 पर कांग्रेस के अध्यक्ष बदले जाते रहे,पार्टी चलती रही।
भारत आजाद हो गया।।
अब समय था,भारत में लोकतंत्र स्थापित करने का।
जिसके लिए कांग्रेस की मीटिंग हुई।
देश का पहला प्रधानमंत्री चुनने के लिए कांग्रेस ने वोटिंग की।
जिसमें सबसे अधिक मत सरदार पटेल को मिले।
नियमानुसार पटेल जी को प्रधानमंत्री बनाया जाता,पर नेहरू को ये बात अच्छी नहीं लगी,
और नेहरू ने अपने नाम का प्रस्ताव पहले रखा।
तमाम लोगों के विरोध व गाँधी जी की सहमति से नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बन गए।
कुछ बाद गांधी जी की हत्या कर दी गयी,कहा जाता है कि ये हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी,
पर दुःख की बात है गांधी जी का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया;जो कि विवादास्पद है।
शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने,
1965 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में मात दी थी। इसके बाद साल 1966 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था जिसे ताशकंद समझौता कहा जाता है। इसी के बाद ही लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई थी।
ऐसा कहा जाता है कि शास्त्री जी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी,
जबकि उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर पर नीले चिकत्ते पड़ गए थे,जिससे साफ लग रहा था कि ये प्राकृतिक मृत्यु नहीं अपितु हत्या थी।
शास्त्री जी का भी पोस्टमार्टम कांग्रेस सरकार ने नही कराया।
"वैसे जब कर नहीं तो डर कैसा"
मेरी समझ में नहीं आयी ये पोस्टमार्टम न कराने की राजनीति।
कुछ वर्षों के बाद कांग्रेस पार्टी पर नेहरू खानदान का अधिपत्य हो गया,
जब विचारधारा बदली तो एक नई विचारधारा ने जन्म दिया।
जनता पार्टी
जिसे आज सब भारतीय जनता पार्टी के नाम से जानते हैं।
धीमे-२ राज्यों में अलग-2 पार्टियां बनी,
कुछ जाति विशेष के आधार पर,
कुछ धर्म के आधार पर।
मौजूदा राजनीतिक परिवेश आप सब देख ही रहे हैं।
राजनीति का स्तर गिरता ही जा रहा है।
राजनीति एक जिम्मेदारी कम,
नौकरशाही ज्यादा हो गयी है।
दोषारोपण, इस्तीफा,हर रोज का काम है।
नैतिक जिम्मेदारी नाम की चीज ही नहीं बची।
पर शुक्र है, ऐसे दौर में भारत को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला,जिन पर आजतक भ्र्ष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा,
जिन्होंने सबका साथ,सबका विकास की नीति को अपनाया।
खाऊंगा न खाने दूँगा की बाात को बल दिया।।
अगर मेरा ब्लॉग अच्छा लगे तो अपनी प्रतिक्रिया कमेंट में दें।
कुछ गलत लगे तो भी बताएं।।
धन्यवाद।।
Impact of food on your family
जैसा खाओ अन्न,वैसा बने मन0
कहा जाता है,
जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन।
जैसा पियोगे पानी वैसी होगी वाणी।।
आज #WorldVegetarianDay" यानी विश्व शाकाहारी दिवस है।
दोस्तों सात्विक भोजन का महत्व हमारे ऋषी मुनियों ने बहुत ही सहजता से बताया है।
तामसी भोजन से आपकी सोच राक्षसी बनेगी,
आज जो समाज में अत्याचार,हत्या,रेप से मामले बढ़े हैं उसमें वातावरण,शिक्षा,संस्कारों के अलावा खान-पान का भी महत्व पड़ता है।
सोचो जो लोग जीभ के स्वाद के लिए मासूम जीव की हत्या कर देते हैं, वो अन्य चीजों के लिए किस हद तक गिर सकते हैं,इसकी कल्पना कीजिये।
कुछ लोग कुतर्क करते हैं कि अंडा मांसाहारी नहीं होता,
या नॉनवेज में अधिक ताकत होती है,
तो दोस्तों अगर ऐसा होता,
तो ताकत की इकाई हॉर्स पॉवर न होती।
शेर कितना ही शिकार क्यों न कर ले,
मरने के वाद उसको खींचने के लिए बैलों का सहारा ही लिया जाता है।जो घास खाते हैं।
शाकाहार भोजन दिमाग के साथ दिल के लिए भी अच्छा होता है।।
जैसा पियोगे पानी वैसी होगी वाणी।।
आज #WorldVegetarianDay" यानी विश्व शाकाहारी दिवस है।
दोस्तों सात्विक भोजन का महत्व हमारे ऋषी मुनियों ने बहुत ही सहजता से बताया है।
तामसी भोजन से आपकी सोच राक्षसी बनेगी,
आज जो समाज में अत्याचार,हत्या,रेप से मामले बढ़े हैं उसमें वातावरण,शिक्षा,संस्कारों के अलावा खान-पान का भी महत्व पड़ता है।
सोचो जो लोग जीभ के स्वाद के लिए मासूम जीव की हत्या कर देते हैं, वो अन्य चीजों के लिए किस हद तक गिर सकते हैं,इसकी कल्पना कीजिये।
कुछ लोग कुतर्क करते हैं कि अंडा मांसाहारी नहीं होता,
या नॉनवेज में अधिक ताकत होती है,
तो दोस्तों अगर ऐसा होता,
तो ताकत की इकाई हॉर्स पॉवर न होती।
शेर कितना ही शिकार क्यों न कर ले,
मरने के वाद उसको खींचने के लिए बैलों का सहारा ही लिया जाता है।जो घास खाते हैं।
शाकाहार भोजन दिमाग के साथ दिल के लिए भी अच्छा होता है।।
शायद आपको पता न हो,पर आज #International_Day_of_Older_Persons यानी अंतराष्ट्रीय बृद्धा दिवस भी है।
सनातन धर्म में तो अनुशासन और सम्मान पर बहुत बल दिया गया है।वैसे कोई भी धर्म ऐसा नहीं होगा जो बुजुर्गों का अपमान करना सिखाता हो,
पर आज के बदलते परिवेश में लोग अपनी संस्कृति/सभ्यता ताक पर रख देते हैं,
और अपने परिजनों/बर्द्धजनों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं,जिसकी एक समय में कल्पना भी नहीं कि जा सकती थी।
"जो उनका आज है वही हमारा कल होगा"
इस सिद्धांत पर चलिए।
पर आज के बदलते परिवेश में लोग अपनी संस्कृति/सभ्यता ताक पर रख देते हैं,
और अपने परिजनों/बर्द्धजनों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं,जिसकी एक समय में कल्पना भी नहीं कि जा सकती थी।
"जो उनका आज है वही हमारा कल होगा"
इस सिद्धांत पर चलिए।
आज एक अक्टूबर को ये दोनों दिन मनाए जाते हैं।
अच्छा खाओ,
अच्छा व्यवहार करो।
अपनों के साथ से,सपनों के साकार होने की उम्मीद बढ़ जाती है।।
धन्यवाद।।
अच्छा खाओ,
अच्छा व्यवहार करो।
अपनों के साथ से,सपनों के साकार होने की उम्मीद बढ़ जाती है।।
धन्यवाद।।
Saturday, 29 September 2018
Connection between Heart & Mind
दिल और दिमाग
आज जिस विषय पर हम लिखने जा रहे हैं,वो हमेशा से ही काफी चर्चा में रहा है।
दिल और दिमाग🤔
दिल या दिमाग😱
आज की भागम भाग जिंदगी में दिल लगाने वाले कहते हैं, दिमाग से मत सोचो,
औऱ दिमाग लगाने वाले कहते हैं,दिल से मत सोचो।
आज का विषय यही है -दिल और दिमाग अथवा दिल या दिमाग। इसको पढ़िए!फिर सोचिए क्या उचित रहेगा।।
दोस्तों दिल हमारे शरीर का वो अंग है जो दिमाग से पहले बन जाता है,और फिर बिना रुके,बिना थके निरन्तर कार्य करता रहता है।जबकि दिमाग योग,नींद,संगीत आदि माध्यमों से आराम कर लेता है।
दोस्तों जब भी हम प्यार में होते हैं,फिर वो प्यार किसी से भी हो;तब हम दिमाग के कहने पर भी उसकी अनसुनी कर देते हैं,जिसका खामियाजा दिल को उठाना पड़ता है।
फिर दिल से सम्बंधित कई तरह की बीमारियां अनायास ही हमको घेर लेतीं हैं।
ऐसी ही दिल और दिमाग से जुड़ी एक सत्य घटना का जिक्र हम रामायण के माध्यम से करने जा रहे हैं।
अयोध्या के महाराजा दशरथ अत्यंत वीर और प्रतापी थे,वो देवासुर संग्राम में असुरों को अपनी वीरता का परिचय दे देते थे।
देवासुर संग्राम में महाराजा दशरथ के साथ एक बार कैकेयी भी गयीं थी,उस समय रथ का पहिया रोककर रानी कैकेयी ने राजा दशरथ की जान बचाई थी,जिससे प्रसन्न होकर,
राजा ने उन्हें दो वरदान देने का वचन दे दिया था।
महाराजा दशरथ के तीन रानियां और चार पुत्र थे
राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुघन
भगवान राम का विवाह जनक की पुत्री जानकी के साथ हुआ था।
विवाह के बाद,राजा दशरथ ने विचार किया कि क्यों न अब राम को राजा बना दिया जाए,
ऐसा विचार कर वो गुरु जी के पास शुभ समय जानने गए।
गुरु जी ने कहा,शुभ समय तभी,जब राम राजा बनेंगे,
शुभष्र शीघ्रम।
जब ये बात मन्थरा(कैकेयी की दासी) को पता चली, तो उसने कैकेयी को भड़काया,और राजा दशरथ से 2वरदान मांगने को कहा।
गलत संगत के असर का श्रेष्ठतम उदाहरण है कैकेयी-मन्थरा।
रानी कैकेयी जो राम को अपना पुत्र मानती थी,
राम जिनको जननी कहते थे,
ऐसी माता कैकेयी ने अपने दिल की नहीं सुनी,
और राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया।
महाराजा दशरथ जो कि सूर्यवंशी महाप्रतापी राजा थे,ने अपनी प्रिय पत्नी को अत्यंत दुखी होकर अपने दिल की बात कही-
"जिऐ मीन बरु बारि बिहीना,मन बिनु फनिकु जिए दुख दीना
कहउँ सुभाउ न छल मन माहीं,जीवन मोर राम बिनु नाही।।"
जिसका सीधा अर्थ था,कि राम के बिना मेरा जीवन है ही नहीं।
पर कैकेयी ने दिमाग के आगे दिल की एक न सुनी,औऱ कह दिया।
"होत प्रात मुनिवेश धर,जौ न राम वन जाएं
मोर मरण,राउर अजस नृप समझेउ मन माही।।"
भगवान राम,सीता माता और लक्ष्मण जी के साथ वन को चले गए।।
दोस्तों ये कहानी आप सभी ने सुनी होगी,
पर यहां समझने वाली दो बातें हैं
1-रानी कैकेयी ने सिर्फ दिमाग की सुनी
2-राजा दशरथ ने सिर्फ दिल की
आप सोचेंगे कैसे?
कैकेयी के बारे में तो बता चुके,
राजा दशरथ के बारे में बताते हैं-
चूँकि महाराज दशरथ भगवान राम को राजा बनाने जा रहे थे,मतलब स्वयं सेवानिवृत्त हो गए थे।
और वचनानुसार राज्य भरत को दे दिया।
भगवान राम को वनवास दिया।
अब जब राम से अथाह प्रेम था,तो राम जी के साथ स्वयं भी जा सकते थे,
वरदान में ये तो शर्त नहीं थी कि स्वयं राम के साथ नहीं जा सकते।
जैसे सीता माता और लक्ष्मण जी गए,स्वयं भी चले जाते।
पर यहां दिमाग चला ही नहीं।
दोस्तों दिल की करें पर दिमाग को गिरवीं रखकर नहीं।
दिमाग की सुनें,पर दिल को दरकिनार करके नहीं।।
फिर आपको कोई छोड़ दे,आप टूटोगे नहीं,।
और आप किसी मतलब के लिए किसी से जुड़ोगे नहीं।।
अपनी राय हमे कमेंट बॉक्स में अवश्य दें।
धन्यवाद।।
भारत की तस्वीर
कुछ सरहद पर शहीद हुये
कुछ गलियों में मार दिए,
कुछ राजनीति के चक्कर में
कुछ समझौतों में मार दिए,
क्या कहें तमाशा भारत का
क्या कहें कहानी अब दुख की,
जब सेना भी न बच पाई
क्या बच पाएगी अब दिल्ली,
उठ जाग खड़े हो अब रण में
नापाक को तुम खत्म करो,
मंदिर बनवाकर अयोध्या में
राम राज का शुभारंभ करो
जागृति गुप्ता✍
नमामि गंगे
🙏नमामि गंगे🙏
भारत माँ के लाल हो,कहो तुम हर हर गंगे
नमामि गंगे-नमामि गंगे।।
गंगा को धरती पर,भागीरथ थे लाये,
पाप पुण्य का बोध कराने, ऋषि मुनि भी आये,
जप लो हरि का नाम,रहो सब साथी संगे,
नमामि गंगे-नमामि गंगे।।
कैसा चलन चला जो,गंगा हो गयी मैली,
पापों को धोते-धोते,खुद हो गयी विषैली,
रोते-रोते कहे है गंगा,मत कर मानव पंगे,
नमामि गंगे-नमामि गंगे।।
चन्द्र सी ज्योति तुम्हारी,तुम निर्मल जल धारी,
शरण में जो भी आये,तुम उसकी दुखहारी,
भूल के अपनी सभ्यता को,ना कर मानव दंगे,
नमामि गंगे-नमामि गंगे।।
करो प्रतिज्ञा अब से,कहोगे हर मानव से,
गंगा को रोकोगे,तुम दूषित होने से,
ना किया जो ऐसा,तो पछताओगे वंदे,
नमामि गंगे-नमामि गंगे।।
-जागृति गुप्ता✍️
Saturday, 22 September 2018
घूँघट->एक प्रथा या ढोंग
घूँघट
दोस्तों जिस विषय पर हम अपने विचार रखने जा रहे हैं,उसे कुछ लोग अच्छा समझते हैं व कुछ इसे एक कुप्रथा समझते हैं।
मेरे विचार पढ़ कर आप स्वयं निर्णय लीजिये कि एक अच्छी प्रथा है या प्रथा के नाम पर बुराई।।
घूँघट-शादी के बाद ससुराल में चेहरा ढककर रखने की प्रथा का नाम घूँघट है।
शादी से पहले लड़के(वर) के मां-बाप,भाई-बहिन,जेठ-जेठानी या यूं कहें कि घर के लगभग सभी सदस्य लड़की देखने जाते हैं,
उस समय सभी लोग लड़की को नख से शिख तक देखते हैं;और फिर जब सब सही लगता है,तब शादी करते हैं।
शादी में जयमाल के समय वर-बधू स्टेज पर घण्टों बैठाकर रखे जाते हैं,
पूरा समाज आशीर्वाद की फोटो खिचबाता है,सब रीति रिवाज के बाद बधू ससुराल आ जाती है।
इसके बाद की बात मेरी समझ में नहीं आती,
कि जब ससुर,जेठ,नन्दोई सब पहले ही देख के आते हैं तो शादी के बाद ऐसा क्या बदल जाता है कि फिर लड़की को एक हाथ का घूँघट रखना पड़ता है,
ऐसा क्या हो जाता है कि फिर इसी घूँघट के आधार पर बहू के संस्कार देखे जाने लगते हैं।
आज के बदलते परिवेश में तो कुछ और भी बातें आश्चर्यजनक लगती हैं,
जैसे-जयमाल के बाद दूल्हा स्वयं अपने इष्ट मित्रों के साथ डाइनिंग टेबल पर दुल्हन के साथ खाना खाता है,
यही नहीं, सभी लोग दूल्हा-दुल्हन को एक-दूसरे को खिलाने के लिए बोलते हैं,फिर दोनों एक दूसरे को खिलाते भी हैं।
सब हंसी-खुशी चलता है।
फिर ससुराल आने के बाद गर यही वर-बधू एक दूसरे को खिलाने लगें तो चर्चा शुरू हो जाती है।
ये दोहरा चरित्र क्यों है समाज का,मुझे समझ नहीं आता।
इतना ही नहीं,जब अपनी बेटी की विदा होती है और वहां घूँघट न करवाया जाता हो,तो लोग बोलते हैं कि बहुत अच्छी फैमिली है, मॉर्डन हैं सब।।
पर जब बात अपनी बहू की आती है, तो घूँघट को ही सर्वगुण,संस्कार का पैरामीटर मान लेते हैं।
जो व्यवहार आप अपनी बेटी के लिए चाहते हो,वही दूसरे की बेटी यानी कि अपनी ही बहू के साथ क्यों नहीं करते?
किसने जकड़ा हुआ है आपको।।
दोस्तों बदलते परिवेश के साथ बदलना ही बेहतर होता है,अब इसमें कुछ लोग कहते हैं कि ये हमारे संस्कार हैं, तो दोस्तों आपको बता दूं कि हमारे सनातन धर्म में घूँघट प्रथा कभी थी ही नहीं।
याद करो त्रेता युग,द्वापर युग
त्रेतायुग में महारानी कैकेयी राजा दशरथ के साथ देवासुर संग्राम में भी जाती थी,
गर घूँघट का चलन होता तो क्या ऐसा होता?
द्वापरयुग में देख लीजिए,अगर घूँघट होता तो गांधारी घूँघट ही करती,आंखों पर पट्टी न बाँधती।
दोस्तों घूँघट का चलन मुगलों की देन है,
मुगलकाल में मुगलों की बदनियती से बचने के लिए घूँघट का चलन शुरू हुआ था।
आज के बदलते परिवेश में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।।
कुछ लोग घूँघट और पर्दा को एक समानार्थी मानते हैं,जो कि भिन्न है।
पर्दा- घरों की खिड़की,दरवाजे पर लटके हुए कपड़े को पर्दा कहते हैं।
हमारे समाज में पर्दा चलता है,घूँघट नहीं।।
वो पर्दा नजर का होता है।।
रामायण में सीता माता से कभी रावण की तरफ नहीं देखा,वहां हमेशा नजर का पर्दा रहा।।
आपको कई जगह देखने को मिल जाएगा,लोग एक हाथ का घूँघट किये रहते हैं और गालियां देते रहते हैं,
क्या ये सम्मान लगता है?
कई जगह घूँघट के चक्कर में घर में क्लेश हो जाता है, क्या वो सम्मान लगता है?
जब नहीं,तो क्यों मुगलों की कुप्रथा को सहेज के रखना,
उखाड़ फेंकों।
सम्मान करो सभी का,
प्यार करो सभी को,
चार दिन की जिंदगी है, दूसरे क्या कहेंगे
सिर्फ ये सोचकर मत रहो।
खुश रहो और खुशी बांटो।।
रानी लक्ष्मीबाई घूँघट करके बैठी रहती तो चार लोग जानते भी न उनको।।
दोस्तो अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें।
फ़ॉलो करें,ताकि आपको मेरी पोस्ट का नोटिफिकेशन मिलता रहे।।
धन्यवाद।।
शादी से पहले लड़के(वर) के मां-बाप,भाई-बहिन,जेठ-जेठानी या यूं कहें कि घर के लगभग सभी सदस्य लड़की देखने जाते हैं,
उस समय सभी लोग लड़की को नख से शिख तक देखते हैं;और फिर जब सब सही लगता है,तब शादी करते हैं।
शादी में जयमाल के समय वर-बधू स्टेज पर घण्टों बैठाकर रखे जाते हैं,
पूरा समाज आशीर्वाद की फोटो खिचबाता है,सब रीति रिवाज के बाद बधू ससुराल आ जाती है।
इसके बाद की बात मेरी समझ में नहीं आती,
कि जब ससुर,जेठ,नन्दोई सब पहले ही देख के आते हैं तो शादी के बाद ऐसा क्या बदल जाता है कि फिर लड़की को एक हाथ का घूँघट रखना पड़ता है,
ऐसा क्या हो जाता है कि फिर इसी घूँघट के आधार पर बहू के संस्कार देखे जाने लगते हैं।
आज के बदलते परिवेश में तो कुछ और भी बातें आश्चर्यजनक लगती हैं,
जैसे-जयमाल के बाद दूल्हा स्वयं अपने इष्ट मित्रों के साथ डाइनिंग टेबल पर दुल्हन के साथ खाना खाता है,
यही नहीं, सभी लोग दूल्हा-दुल्हन को एक-दूसरे को खिलाने के लिए बोलते हैं,फिर दोनों एक दूसरे को खिलाते भी हैं।
सब हंसी-खुशी चलता है।
फिर ससुराल आने के बाद गर यही वर-बधू एक दूसरे को खिलाने लगें तो चर्चा शुरू हो जाती है।
ये दोहरा चरित्र क्यों है समाज का,मुझे समझ नहीं आता।
इतना ही नहीं,जब अपनी बेटी की विदा होती है और वहां घूँघट न करवाया जाता हो,तो लोग बोलते हैं कि बहुत अच्छी फैमिली है, मॉर्डन हैं सब।।
पर जब बात अपनी बहू की आती है, तो घूँघट को ही सर्वगुण,संस्कार का पैरामीटर मान लेते हैं।
जो व्यवहार आप अपनी बेटी के लिए चाहते हो,वही दूसरे की बेटी यानी कि अपनी ही बहू के साथ क्यों नहीं करते?
किसने जकड़ा हुआ है आपको।।
दोस्तों बदलते परिवेश के साथ बदलना ही बेहतर होता है,अब इसमें कुछ लोग कहते हैं कि ये हमारे संस्कार हैं, तो दोस्तों आपको बता दूं कि हमारे सनातन धर्म में घूँघट प्रथा कभी थी ही नहीं।
याद करो त्रेता युग,द्वापर युग
त्रेतायुग में महारानी कैकेयी राजा दशरथ के साथ देवासुर संग्राम में भी जाती थी,
गर घूँघट का चलन होता तो क्या ऐसा होता?
द्वापरयुग में देख लीजिए,अगर घूँघट होता तो गांधारी घूँघट ही करती,आंखों पर पट्टी न बाँधती।
दोस्तों घूँघट का चलन मुगलों की देन है,
मुगलकाल में मुगलों की बदनियती से बचने के लिए घूँघट का चलन शुरू हुआ था।
आज के बदलते परिवेश में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।।
कुछ लोग घूँघट और पर्दा को एक समानार्थी मानते हैं,जो कि भिन्न है।
पर्दा- घरों की खिड़की,दरवाजे पर लटके हुए कपड़े को पर्दा कहते हैं।
हमारे समाज में पर्दा चलता है,घूँघट नहीं।।
वो पर्दा नजर का होता है।।
रामायण में सीता माता से कभी रावण की तरफ नहीं देखा,वहां हमेशा नजर का पर्दा रहा।।
आपको कई जगह देखने को मिल जाएगा,लोग एक हाथ का घूँघट किये रहते हैं और गालियां देते रहते हैं,
क्या ये सम्मान लगता है?
कई जगह घूँघट के चक्कर में घर में क्लेश हो जाता है, क्या वो सम्मान लगता है?
जब नहीं,तो क्यों मुगलों की कुप्रथा को सहेज के रखना,
उखाड़ फेंकों।
सम्मान करो सभी का,
प्यार करो सभी को,
चार दिन की जिंदगी है, दूसरे क्या कहेंगे
सिर्फ ये सोचकर मत रहो।
खुश रहो और खुशी बांटो।।
रानी लक्ष्मीबाई घूँघट करके बैठी रहती तो चार लोग जानते भी न उनको।।
दोस्तो अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें।
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अवधपुरी दर्शन को जाऊँ
खुश हूँ मैं बहुत सुनो खुशी का तुमको राज बताऊँ आये हैं अक्षत अवधपुरी दर्शन को जाऊँ सुनो अवधपुरी में आज सभी है देव पधारे शिव इंद्र यक्ष गंधर्व...



























