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Monday, 3 June 2019

6Part "The Feeling Of Heart "

Love,"The Feeling Of Heart"

दोस्तों प्यार पर तक 5 ब्लॉग लिखे,जिनमें लगभग हर रिश्ते के बारे में बताया।
हर रिश्ते को रामायण के दृष्टांत से समझाने की कोशिश की।
पर अब बात करेंगे,आधुनिक समय के प्यार की।
अमूमन जिसे लोग प्यार कहते हैं,क्योंकि आजकल के माहौल को देखते हुए लोगों की सोच भी बदल चुकी है,
आज हम किसी लड़का-लड़की को एक साथ देखकर,सिर्फ यही अनुमान लगाते हैं,कि ये चक्कर चला रहे।
फिर भले ही वो दोनों सिर्फ दोस्त हों,या भाई-बहिन।।
तो कुछ ऐसे ही चक्कर/प्यार की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं।।

कॉलेज में एडमिशन हुए कुछ ही समय हुआ था,सब एक दूसरे के बारे ज्यादा से ज्यादा जानने को उत्सुक रहते थे।
कुछ ही समय हुआ था कि सभी के अपने-2 दोस्त बन गए,ग्रुप बन गए,फेसबुक पर भी दोस्त बन गए।
ये सिलसिला चलता जा रहा था,कुछ की दोस्ती और प्रगाढ़ हो रही थी,तो वही कुछ की दोस्ती प्यार में बदलने लगी थी।।
कॉलेज से हॉस्टल तक सबका अपना-अपना रंग ढंग नजर आने लगा था।
सब आपस में अपनी-अपनी बातें शेयर करने लगे थे,
इसी बीच मुझे पता चला कि मेरी दोस्त भी किसी को पसंद करती है,हालांकि वो जिसको पसंद करती थी,वो हमारे कॉलेज का विद्यार्थी नहीं था।फिर भी उनके प्यार के चर्चे जब कभी सुनने को मिल ही जाते थे,पर इधर उधर की बातों पर हम कभी प्रतिक्रिया नहीं देते थे।।
दोनों अलग-अलग शहरों में होने के कारण मिल तो नहीं पाते थे,पर फोन पर लम्बी बात किया करते थे।
एक दिन मैंने अपनी दोस्त से उसके तथाकथित दोस्त के बारे में पूछ लिया,पूछने पर उसने बताया कि पिछले कुछ सालों से वो एक दूसरे को चाहते हैं,पढ़ाई खत्म करते ही शादी कर लेंगे।
सुनकर अच्छा लगा कि रिश्ता टाइमपास के लिए नहीं बल्कि एक-दूसरे के साथ के लिए बना है।
समय बीतता गया,2 सेमेस्टर खत्म हो चुके थे,तीसरा चल रहा था,
और अब उनके बीच बातें होना थोड़ी कम हो गयी थी,
मेरी दोस्त इसको लेकर काफी परेशान रहने लगी थी,पर सामने से रिस्पांस कम होता जा रहा था।
अब तक मेरी दोस्त मुझसे अपनी हर बात शेयर करने लगी थी।।
तीसरे सेमेस्टर के एग्जाम शुरू हुए,उसी बीच पता चला कि वो श्रीमान जी,जिनसे मेरी दोस्त बात करती थी;वो आने वाले हैं।।
दोनों मिलने का प्लान कर रहे थे,जब मुझे पता चला।।
मैंने अपनी दोस्त को समझाया कि परीक्षा खत्म होने के बाद मिले,
पर कहते हैं ना,"इश्क का पागलपन सिर्फ एक ही चीज से उतरता है,-:धोखा।।
वो मेरी बात समझी नहीं,या समझकर भी नासमझ बन गयी।।
अंततः वो दिन आ गया,जब उनको मिलना था।
आज शाम मिलने का निश्च्य किया,जबकि कल सुबह को एग्जाम था।
दोनों कॉलेज कैंटीन में मिले,7:30बजने को थे,पर मेरी दोस्त अब तक हॉस्टल नहीं आयी थी,
मैंने बॉर्डन को झूठ बोलकर उसकी परमिशन टाइम बढवाई।
अभी वो लौटकर वापस आ चुकी थी,
पर जो खुशी उसके चेहरे पर,जाने से पहले थी,वो आने के बाद नहीं दिखी।।
मैंने अभी उससे इस बारे में कुछ नहीं पूछा था।
अगले दिन सुबह एग्जाम देकर वापस आये,तो मेरी दोस्त ने रोना शुरू कर दिया,
काफी पूछने के बाद उसने बताया कि उसका वो दोस्त उससे ब्रेकअप करने के लिए आया था,
क्योंकि उसको कोई और पसंद आ गयी थी।।
एग्जाम के समय इतना डिस्टर्बेंस,समझ नहीं आ रहा था कि पढ़ाई की जाए,या उस तथाकथित दोस्त से लड़ाई की जाए,
जो पिछले काफी समय से किसी की फीलिंग्स के साथ खेल रहा था।।
रोने के चक्कर में मेरी दोस्त को फीवर हो गया,
डिप्रेशन में खाना नहीं खा पा रही थी,
और उसकी ये दशा मुझसे देखी नहीं जा रही थी।।
किसी तरह उसको समझाया कि जो अभी छोड़ गया, उसके लिए क्या रोना,और क्यों रोना।।
खुद को कमजोर कभी मत होने दो,और किसी से प्यार की भीख तो कभी मत मांगों।
कुछ दिन मेडिटेशन कराया,धीमे-धीमे सब नॉर्मल हो गया
आज उन बातों को सोचकर,मेरी दोस्त बहुत हंसती है,
पर उस समय वो किसी मेंटल ट्रॉमा से कम नहीं था।।

दोस्तो दुनियां में बहुत से गेम हैं, उनसे खेलो पर कभी किसी के दिल से ना खेलो।।क्योंकि जरूरी नहीं होता कि सामने वाले के पास कोई समझाने वाला हो।।
हो सकता है कि वो इंसान अपनी पूरी जिंदगी संभल ही न पाए।।
आज मेरी दोस्त की शादी हो चुकी है,
और वो अपने हसबैंड के साथ काफी खुश है।।क्योंकि अतीत की बुरी यादों के अलावा बुरे इंसान का साथ भी काफी पीछे छूट चुका था।।
ये एक रियल लाइफ की रियल कहानी है,
इसलिए इसमें किसी का नाम नहीं लिख सकते थे।।
आपको ये कहानी कैसी लगी,ये तो नहीं पूछेंगे,
पर आप ऐसा किसी के साथ नहीं करेंगे,ये अपेक्षा जरूर करते हैं।।
धन्यवाद🙏
यदि आप इस ब्लॉग को पढ़े,तो कमेंट बॉक्स में अपना नाम,व अपनी राय अवश्य दें।।

Sunday, 10 February 2019

5(2) Love,"The Feeling Of Heart"

Love,"The Feeling Of Heart

लव द फीलिंग ऑफ हार्ट का ये पाँचवां पोस्ट है,
जैसा कि प्रत्येक अंक में बताया कि प्यार कोई ढाई अक्षर का लिखा,पढ़ा या कहा गया शब्द नहीं है,
ये वो फीलिंग है जिसे बेजुबान जता सकता है,अंधा व्यक्ति भी महसूस कर सकता है,
यहां तक कि जानवर भी इंसान के प्यार को समझते हैं,जताते हैं,
हले व दूसरे भाग में आपने क्रमशः माता के प्यार व पिता के प्यार के बारे में जाना।जहां माता की तुलना धरती व पिता की तुलना आकाश से की गई है।माँ-बाप अपनी पूरी जिंदगी अपनी औलाद को पढाने औऱ काबिल बनाने में लगा देते हैं।तीसरे भाग में आपने भाई-भाई/बहिन-बहिन/भाई-बहिन के प्यार के बारे में पढ़ा।
वहीं चौथे भाग में आपने पति-पत्नी के प्यार के बारे पढ़ा,जाना,समझा।।
दोस्तों आपने मेरे सभी पोस्ट्स को भरपूर प्यार दिया,इसके लिए हम आपके आभारी हैं।
आज के ब्लॉग में हम आपको उस प्यार के बारे में बताएंगे,जिसको आम बोलचाल की भाषा में कहा तो प्यार ही जाता है,
पर समझा गलत जाता है
जी हां,आज हम बात करेंगे एक लड़का और लड़की के प्यार के बारे में-:

ये वो विषय है,जिस पर जितना लिखा जाए कम है,क्योंकि हर किसी को इसके बारे कुछ न कुछ अवश्य पता होता है,

फिर वो कहीं से पढ़कर पता चला हो या सुनकर

स्वयं अनुभव किया हो या दोस्तों से जाना हो।।

चूंकि कई लोगों ने ट्विटर पर व कमेंट बॉक्स में इस विषय पर लिखने को कहा था,
इस पर एक ब्लॉग पहले भी लिख चुकी हूं,
जिसमें पहली नजर के प्यार के बारे में बताया गया है,
पहली नजर में प्यार का पहला उदाहरण रामायण से ही लिया,
राम-सीता का पुष्प वाटिका में मिलन।।
दूसरे भाग को हम आज के परिवेश पर लिखते,
पर मेरे एक मित्र व भाई ने चुनौती दे दी,कि दूसरे भाग के लिए आपको रामायण में उदाहरण नहीं मिल सकता।
उनकी चुनौती स्वीकार की।।
प्रस्तुत है एक तरफा प्यार की पहली कहानी


सूपनखा रावन कै बहिनी।
दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी॥
पंचबटी सो गइ एक बारा।
देखि बिकल भइ जुगल कुमारा॥
रावण की बहिन थी सुपर्णखा, जो नागिन के समान विषैली व दुष्ट हृदय की स्वामिनी थी।
एक बार जब वो पंचवटी में गयी,तो राम-लक्ष्मण को देखकर मोहित हो गई।
उसने मन ही मन विचार किया,कि ये इतने सुंदर सुशील युवराज हैं क्यों न इनसे शादी कर ली जाए।
सुपर्णखा ने इसके लिए विधिवत योजना तैयार की,
और फिर
रुचिर रूप धरि प्रभु पहिं जाई।
बोली बचन बहुत मुसुकाई॥
तुम्ह सम पुरुष न मो सम नारी।
यह सँजोग बिधि रचा बिचारी॥
सुपर्णखा ने सुंदर रूप बनाया और मुस्कुराते हुए प्रभु श्री राम से बोली,
तुम्हारे समान पुरुष और मेरे समान नारी इस सम्पूर्ण श्रष्टि में नहीं है,
और यह संयोग विधि ने बहुत सोच विचार कर रचा है।
इसके बाद वो कहती है अब तक इस श्रष्टि में मेरे समान कोई पुरुष नहीं था,इसलिए मेरी अबतक शादी नहीं हुई,
पर अब मैं तुमसे शादी कर लूंगी।
यह सुनते ही प्रभु श्रीराम ने माता जानकी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि हे देवी मैं पहले से ही शादीशुदा हूँ
व मैंने एक पत्नी का व्रत लिया हुआ है।
पर आप चाहें तो मेरे अनुज लक्ष्मण से शादी कर सकती हैं।
चूंकि सुपर्णखा को दोनों ही मोहक लगे थे,
तो वो अब लक्ष्मण जी की तरफ गयी और शादी का प्रस्ताव लक्ष्मण जी के सामने रखा।
लक्ष्मण जी,जो स्वयं प्रभु राम की सेवा करने का वचन ले चुके थे,
जो अपनी पत्नी को भी साथ नही लाये थे,कहने लगे
कि मैं तो बस एक सेवक मात्र हूं,
आप प्रभु राम से ही शादी करें,वो कौशलपुर के राजा हैं।
सुपर्णखा पुनः राम जी के पास गई,
राम जी ने सीता माता की तरफ इशारा करके पुनः अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण कराया,
इस पर सुपर्णखा क्रोधित होकर अपने असली रूप में आ गई।
और माता सीता को मारने के लिए दौड़ी,
लक्ष्मण जी ने इस पर उसके नाक कान काट दिए,
दोस्तो लक्ष्मण जी उसको खत्म भी कर सकते थे,पर उन्होंने ऐसा नहीं किया,क्योंकि वो सिर्फ उसे सबक सिखाना चाहते थे।
कई बार विवाहित पुरुष व महिलाएं
अविवाहित पुरुष व महिलाएं भी इस तरह के एक तरफा प्यार में पड़ जाते हैं,
औऱ फिर उसे पाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं,
उन्हें रामायण के इस दृष्टांत से शिक्षा लेनी चाहिए।
आपका प्रपोजल मंजूर न होना,नाक कान कटने से कम नहीं।
पर उसके लिए राक्षस बन जाना, स्वयं व परिवार के अंत का कारण भी बन जाता है।
राम-रावण के युद्ध की सूत्रधार सुपर्णखा ही थी।।

दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी,
कृपया कमेंट बॉक्स में अपने नाम के साथ प्रतिक्रिया अवश्य दें।
धन्यवाद।।

Thursday, 17 January 2019

5th Part The Feeling Of Heart

Love,"The Feeling Of Heart"

लव द फीलिंग ऑफ हार्ट का ये पाँचवां पोस्ट है,
जैसा कि प्रत्येक अंक में बताया कि प्यार कोई ढाई अक्षर का लिखा,पढ़ा या कहा गया शब्द नहीं है,
ये वो फीलिंग है जिसे बेजुबान जता सकता है,अंधा व्यक्ति भी महसूस कर सकता है,
यहां तक कि जानवर भी इंसान के प्यार को समझते हैं,जताते हैं,
हले व दूसरे भाग में आपने क्रमशः माता के प्यार व पिता के प्यार के बारे में जाना।जहां माता की तुलना धरती व पिता की तुलना आकाश से की गई है।माँ-बाप अपनी पूरी जिंदगी अपनी औलाद को पढाने औऱ काबिल बनाने में लगा देते हैं।तीसरे भाग में आपने भाई-भाई/बहिन-बहिन/भाई-बहिन के प्यार के बारे में पढ़ा।
वहीं चौथे भाग में आपने पति-पत्नी के प्यार के बारे पढ़ा,जाना,समझा।।
दोस्तों आपने मेरे सभी पोस्ट्स को भरपूर प्यार दिया,इसके लिए हम आपके आभारी हैं।
आज के ब्लॉग में हम आपको उस प्यार के बारे में बताएंगे,जिसको आम बोलचाल की भाषा में कहा तो प्यार ही जाता है,
पर समझा गलत जाता है।
जी हां,आज हम बात करेंगे एक लड़का और लड़की के प्यार के बारे में-:
ये वो विषय है,जिस पर जितना लिखा जाए कम है,क्योंकि हर किसी को इसके बारे कुछ न कुछ अवश्य पता होता है,
फिर वो कहीं से पढ़कर पता चला हो या सुनकर
स्वयं अनुभव किया हो या दोस्तों से जाना हो।।
चूंकि कई लोगों ने ट्विटर पर व कमेंट बॉक्स में इस विषय पर लिखने को कहा,तो कोशिश कर रही हूँ-

देखन मिस मृग बिहग तरु,फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि निरखि रघुबीर छबि,बाढ़इ प्रीति न थोरि॥I
इसका अर्थ है-
मृग,पक्षी और वृक्षों को देखने के बहाने सीताजी बार-बार घूम जाती हैं और श्री रामजी की छबि देख-देखकर उनका प्रेम कम नहीं,बढ़ रहा है। (अर्थात्‌ बहुत ही बढ़ता जाता है)॥
तभी राम जी को कंकन,करधनी व नूपुर की आवाज सुनाई देती है, वो लक्ष्मण जी से उस बारे में पूछते हैं कि क्या उन्होंने वो ध्वनि सुनी,लक्ष्मण जी कहते हैं;उन्होंने कुछ नहीं सुना
अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा,सिय मुख ससि भए नयन चकोरा।।भए बिलोचन चारु अचंचल। मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल॥ 
राम जी फिर पलटते हैं और सीता जी के मुख की तरफ देखते हैं
राम-सीता की नजरें मिलती हैं,
और वो एक टक एक-दूसरे को देखते रह जाते हैं,
यहां तक कि उनकी पलकें भी नहीं झपकती।
दोनों को ही एक-दूसरे से प्यार हो गया,
इसके बाद जानकी माता ने गौरी जी की पूजा की,उनसे अपने मन की बात कही,उनसे कहा कि जो छवि उनके मन में बस गयी है,वही उन्हें पति के रूप में मिलें,
पर राम जी ने अपने मन की बात भी किसी से नहीं कही।
ये होता है पहली नजर का प्यार।।
यहाँ दोनों ने ही एक-दूसरे को पूरी शिद्दत से चाहा,और पूरी कायनात उन्हें मिलाने में लग गयी।।
दोस्तों आजकल जो बॉलीबुड में दिखाते हैं,सिर्फ तरीका बदलते हैं,
सीखते यहीं से हैं।।6

To Be Continued-
दोस्तों इस भाग का अभी आध्यात्मिक स्वरूप वर्णित किया है,
आज के परिवेश के बारे में चर्चा,इसके अगले भाग में होगी।।
आप अपने विचार कमेंट बॉक्स में अपने नाम के साथ अवश्य रखें।।
धन्यवाद🙏

Tuesday, 4 December 2018

4th Part The Feeling Of Heart

Love,"The Feeling Of Heart"

लव द फीलिंग ऑफ हार्ट का ये चौथा पोस्ट है,
जैसा कि प्रत्येक अंक में बताया कि प्यार कोई ढाई अक्षर का लिखा,पढ़ा या कहा गया शब्द नहीं है,
ये वो फीलिंग है जिसे बेजुबान जता सकता है,अंधा व्यक्ति भी महसूस कर सकता है,
यहां तक कि जानवर भी इंसान के प्यार को समझते हैं,जताते हैं,
हले व दूसरे भाग में आपने क्रमशः माता के प्यार व पिता के प्यार के बारे में जाना।जहां माता की तुलना धरती व पिता की तुलना आकाश से की गई है।माँ-बाप अपनी पूरी जिंदगी अपनी औलाद को पढाने औऱ काबिल बनाने में लगा देते हैं।वहीं तीसरे भाग में आपने भाई-भाई/बहिन-बहिन/भाई-बहिन के प्यार के बारे में पढ़ा।
दोस्तों आपने मेरे सभी पोस्ट्स को भरपूर प्यार दिया,इसके लिए हम आपके आभारी हैं।
आज के ब्लॉग में हम आपको पति-पत्नी के प्यार के बारे में बताएंगे।
शादी के बाद शुरू होता है इस प्यार का प्यारा सा सफर!
क्योंकि यहां आपके साथ होता है आपका हमसफ़र!!
ये प्यार का वो रिश्ता होता,जिसमें हर इंसान प्यार देखता है,
प्यार देखना चाहता है,
प्यार को महसूस करना चाहता है।
जोड़ा(pair) किसी का भी हो,
पक्षी हो,जानवर हो या फिर इंसान...हर कोई इनको साथ ही देखना चाहता है।
दोस्तों किसी भी रिश्ते में मतभेद हों तो हों,
पर मनभेद कभी नहीं होने चाहिए।।
ये एक ऐसा रिश्ता है जो दो परिवारों को जोड़ता है व नए रिश्तों की नींव रखता है।
शादी विभन्न धर्मों में,विभिन्न जातियों में,विभिन्न देशों में,विभन्न सम्प्रदाओं में अलग-अलग तरह से होती है,पर निष्कर्ष सभी का एक ही होता है,
दो लोगों का ज़िंदगी भर के लिए एक होना।
इस रिश्ते में हर कोई ये मान के चलता है,कि प्यार तो होगा ही,
और मेरा मानना है,"प्यार होना ही चाहिए"
क्योंकि असल मायने में सिर्फ यही रिश्ता,
तन,मन,धन तीनों से जुड़ता है।।
हमारे देश में 60% लोग अभी भी एक अनजान इंसान को ही अपना साथी बनाते हैं,
घर,परिवार की पसन्द को ही मान्यता देते हुए शादी के बंधन में बंधते हैं,फिर प्यार,स्नेह व भरोसे से इस रिश्ते को सींचते हैं।
इस रिश्ते में हम पति-पत्नी के प्यार को एक साथ ही लिखेंगे,
क्योंकि जो रिश्ता ही जोड़ से बनता है, उसको घटाकर या हटाकर;मेरा मतलब अलग-२ नहीं लिखा जा सकता।

पति-पत्नी का प्यार 

शादी विभिन्न धर्मों में अलग-2 रीति-रिवाजों से होती है,
पर सबसे खूबसूरती ये रिश्ता जुड़ता है,हिन्दू रीति रिवाज से।
जहां तेल,हल्दी,मेंहदी जैसे रिवाज दुल्हा व दुल्हन की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं,
वहीं जयमाला-फेरे जैसे रिवाज रंग जमा देते हैं,
फिर विदाई की रीति,
जहां से शुरू होती है,नई जिंदगी,नई प्रीति
शायद इसीलिए सदियों से चली आ रही है ये रीति।।

दोस्तों द फीलिंग ऑफ हार्ट के हर एक अंक की व्याख्या हमने रामायण के माध्यम से की है,
तो उसी श्रंखला में आगे बढ़ते हैं-
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥
जिस दिन से भगवान राम जी विवाह करके घर आये हैं, उस दिन से अयोध्या में रोज मंगलगीत व बधाई गीत गाये जा रहे हैं।
भगवान राम जी ने सीता जी को उपहार स्वरूप एक वचन दिया था,कि वो कभी दूसरी शादी नहीं करेंगे।
कुछ दिन बीते,
राम को राज्याभिषेक से पहले माता कैकेयी ने उन्हें वनवास दे दिया,सीता जी पतिव्रता स्त्री थी।
ऐसी कठिन घड़ी में ही पत्नी के प्रेम व धैर्य की परीक्षा होती है।
जो हमेशा महलों में रहीं, हमेशा सुख सुविधाओं में रहीं,
राजकुमारी बनकर रहीं, जनकदुलारी बनकर रहीं,
वो सीता माता आज पति के साथ वन जाने को तैयार हो गयीं,
यद्यपि श्री राम जी उनको चलने से मना किया,
पर जो कठिन समय में पति के साथ न चल सके,वो पत्नी नहीं हो सकती।
"जो पति के पतन में भी साथ रहे,वो पत्नी"
14साल का वनवास मिला था प्रभु राम को,
13वर्ष तक हर तरह से माता सीता,प्रभु राम के साथ रहीं।
इस दौरान प्रभु राम व लक्ष्मण जी ने कई राक्षसों का वध किया,
वन में आने के बाद,राम जी ने प्रतिज्ञा की थी,
"निश्चर हीन करूँ महि,भुज उठाये प्रण कीन"
एक दिन सुपर्णखा ने प्रभु राम से विवाह का प्रस्ताव रखा,जिसे राम जी ने ये कहकर ठुकरा दिया कि उनके साथ उनकी पत्नी जानकी हैं, वो चाहें तो लक्ष्मण जी से विवाह कर ले।
लक्ष्मण जी ने भी प्रस्ताव ठुकरा दिया,
तो वो सीता माता को मारने के लिए आगे बढ़ी,
ये देख लक्ष्मण जी ने उसके नाक कान काट दिए।
जिसका बदला लेने के लिए ,रावण ने सीता माता का हरण कर लिया।
प्रभु राम को जब ये ज्ञात हुआ कि सीता माता रावण की लंका में हैं,
तो उन्होंने हनुमान जी,सुग्रीव,अंगद व जामवंत की मदद से लंका पर आक्रमण की योजना बनाई।
चूंकि लंका जाने के लिए विशाल समुद्र को पार करना पड़ता था,
राम जी के पास न कोई विमान था,न ही मायावी सेना।
तो नल-नील की मदद से प्रभु राम ने भारत को लंका से जोड़ने के लिए पुल का निर्माण कराया,
जिसे रामसेतु के नाम से हम सभी जानते हैं।
दोस्तों इससे बढ़ा प्यार का प्रतीक दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
जो स्वयं अयोध्या के राजा हैं,
जिन्होंने पंपापुर जीतकर सुग्रीव को दे दिया,
लंका जीतकर विभीषण को दे दी,
जो चक्रवर्ती राजा हैं,
उन्होंने अपने रिश्ते को खोने नहीं दिया,
दूसरा विवाह नहीं किया,
पति का धर्म यही होता है,
पत्नी की रक्षा करना
जो कि प्रभु राम ने बखूबी निभाया।
राम जी को आदर्श इसीलिए माना गया है,
क्योंकि वो श्रेष्ठ बेटे,श्रेष्ठ भाई, श्रेष्ठ पति व श्रेष्ठ पिता हैं,
जगतपिता हैं वो।।

जो तोड़कर भी जोड़ दे है, वो हैं श्री राम
धनुष तोड़कर रिश्ता जोड़ा,
पुल बनाकर,रिश्तों के बीच पुल बांध दिया।
प्यार की डोर एक पुल की भांति ही होती है,
जो दो दिलों को जोड़े रहती है।

सत्यवान-सावित्री-

सावित्री एक राजकुमारी थी और सत्यवान लकड़हारा।
सावित्री के पिता उनके लिए योग्य वर की तलाश करके थक गए थे,तो उन्होंने सावित्री से कहा कि वो स्वयं वर चुन लें।
सावित्री इसी तलाश में निकली तो सत्यवान से बहुत प्रभावित हुईं
उनका विवाह कर दिया गया।
सत्यवान ने शादी से पहले ही बता दिया था कि उनकी आयु केवल एक साल शेष बची है,
तब भी सावित्री ने उनसे विवाह किया।
जब यमराज सत्यवान को लेने आये,
तो उन्होंने यमराज से कहा कि वो उन्हें भी साथ ले चलें,
यमराज ने उनसे मना कर दिया
ऐसे में जब सावित्री अपनी जिद पर आ गईं,तो यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस कर दिए।
ऐसे एक पत्नी का प्रेम मौत के मुंह से उसके पति को वापस ले आया।।

शिव-पार्वती-
भगवान शिव माता पार्वती से अगाध प्रेम करते हैं,
शिव अमर हैं,जबकि माता पार्वती ने हर जन्म में उन्ही का वरण किया।
शिव के गले में जो मुंडों की माला है, वो पार्वती जी के ही हर जन्म का शीश है।
माता पार्वती की मृत्यु के उपरांत,शिव जी उनके शीश को माला में लगाकर पहने रहते थे।
और जब तक माता से पुनः विवाह नहीं होता,वो समाधी में ही रहते थे।

शिव-पार्वती का प्रेम अमर है।
जयमाला सबसे पहले शिव-पार्वती ने ही डाली थी।अर्धनारीश्वर का रूप भी इसीलिए दिखाया गया है।

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धन्यवाद🙏

Wednesday, 31 October 2018

3rd Part The Feeling Of Heart

Love,"The Feeling Of Heart"

दोस्तों "द फीलिंग ऑफ हार्ट"के पहले व दूसरे भाग को आपने खूब सराहा,भरपूर प्यार व आशीर्वाद मिला।।
प्यार कहने को भले ही ढाई आखर से मिलकर बना है,पर इसे पाने में,जताने में,करने में पूरी जिंदगी लग जाती है।
पहले व दूसरे भाग में आपने क्रमशः माता के प्यार व पिता के प्यार के बारे में जाना।जहां माता की तुलना धरती व पिता की तुलना आकाश से की गई है।माँ-बाप अपनी पूरी जिंदगी अपनी औलाद को पढाने औऱ काबिल बनाने में लगा देते हैं।। 
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुये आज हम भाई-भाई-/बहिन-भाई/बहिन-बहिन के प्यार के बारे में बताने जा रहे हैं।
यूँ तो कुदरत हमें बहुत कुछ देती है,पर हम उसकी कद्र नहीं कर पाते,उसी तरह मां-बाप हमें ऐसा बहुत कुछ दे देते हैं,जो हम पूरी जिंदगी नहीं कमा सकते।
ऐसा ही अनमोल उपहार होते हैं भाई-बहिन/सहोदर के रिश्ते।।

दो कहानियों के माध्यम से आपको इन अनमोल रिश्तों के बारे में बताते हैं-:

१-भाई-भाई का रिश्ता
राम जी चार भाई थे-
राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुहन

राम जी सबसे बड़े व सभी के अत्यंत प्रिय थे,सभी भाइयों की शिक्षा-दीक्षा एक साथ हुई।विद्या ग्रहण करने के कुछ समय उपरांत ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास सहायता के लिए पहुंचे,
(ऋषि विश्वामित्र जब यज्ञ करते थे,तो राक्षस उसमें हड्डियां डाल जाते थे,सन्तों को मारते थे,अनेक प्रकार से यज्ञ में विघ्न डालते थे)
उनकी सहायतार्थ प्रभु राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ ऋषिवर के साथ चले गए,
जहां उन्होंने राक्षसों को मारा व यज्ञ/धर्म की रक्षा की।
इसके बाद ऋषिवर राम-लक्ष्मण जी को सीता स्वयंवर में लेकर गए,जहां प्रभु राम ने धनुष को तोड़ा और सीता जी से उनका विवाह हो गया।उसके बाद सीता जी की बहिनों का विवाह राम जी के भाइयों से हो गया।
राम-सीता
भरत-मांडवी
लक्ष्मण-उर्मिला
शत्रुहन-श्रुतिकीर्ति
विवाह उपरांत सब अयोध्या आ गए,ततपश्चात राम को राजा बनाने को बात हुई,दिन भी तय हो गया,
उधर नियति को कुछ और ही मंजूर था,
सुबह राम को राजा बनाया जाना था,
पर शाम को ही रानी कैकेयी ने दो वरदान मांगकर सब के अरमानों पर ये कहकर पानी फेर दिया,कि
राम को वनवास व भरत को राज्यपाठ दिया जाएगा।।
अब कथा शुरू होती है भाइयों के प्रेम की-
चूंकि सिर्फ राम जी को वनवास दिया गया था,परन्तु लक्ष्मण जी ने अविलंब साथ चलने को अनुमति मांगी,राम जी ने काफी समझाया पर लक्ष्मण जी ने एक न सुनी,
और राम जी के साथ वन को चले गए।
जब राम जी वन गए थे,उस समय भरत जी अपनी ननिहाल में थे,
वहां उनका मन अचानक ही बिचलित होने लगा,
उन्होंने अपने नाना श्री से आज्ञा ली,और अयोध्या के लिए प्रस्थान किया।
अयोध्या पहुंचकर भरत जी को ज्ञात हुआ कि उनकी मां ने उनके लिए राजगद्दी मांगी,जबकि उनके ज्येष्ठ भाई के लिए वनवास।
भरत जी के क्रोध की सीमा न रही,और उन्होंने कैकेयी को मां कहकर संबोधित भी नहीं किया।
उनको अपना हित रामजी की सेवा में दिखता था,
रामायण में इसका वर्णन भी है।
"हित हमार सिय पति सिवकाई,सो हरलीन मात कुटलाई"
इसके बाद भरतजी शत्रुहन को साथ लेकर राम जी को वापस अयोध्या लाने के लिए वन गए,
जहां रामजी ने उनसे कहा,कि मैं पिता के वचन का पालन कर रहा हूँ,मां की आज्ञा से आया हूँ,
तुम अयोध्या में राजपाठ संभालो।
भरत जी इस बात पर राजी नहीं हुए,तब राम जी ने उन्हें वापस जाने की आज्ञा दी,
जिसको उन्होंने माना,परन्तु सिंहासन पर न बैठने की बात दोहरा दी।
और राम जी की खड़ाऊं मांग ली।
दोस्तो ये भाई-भाई का प्रेम था,जिस पर अयोध्या ही नहीं सम्पूर्ण देश को नाज था।
जहां एक तरफ भरत ने राजसुख का त्याग किया,
वही लक्ष्मण जी अपनी पत्नी से अलग रहे,
शत्रुहन जी भरत जी की आज्ञानुसार कार्य करते रहे।
14 वर्ष तक अयोध्या के सिंहासन पर खड़ाऊं रखी रहीं।
आज 6 महीने राष्ट्रपति शासन लग जाये,तो भूचाल आ जाता है।
स्थिर व्यवस्था वही है,जहां राजा की अनुपस्थिति में भी सबकी उपस्थित चलती रहे,सब अनुशासित रहे।।
राम चरित मानस सिर्फ एक पुस्तक नहीं है,
जीने का ढंग सिखाती है रामायण,
ऐसे ही नहीं रामराज्य की बात की जाती है,
ऐसे ही नहीं संबिधान के प्रथम पृष्ठ पर आज भी राम विराजमान हैं।
२- भाई-बहिन का रिश्ता- 
बहिन भाई के रिश्ते के लिए हमें न इतिहास में जाने की जरूरत है न ही पौराणिक युग में।।
क्योंकि ये रिश्ता तो हर घर में खूबसूरती से निभाया जाता है,
ये वो रिश्ता होता है; जहां प्रेम की कोई सीमा नहीं होती,
अन्य किसी जरूरत नहीं होती,
जहां बिना झगड़े खाना हजम नहीं होता,
जहां झगड़ा,प्यार,तकरार सब का अपना अलग ही रंग होता है,
कहते हैं,
रिश्ते में गाँठ नहीं पड़नी चाहिए,
पर ये अपने आप में इतना अनोखा रिश्ता होता है,जो गाँठ बंधने पर और मजबूत हो जाता है।
ये गाँठ रेशम की डोरी में कलाई पर सजती है,
और प्रेम का अनोखा बन्धन बंध जाता है,
जिसे रक्षाबंधन के नाम से जाना जाता है।
रक्षाबंधन पर भाई, बहिन की रक्षा का वचन लेता है।।


कुछ महीने बाद आ जाता है भाई दूज का त्यौहार-
कहते हैं यमराज की बहन यमुना ने भाईदूज के दिन यम से ये वरदान मांगा था कि जो भी यमुना में स्नान करेगा,उसे यमपुरी नहीं जाना पड़ेगा।
ऐसी मान्यता है कि भाईदूज के दिन भाई की लंबी उम्र के लिए ही मनाया जाता है।
बहिन-भाई के प्रेम की अद्भुत मिशाल आप अपने आसपास भी देखते होंगे।
जमाना कितना ही खराब क्यों न हो गया हो,ये रिश्ता अब भी पवित्रता की नजर से ही देखा जाता है।।

३-बहिन-बहिन का रिश्ता-  
बहिनों का रिश्ता कितना प्यार भरा होता है,ये वही बता सकता है, जिसकी बहिन हो।
मुझे तो भगवान ने बड़ी बहिन भी दी है,
और छोटी भी।।
जहां बड़ी बहिन आपको निर्णय लेने में,सही-गलत का फर्क करने में मदद करती है,वहीं छोटी बहिन आपके सारे दुःख भुलबा देती है।

कहते हैं कि बड़ी बहिन मां समान होती है,और माँ दोस्त के समान।
आपकी बहिन हो,फिर किसी अन्य के साथ की जरूरत नहीं रह जाती।क्योंकि वो ऐसी दोस्त होती है,जिससे आपका कोई भी राज छुपता नहीं।।
ऐसे दोस्त से कभी डरने की भी आवश्यकता नही होती।।
फोगाट सिस्टर्स को ही देख लो,
उनकी दोस्ती ही उनके हुनर को दुनिया के सामने लाने का कारण बनीं।
न वो लड़का उनको गाली देता,न दोनों बहिनें उसको पीटतीं, न उनके घर शिकायत आती,न उनके पिता जी उनकी क्षमता को जान पाते।।


दोस्तो रिश्ता कोई भी हो,जब तक उसमें प्यार,सम्मान व मित्रता का भाव नहीं होगा,रिश्ता अभाव में रहेगा।।
मतलब रिश्ता मजबूत नहीं हो पायेगा।
हर रिश्ते को जरूरत होती,प्यार स्नेह रुपी खाद पानी की,
जिसे समय समय पर डालना मतलब जताना भी आवश्यक होता है।

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Sunday, 14 October 2018

2nd Part The Feeling of Heart

LOVE,"THE FEELING OF HEART"


दोस्तो "द फीलिंग ऑफ हार्ट" के पहले भाग को आप सभी का भरपूर प्यार मिला।
"पहले भाग में माँ के प्यार का वर्णन सीता माता के लव-कुश प्रेम व माता सती के गणेश प्रेम के माध्यम से किया गया था।
हालांकि माता के प्रेम औऱ स्नेह की और भी सच्ची कहानियां हैं,
पर यहां सभी के बारे में एक साथ लिखना सम्भव नहीं है"
इसी कड़ी में आज हम पिता के प्रेम के बारे में बताने जा रहे हैं।
दोस्तो जिस तरह धरती को माता कहा गया है,उसी प्रकार आकाश को पिता।
अर्थात पिता शब्द एक विशालता का परिचायक है, जिस प्रकार आकाश का कहीं अंत नहीं;उसी प्रकार पिता के प्रेम की विशालता का कोई अंत नहीं है।
जिस प्रकार आकाश पृथ्वी को एक आवरण की तरह ढके रहता है,
उसी प्रकार पिता; अपनी पत्नी,अपनी संतान की रक्षा के लिए हर परिस्थिति में डटा रहता है।
आपने देखा होगा कि कैसे पिता घर की बागडोर को सम्भाले रहता है।
यद्यपि कई जगह इसके अपर्याय भी देखने को मिल जाते हैं,
जैसे धरती कहीं ऊंची-नीची होती है,
जैसे आकाश के ऊपर बादल छा जाते हैं,
उसी प्रकार कभी-2 कुछ एक मां-बाप भी समय के हाथ की कठपुतली बन के रह जाते हैं,फिर वो अपनी संतान को उस तरह का प्यार-दुलार नहीं दे पाते,जैसा उनके बच्चे चाहते हैं।

पिता प्रेम की कहानी देखिये

1-
राजा दशरथ के चार पुत्र थे,जिनमें ज्येष्ठ पुत्र श्री राम थे।
महाराज को अपने चारों ही पुत्रों से अगाध प्रेम था,
जब रानी कैकेयी ने राम के लिए वनवास मांगा,तो राजा दसरथ ने उन्हें वो वरदान दे दिया।क्योंकि
"रघुकुल रीति सदा चल आयी,प्राण जाएं पर वचन न जाई" 
चूंकि राजा दशरथ जानते थे कि राम के वन जाते ही उनके प्राण निकल जाएंगे,फिर भी उन्होंने पहले अपने कुल की गरिमा का मान रखा,अपने वचन को निभाया
यही पिता के ह्रदय की विशालता होती है।
एक तरफ अपार प्रेम,दूसरी तरह उसे जाहिर भी न होने देना।।
आज भी कई घरों में ऐसी विषम परिस्थितियां सामने आ जाती है, जिनका हल पिता को ही निकालना होता है।।

2-
कंश की बहन थी देवकी,
जिनका विवाह कंश ने वशुदेव जी के साथ कर दिया था,
यूं तो कंश राक्षस था,जिसने अपने पिता को भी कारागार में डाल दिया था,किन्तु अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था।
देवकी की विदाई के समय हुई एक भविष्यवाणी ने कंश और देवकी के प्रेम में एक खाई खोदने का कार्य किया।
उस भविष्यवाणी के अनुसार देवकी वशुदेव की आठवीं सन्तान,कंश का बध करने वाली थी,इसी डर से कंश ने देवकी को मारने की ठान ली,परन्तु वशुदेव जी ने कंश से इस वादे के साथ देवकी को बचा लिया,कि वो अपनी पहली से आठवीं तक सभी सन्तान कंश को दे देंगे।
वादानुसार वशुदेब जी ने ऐसा ही किया।
आठवीं सन्तान के रूप में स्वयं भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ।
चूंकि कृष्ण विष्णु के अवतार हैं, कंश का बध करने के लिए ही धरती पर आए थे,तो उनके अनुसार ही वशुदेव जी,
कृष्ण को गोकुल लेकर गए,
भादौं की काली रात,
उस पर भी घनघोर बारिश,
जमुना भी उफान पर थी,
पर एक पिता न डरा,न डर के पीछे हटा,
जिसकी सन्तान स्वयं विधाता बनकर आये, उनकी रक्षा के लिए एक पिता ने न सिर्फ अपने प्राण संकट में डाले,अपितु अपने पुत्र की रक्षा भी की।
यही होता है पिता का प्रेम,
जो बिना कुछ कहे सबकुछ कर जाता है।

युग बदलते हैं, स्वरूप बदलते हैं,
पर भावनाएं हमेशा वही रहती हैं,
बदलता है तो सिर्फ उन्हें दर्शाने का तरीका।।
माता-पिता के प्रेम से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता,क्योंकि वो अनमोल है, इसलिए हमेशा उनका सम्मान करें,
पता नहीं कब तक का साथ ईश्वर ने आपको दिया है।।

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Sunday, 7 October 2018

The Feeling Of Heart

Love, "The feeling of heart"

प्यार- जैसे ही ये शब्द हमारे कानों में सुनाई पड़ता है,तो सिर्फ एक ही खयाल दिमाग में आता है, "लड़का-लड़की का प्यार" जिसे आम बोलचाल की भाषा में चक्कर भी कहा जाता है।
इसको हम गलत भी नहीं कह सकते,क्योंकि आमतौर पर हमारे समाज में ऐसी अवधारणा ही बन गयी है।

दोस्तों प्यार जैसे विशाल शब्द का अगर इतना सूक्ष्म अर्थ होता,तो शायद ये अबतक गायब हो गया होता।
इस एक शब्द का अर्थ हर एक के जीवन में, हर एक रिश्ते के लिए अलग-अलग होता है।
प्यार को स्नेह,लगाव,आत्मीयता जैसे शब्दों से भी जाना जाता है।

आज हम आपको मां के प्यार के बारे में बताने जा रहे हैं
मां शब्द में ही इतना प्यार समाहित होता है,जितना संसार के किसी अन्य शब्द में नहीं,शायद इसीलिए हमारे धर्म में धरती को भी मां कहकर संबोधित किया गया है।
यूं तो आपने कहानी,फिल्मों के माध्यम से मां की महिमा के बारे में सुना और देखा होगा,
पर हम आपको आदिकाल से आजतक के बारे में बताएंगे।

एक प्रसंग के माध्यम से समझाते है

दोस्तों माता पार्वती और शिव जी के पुत्र थे कर्तिकेय,और गणेश जी को माता पार्वती ने अपने प्रताप से अपने छुटाए हुए उबटन से प्रकट किया था।

माता पार्वती अपने पुत्र से अगाध प्रेम करती थी,
एक वार माता स्नान करने गयीं और बाल गणेश को पहरेदारी पर खड़ा कर गयी।माता की आज्ञा थी कि बिना उनकी अनुमति के वो किसी को अंदर न आने दें।
कुछ समय बाद शंकर भगवान वहां आये और अंदर जाने लगे,गणेश जी ने उनका काफी विरोध किया।चूंकि शंकर भगवान गणेश जी से परिचित नहीं थे,इस कारण उन्होंने गणेश जी को उनके मार्ग से हट जाने को कहा,
पर बाल गणेश ने उनकी एक न सुनी,
युद्ध हुआ,जिसमें बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।
इसी बीच माता पार्वती स्नान करके वापस गयी,
गणेश जी की ये दशा देख उनका क्रोध भड़क गया,शंकर जी के लाख समझाने पर भी मां का क्रोध शान्त न हुआ,
तब गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया।
कहने का भाव ये है कि शंकर जी से अपार प्रेम करने वाली सती ने पुत्र प्रेम के आगे पति को झुका दिया।

ऐसा ही एक व्रतांत त्रेतायुग में देखने को मिलता है
माता सीता ने राजभवन से जाने के बाद कभी उसकी तरफ पलटकर नहीं देखा,
प्रभु राम से अपार प्रेम को कभी कम न होने दिया
पर जब बात उनके पुत्रों के हक की आयी,
जब बात उनके पुत्रों की पहिचान की आयी,
तो स्वयं भरी सभा में जाकर अपनी बात कही।
वो माता सीता,जिन्होंने वन जाने के समय प्रभु राम के साथ जाना उचित समझा,किसी माता से कुछ नहीं कहा,
वो माता सीता,जिन्होंने धोबी की बात पर राजभवन से जाना उचित समझा,
वो माता सीता,जिन्होंने लंका से आने के बाद अग्नि परीक्षा दी,
पर न कभी किसी से कुछ कहा, न पूछा
उन्होंने भी अपनी संतान के लिए आवाज उठाई,
यही होता है माँ का प्रेम,जो अपनी संतान के लिए किसी भी हद तक चली जाती है।।
आज के समय की मां भी बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं।
और हो भी क्यों ना,माँ अपने बच्चे को तब से प्यार करने लगती है, जब उसने अपनी संतान को देखा भी नहीं होता।
अगर घर में कोई भी चीज कम है, तो मां अपना हिस्सा भी सन्तान को दे देती है, ये अद्भुत प्रेम है, जिसे विधाता भी नहीं समझ सकते।।
ये सिर्फ इंसानों में ही नहीं जानवरों में भी देखा जा सकता है।
शायद आपको पता न हो,
बन्दर के बच्चे के मरने के बाद भी बंदरिया उसको अपने से अलग नहीं करती।
पर हम इंसान ये कभी देख ही नहीं पाते।
हम कुत्ते के बच्चों को बेचकर अपना पेट भरते हैं,
गाय, बकरी के बच्चों को बेंचकर अपना पेट भरते हैं,
हम कभी नहीं सोचते कि जब हमारा बच्चा कुछ मिनट के लिए ना दिखे तो हम पर क्या बीतती है,
उसी तरह इन जानवरों के बच्चों को हम अलग कर देते हैं,तो उन पर क्या बीतती होगी?
सोचियेगा जरूर कि क्यों हम अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता बांध लेते हैं,
क्यों हम जीभ के स्वाद के लिए मासूम जीवो की,उनके बच्चों की हत्या कर देते हैं?
सोचिए और रोकिये।।
            To be continued


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अवधपुरी दर्शन को जाऊँ

खुश हूँ मैं बहुत सुनो खुशी का तुमको राज बताऊँ आये हैं अक्षत अवधपुरी दर्शन को जाऊँ सुनो अवधपुरी में आज सभी है देव पधारे शिव इंद्र यक्ष गंधर्व...