Saturday, 22 September 2018

घूँघट->एक प्रथा या ढोंग

घूँघट

दोस्तों जिस विषय पर हम अपने विचार रखने जा रहे हैं,उसे कुछ लोग अच्छा समझते हैं व कुछ इसे एक कुप्रथा समझते हैं।
मेरे विचार पढ़ कर आप स्वयं निर्णय लीजिये कि एक अच्छी प्रथा है या प्रथा के नाम पर बुराई।।

घूँघट-शादी के बाद ससुराल में चेहरा ढककर रखने की प्रथा का नाम घूँघट है।
शादी से पहले लड़के(वर) के मां-बाप,भाई-बहिन,जेठ-जेठानी या यूं कहें कि घर के लगभग सभी सदस्य लड़की देखने जाते हैं,
उस समय सभी लोग लड़की को नख से शिख तक देखते हैं;और फिर जब सब सही लगता है,तब शादी करते हैं।
शादी में जयमाल के समय वर-बधू स्टेज पर घण्टों बैठाकर रखे जाते हैं,
पूरा समाज आशीर्वाद की फोटो खिचबाता है,सब रीति रिवाज के बाद बधू ससुराल आ जाती है।

इसके बाद की बात मेरी समझ में नहीं आती,
कि जब ससुर,जेठ,नन्दोई सब पहले ही देख के आते हैं तो शादी के बाद ऐसा क्या बदल जाता है कि फिर लड़की को एक हाथ का घूँघट रखना पड़ता है,
ऐसा क्या हो जाता है कि फिर इसी घूँघट के आधार पर बहू के संस्कार देखे जाने लगते हैं।

आज के बदलते परिवेश में तो कुछ और भी बातें आश्चर्यजनक लगती हैं,
जैसे-जयमाल के बाद दूल्हा स्वयं अपने इष्ट मित्रों के साथ डाइनिंग टेबल पर दुल्हन के साथ खाना खाता है,
यही नहीं, सभी लोग दूल्हा-दुल्हन को एक-दूसरे को खिलाने के लिए बोलते हैं,फिर दोनों एक दूसरे को खिलाते भी हैं।
सब हंसी-खुशी चलता है।
फिर ससुराल आने के बाद गर यही वर-बधू एक दूसरे को खिलाने लगें तो चर्चा शुरू हो जाती है।
ये दोहरा चरित्र क्यों है समाज का,मुझे समझ नहीं आता।
इतना ही नहीं,जब अपनी बेटी की विदा होती है और वहां घूँघट न करवाया जाता हो,तो लोग बोलते हैं कि बहुत अच्छी फैमिली है, मॉर्डन हैं सब।।
पर जब बात अपनी बहू की आती है, तो घूँघट को ही सर्वगुण,संस्कार का पैरामीटर मान लेते हैं।
जो व्यवहार आप अपनी बेटी के लिए चाहते हो,वही दूसरे की बेटी यानी कि अपनी ही बहू के साथ क्यों नहीं करते?
किसने जकड़ा हुआ है आपको।।

दोस्तों बदलते परिवेश के साथ बदलना ही बेहतर होता है,अब इसमें कुछ लोग कहते हैं कि ये हमारे संस्कार हैं, तो दोस्तों आपको बता दूं कि हमारे सनातन धर्म में घूँघट प्रथा कभी थी ही नहीं
याद करो त्रेता युग,द्वापर युग
त्रेतायुग में महारानी कैकेयी राजा दशरथ के साथ देवासुर संग्राम में भी जाती थी,
गर घूँघट का चलन होता तो क्या ऐसा होता?
द्वापरयुग में देख लीजिए,अगर घूँघट होता तो गांधारी घूँघट ही करती,आंखों पर पट्टी न बाँधती।
दोस्तों घूँघट का चलन मुगलों की देन है,
मुगलकाल में मुगलों की बदनियती से बचने के लिए घूँघट का चलन शुरू हुआ था। 
आज के बदलते परिवेश में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।।

कुछ लोग घूँघट और पर्दा को एक समानार्थी मानते हैं,जो कि भिन्न है।
पर्दा- घरों की खिड़की,दरवाजे पर लटके हुए कपड़े को पर्दा कहते हैं।
हमारे समाज में पर्दा चलता है,घूँघट नहीं।।
वो पर्दा नजर का होता है।।
रामायण में सीता माता से कभी रावण की तरफ नहीं देखा,वहां हमेशा नजर का पर्दा रहा।।

आपको कई जगह देखने को मिल जाएगा,लोग एक हाथ का घूँघट किये रहते हैं और गालियां देते रहते हैं,
क्या ये सम्मान लगता है?
कई जगह घूँघट के चक्कर में घर में क्लेश हो जाता है, क्या वो सम्मान लगता है?
जब नहीं,तो क्यों मुगलों की कुप्रथा को सहेज के रखना,
उखाड़ फेंकों।
सम्मान करो सभी का,
प्यार करो सभी को,
चार दिन की जिंदगी है, दूसरे क्या कहेंगे
सिर्फ ये सोचकर मत रहो।
खुश रहो और खुशी बांटो।।
रानी लक्ष्मीबाई घूँघट करके बैठी रहती तो चार लोग जानते भी न उनको।।

दोस्तो अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें।
फ़ॉलो करें,ताकि आपको मेरी पोस्ट का नोटिफिकेशन मिलता रहे।।
धन्यवाद।।


13 comments:

  1. Waah.. Ghoonghat ke baare me sirf ek lady/ladki hi itna accha likh skti hai..
    You have honoured the customs by talking about नजर का पर्दा।
    8/10 Marks. :)

    ...- Kush

    ReplyDelete
  2. Very well written.. there is nothing good in ghoonghat it is a malpractice prevailed in our society in our culture by outsiders by some crusaders
    Who came from somewhere else.
    It is needed to b wiped out for the wellness of our own culture.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Right...& Its high time to wipe out from our society.
      Thanks

      Delete
  3. very nice ji..keep it up

    ReplyDelete
  4. App achhe bato ko likhte hai
    Aise hi hamesa likhte rahe🙏

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति दी
    दी आप "नारी सशक्तिकरण" पर भी कुछ लिखीए

    "पढ़ना मुश्किल है जुफ्तजू चाहिए
    लिखना और भी मुश्किल है, बस
    खाक में मिटने की तमन्ना चाहिए "

    इसी तरह आगे भी लिखते रहिए....
    ढ़ेर सारी शुभकामनाएं आपको....

    -अक्षय कुमार गुप्ता"

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद🙏
      इस हौसला अफजाई के लिए।।
      नारी सशक्तिकरण पर भी अवश्य लिखेंगे।।

      Delete
    2. ये भी एक नारी सशक्तिकरण का ही एक हिस्सा है- (घूँघट->एक प्रथा या ढोंग) टिप्पणी करने के बाद मुझे ध्यान आया....

      Delete
    3. कोई बात नहीं,
      ये एक प्रथा से सम्बंधित है, आप बदलते जमाने में नारी की भूमिका पर लिखने को बोल रहे हैं शायद।
      लिखेंगे सर

      Delete

Thanks a-lot

अवधपुरी दर्शन को जाऊँ

खुश हूँ मैं बहुत सुनो खुशी का तुमको राज बताऊँ आये हैं अक्षत अवधपुरी दर्शन को जाऊँ सुनो अवधपुरी में आज सभी है देव पधारे शिव इंद्र यक्ष गंधर्व...