Love, "The feeling of heart"
प्यार- जैसे ही ये शब्द हमारे कानों में सुनाई पड़ता है,तो सिर्फ एक ही खयाल दिमाग में आता है, "लड़का-लड़की का प्यार" जिसे आम बोलचाल की भाषा में चक्कर भी कहा जाता है।
इसको हम गलत भी नहीं कह सकते,क्योंकि आमतौर पर हमारे समाज में ऐसी अवधारणा ही बन गयी है।
दोस्तों प्यार जैसे विशाल शब्द का अगर इतना सूक्ष्म अर्थ होता,तो शायद ये अबतक गायब हो गया होता।
इस एक शब्द का अर्थ हर एक के जीवन में, हर एक रिश्ते के लिए अलग-अलग होता है।
प्यार को स्नेह,लगाव,आत्मीयता जैसे शब्दों से भी जाना जाता है।
आज हम आपको मां के प्यार के बारे में बताने जा रहे हैं
मां शब्द में ही इतना प्यार समाहित होता है,जितना संसार के किसी अन्य शब्द में नहीं,शायद इसीलिए हमारे धर्म में धरती को भी मां कहकर संबोधित किया गया है।
यूं तो आपने कहानी,फिल्मों के माध्यम से मां की महिमा के बारे में सुना और देखा होगा,
पर हम आपको आदिकाल से आजतक के बारे में बताएंगे।
माता पार्वती अपने पुत्र से अगाध प्रेम करती थी,
एक वार माता स्नान करने गयीं और बाल गणेश को पहरेदारी पर खड़ा कर गयी।माता की आज्ञा थी कि बिना उनकी अनुमति के वो किसी को अंदर न आने दें।
कुछ समय बाद शंकर भगवान वहां आये और अंदर जाने लगे,गणेश जी ने उनका काफी विरोध किया।चूंकि शंकर भगवान गणेश जी से परिचित नहीं थे,इस कारण उन्होंने गणेश जी को उनके मार्ग से हट जाने को कहा,
पर बाल गणेश ने उनकी एक न सुनी,
युद्ध हुआ,जिसमें बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।
इसी बीच माता पार्वती स्नान करके वापस गयी,
गणेश जी की ये दशा देख उनका क्रोध भड़क गया,शंकर जी के लाख समझाने पर भी मां का क्रोध शान्त न हुआ,
तब गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया।
कहने का भाव ये है कि शंकर जी से अपार प्रेम करने वाली सती ने पुत्र प्रेम के आगे पति को झुका दिया।
ऐसा ही एक व्रतांत त्रेतायुग में देखने को मिलता है।
माता सीता ने राजभवन से जाने के बाद कभी उसकी तरफ पलटकर नहीं देखा,
प्रभु राम से अपार प्रेम को कभी कम न होने दिया
पर जब बात उनके पुत्रों के हक की आयी,
जब बात उनके पुत्रों की पहिचान की आयी,
तो स्वयं भरी सभा में जाकर अपनी बात कही।
वो माता सीता,जिन्होंने वन जाने के समय प्रभु राम के साथ जाना उचित समझा,किसी माता से कुछ नहीं कहा,
वो माता सीता,जिन्होंने धोबी की बात पर राजभवन से जाना उचित समझा,
वो माता सीता,जिन्होंने लंका से आने के बाद अग्नि परीक्षा दी,
पर न कभी किसी से कुछ कहा, न पूछा
उन्होंने भी अपनी संतान के लिए आवाज उठाई,
यही होता है माँ का प्रेम,जो अपनी संतान के लिए किसी भी हद तक चली जाती है।।
आज के समय की मां भी बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं।
और हो भी क्यों ना,माँ अपने बच्चे को तब से प्यार करने लगती है, जब उसने अपनी संतान को देखा भी नहीं होता।
अगर घर में कोई भी चीज कम है, तो मां अपना हिस्सा भी सन्तान को दे देती है, ये अद्भुत प्रेम है, जिसे विधाता भी नहीं समझ सकते।।
ये सिर्फ इंसानों में ही नहीं जानवरों में भी देखा जा सकता है।
शायद आपको पता न हो,
बन्दर के बच्चे के मरने के बाद भी बंदरिया उसको अपने से अलग नहीं करती।
पर हम इंसान ये कभी देख ही नहीं पाते।
हम कुत्ते के बच्चों को बेचकर अपना पेट भरते हैं,
गाय, बकरी के बच्चों को बेंचकर अपना पेट भरते हैं,
हम कभी नहीं सोचते कि जब हमारा बच्चा कुछ मिनट के लिए ना दिखे तो हम पर क्या बीतती है,
उसी तरह इन जानवरों के बच्चों को हम अलग कर देते हैं,तो उन पर क्या बीतती होगी?
सोचियेगा जरूर कि क्यों हम अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता बांध लेते हैं,
क्यों हम जीभ के स्वाद के लिए मासूम जीवो की,उनके बच्चों की हत्या कर देते हैं?
सोचिए और रोकिये।।
अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में अवश्य दें
धन्यवाद🙏
यूं तो आपने कहानी,फिल्मों के माध्यम से मां की महिमा के बारे में सुना और देखा होगा,
पर हम आपको आदिकाल से आजतक के बारे में बताएंगे।
एक प्रसंग के माध्यम से समझाते है
दोस्तों माता पार्वती और शिव जी के पुत्र थे कर्तिकेय,और गणेश जी को माता पार्वती ने अपने प्रताप से अपने छुटाए हुए उबटन से प्रकट किया था।
माता पार्वती अपने पुत्र से अगाध प्रेम करती थी,एक वार माता स्नान करने गयीं और बाल गणेश को पहरेदारी पर खड़ा कर गयी।माता की आज्ञा थी कि बिना उनकी अनुमति के वो किसी को अंदर न आने दें।
कुछ समय बाद शंकर भगवान वहां आये और अंदर जाने लगे,गणेश जी ने उनका काफी विरोध किया।चूंकि शंकर भगवान गणेश जी से परिचित नहीं थे,इस कारण उन्होंने गणेश जी को उनके मार्ग से हट जाने को कहा,
पर बाल गणेश ने उनकी एक न सुनी,
युद्ध हुआ,जिसमें बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।
इसी बीच माता पार्वती स्नान करके वापस गयी,
गणेश जी की ये दशा देख उनका क्रोध भड़क गया,शंकर जी के लाख समझाने पर भी मां का क्रोध शान्त न हुआ,
तब गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया।
कहने का भाव ये है कि शंकर जी से अपार प्रेम करने वाली सती ने पुत्र प्रेम के आगे पति को झुका दिया।
ऐसा ही एक व्रतांत त्रेतायुग में देखने को मिलता है।
माता सीता ने राजभवन से जाने के बाद कभी उसकी तरफ पलटकर नहीं देखा,
प्रभु राम से अपार प्रेम को कभी कम न होने दिया
पर जब बात उनके पुत्रों के हक की आयी,
जब बात उनके पुत्रों की पहिचान की आयी,
तो स्वयं भरी सभा में जाकर अपनी बात कही।
वो माता सीता,जिन्होंने वन जाने के समय प्रभु राम के साथ जाना उचित समझा,किसी माता से कुछ नहीं कहा,
वो माता सीता,जिन्होंने धोबी की बात पर राजभवन से जाना उचित समझा,
वो माता सीता,जिन्होंने लंका से आने के बाद अग्नि परीक्षा दी,
पर न कभी किसी से कुछ कहा, न पूछा
उन्होंने भी अपनी संतान के लिए आवाज उठाई,
यही होता है माँ का प्रेम,जो अपनी संतान के लिए किसी भी हद तक चली जाती है।।
आज के समय की मां भी बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं।
और हो भी क्यों ना,माँ अपने बच्चे को तब से प्यार करने लगती है, जब उसने अपनी संतान को देखा भी नहीं होता।
अगर घर में कोई भी चीज कम है, तो मां अपना हिस्सा भी सन्तान को दे देती है, ये अद्भुत प्रेम है, जिसे विधाता भी नहीं समझ सकते।।
ये सिर्फ इंसानों में ही नहीं जानवरों में भी देखा जा सकता है।
शायद आपको पता न हो,
बन्दर के बच्चे के मरने के बाद भी बंदरिया उसको अपने से अलग नहीं करती।
पर हम इंसान ये कभी देख ही नहीं पाते।
हम कुत्ते के बच्चों को बेचकर अपना पेट भरते हैं,
गाय, बकरी के बच्चों को बेंचकर अपना पेट भरते हैं,
हम कभी नहीं सोचते कि जब हमारा बच्चा कुछ मिनट के लिए ना दिखे तो हम पर क्या बीतती है,
उसी तरह इन जानवरों के बच्चों को हम अलग कर देते हैं,तो उन पर क्या बीतती होगी?
सोचियेगा जरूर कि क्यों हम अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता बांध लेते हैं,
क्यों हम जीभ के स्वाद के लिए मासूम जीवो की,उनके बच्चों की हत्या कर देते हैं?
सोचिए और रोकिये।।
To be continued
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धन्यवाद🙏