Saturday, 29 September 2018

Connection between Heart & Mind

दिल और दिमाग

आज जिस विषय पर हम लिखने जा रहे हैं,वो हमेशा से ही काफी चर्चा में रहा है।
दिल और दिमाग🤔
दिल या दिमाग😱
आज की भागम भाग जिंदगी में दिल लगाने वाले कहते हैं, दिमाग से मत सोचो,
औऱ दिमाग लगाने वाले कहते हैं,दिल से मत सोचो।

आज का विषय यही है -दिल और दिमाग अथवा दिल या दिमाग। इसको पढ़िए!फिर सोचिए क्या उचित रहेगा।।

दोस्तों दिल हमारे शरीर का वो अंग है जो दिमाग से पहले बन जाता है,और फिर बिना रुके,बिना थके निरन्तर कार्य करता रहता है।जबकि दिमाग योग,नींद,संगीत आदि माध्यमों से आराम कर लेता है।
दोस्तों जब भी हम प्यार में होते हैं,फिर वो प्यार किसी से भी हो;तब हम दिमाग के कहने पर भी उसकी अनसुनी कर देते हैं,जिसका खामियाजा दिल को उठाना पड़ता है।
फिर दिल से सम्बंधित कई तरह की बीमारियां अनायास ही हमको घेर लेतीं हैं।
ऐसी ही दिल और दिमाग से जुड़ी एक सत्य घटना का जिक्र हम रामायण के माध्यम से करने जा रहे हैं।

अयोध्या के महाराजा दशरथ अत्यंत वीर और प्रतापी थे,वो देवासुर संग्राम में असुरों को अपनी वीरता का परिचय दे देते थे।
देवासुर संग्राम में महाराजा दशरथ के साथ एक बार कैकेयी भी गयीं थी,उस समय रथ का पहिया रोककर रानी कैकेयी ने राजा दशरथ की जान बचाई थी,जिससे प्रसन्न होकर,
राजा ने उन्हें दो वरदान देने का वचन दे दिया था।
महाराजा दशरथ के तीन रानियां और चार पुत्र थे
राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुघन
भगवान राम का विवाह जनक की पुत्री जानकी के साथ हुआ था।
विवाह के बाद,राजा दशरथ ने विचार किया कि क्यों न अब राम को राजा बना दिया जाए,
ऐसा विचार कर वो गुरु जी के पास शुभ समय जानने गए।
गुरु जी ने कहा,शुभ समय तभी,जब राम राजा बनेंगे,
शुभष्र शीघ्रम।
जब ये बात मन्थरा(कैकेयी की दासी) को पता चली, तो उसने कैकेयी को भड़काया,और राजा दशरथ से 2वरदान मांगने को कहा।
गलत संगत के असर का श्रेष्ठतम उदाहरण है कैकेयी-मन्थरा।
रानी कैकेयी जो राम को अपना पुत्र मानती थी,
राम जिनको जननी कहते थे,
ऐसी माता कैकेयी ने अपने दिल की नहीं सुनी,
और राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया।
महाराजा दशरथ जो कि सूर्यवंशी महाप्रतापी राजा थे,ने अपनी प्रिय पत्नी को अत्यंत दुखी होकर अपने दिल की बात कही-

"जिऐ मीन बरु बारि बिहीना,मन बिनु फनिकु जिए दुख दीना
कहउँ सुभाउ न छल मन माहीं,जीवन मोर राम बिनु नाही।।"
जिसका सीधा अर्थ था,कि राम के बिना मेरा जीवन है ही नहीं।

पर कैकेयी ने दिमाग के आगे दिल की एक न सुनी,औऱ कह दिया।
"होत प्रात मुनिवेश धर,जौ न राम वन जाएं
मोर मरण,राउर अजस नृप समझेउ मन माही।।"
भगवान राम,सीता माता और लक्ष्मण जी के साथ वन को चले गए।।

दोस्तों ये कहानी आप सभी ने सुनी होगी,
पर यहां समझने वाली दो बातें हैं

1-रानी कैकेयी ने सिर्फ दिमाग की सुनी
2-राजा दशरथ ने सिर्फ दिल की

आप सोचेंगे कैसे?
कैकेयी के बारे में तो बता चुके,
राजा दशरथ के बारे में बताते हैं-
चूँकि महाराज दशरथ भगवान राम को राजा बनाने जा रहे थे,मतलब स्वयं सेवानिवृत्त हो गए थे।
और वचनानुसार राज्य भरत को दे दिया।
भगवान राम को वनवास दिया।
अब जब राम से अथाह प्रेम था,तो राम जी के साथ स्वयं भी जा सकते थे,
वरदान में ये तो शर्त नहीं थी कि स्वयं राम के साथ नहीं जा सकते।
जैसे सीता माता और लक्ष्मण जी गए,स्वयं भी चले जाते।
पर यहां दिमाग चला ही नहीं।

दोस्तों दिल की करें पर दिमाग को गिरवीं रखकर नहीं।
दिमाग की सुनें,पर दिल को दरकिनार करके नहीं।।

फिर आपको कोई छोड़ दे,आप टूटोगे नहीं,।
और आप किसी मतलब के लिए किसी से जुड़ोगे नहीं।।

अपनी राय हमे कमेंट बॉक्स में अवश्य दें।
धन्यवाद।।


7 comments:

  1. Hota jo dimag dil ka na hota bura haal dil ka.
    My english not like but do get the message in my message. Please read
    If heart had a brain
    It shouldn’t have suffered this much
    It would never have broken
    It wouldn’t have been robbed
    It wouldn’t have fallen for anyone
    It wouldn’t have loved anyone

    It wouldn’t have loved anyone

    It wouldn’t have loved anyone
    She took my heart
    And cured boredom of her heart
    She played with it for a few days
    And then she put it in her purse
    I will learn love
    I will write for you
    This bad condition of heart that is right now

    ReplyDelete
  2. Good observation and example...

    ReplyDelete
  3. Haa ye to point wali baat hai ki Shri Dashrath ji bhi jaa skte the Shri Ram ke sath... 👍
    Itna dhyan se humne Ramayana nhi padhi kbhi
    Good article 👍
    8/10 Marks.
    - Kush

    ReplyDelete

Thanks a-lot

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