🕯️दीपावली🕯️
दीपावली भारत में सनातन परम्परा का वो त्यौहार,जो हर तरह के व्यवहार को अपने आप में समाहित किए हुए है,फिर चाहे वो वैज्ञानिक हो या आध्यात्मिक👉
जहां एक तरफ लोग अपने घरों की सफाई,रंगाई,पुताई करते हैं; वहीं दूसरी तरफ स्वादिष्ट पकवान इसकी मिठास को कई गुना और बढ़ा देते हैं।
ये त्यौहार ऐसे समय पड़ता है,
जब वर्षा ऋतु के बाद कई तरह के विषैले कीट उतपन्न हो जाते हैं,तो दीपक की लौ से उनका खात्मा हो जाता है।
इतना ही नहीं,इस समय धान की फसल की कटाई शुरू हो जाती है,तो धान की खील से पूजा इत्यादि भी हो जाती है।।
दोस्तों हमारे हर बड़े से बड़े व छोटे से छोटे त्यौहार के पीछे एक वैज्ञानिक व आध्यात्मिक कारण अवश्य होता है।
दीपावली का आध्यात्मिक कारण-
भगवान राम की पत्नी जानकी का हरण लंकापति रावण ने कर लिया था,हालांकि सीता माता अत्यंत साहसी,बुद्धिमान महिला थी,
यदि सीता माता चाहतीं तो रावण को स्वयं भी दंड दे सकती थी,पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
ये सीता माता के प्रताप का ही असर था कि रावण ने माता सीता को छूने का दुस्साहस नहीं किया।
सीता माता के प्रताप से राजा जनक भली भांति परिचित थे।
बचपन की बात है,माता सीता ने महाराज जनक को खीर परोसी,
राजा जनक खीर खा ही रहे थे कि तभी माता सीता की नजर खीर में पड़े तिनके पर पड़ी,तो उन्होंने उस तिनके को गुस्से से देखा,वो तिनका देखते ही जल गया।
ये बात जनक जी ने समझ ली,और माता सीता को कहा कि क्रोध में वो किसी की तरफ न देखें,क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो उसका हस्र भी तिनके के समान ही होगा।
यदि माता सीता चाहतीं तो रावण को भी अपनी क्रोधाग्नि से जला सकती थी,पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
रावण जो कि महान ज्ञानी था,
जिसने सीता स्वयंवर के समय ही राम भगवान से कह दिया था,
"हे राम तुम्हारी वाम भृकुटि में पिता मरण वनवास लिखा,
दिस दक्ष दाहिनी दक्षिण में,इस लंकापति का नाश लिखा"
ऐसा विदित होने के बावजूद वो इस सच को समझ नहीं पाया कि सीता हरण करके उसने अपने विनाश की गाथा स्वयं लिख ली थी,
यूँ तो रावण को अंगद,हनुमान,लक्ष्मण सभी परास्त कर सकते थे पर उसका मरना नियति ने राम के हाथों ही लिखा था।
परिस्थितियां वैसी ही बनती गयी,निस्तारण भी वैसे ही होता रहा।
रावण का वध श्री राम जी ने किया,
और सीता माता को,लक्ष्मण जी के साथ सकुशल वापस अयोध्या लेकर आये।।
जब अयोध्या के लोगों को पता चला कि प्रभु राम,उनके होने वाले राजा वापस आ गए हैं, तो उन्होंने इस खुशी में दीपक जलाये, तभी से प्रतिवर्ष दीवाली मनाई जा रही है।।
जब अयोध्या के लोगों को पता चला कि प्रभु राम,उनके होने वाले राजा वापस आ गए हैं, तो उन्होंने इस खुशी में दीपक जलाये, तभी से प्रतिवर्ष दीवाली मनाई जा रही है।।
दीपावली का वैज्ञानिक महत्व-
सनातन धर्म में हर त्यौहार की पूजा पद्धति,भोजन सब कुछ वैज्ञानिक ढंग से ही होती है,
दीवाली पर धान की फसल की कटाई हो चुकी होती है।
चूंकि पहले मकान कच्चे होते थे,तो उनकी साफ सफाई,रंगाई पुताई कर दी जाती है,क्योंकि गांव में फसल को खेत से घर मे लाना होता है,
औऱ वर्षा के कारण,कीट-पतंग अधिक हो जाते हैं तो साफ सफाई से उनका भी खात्मा हो जाता है।
वैज्ञानिक कारणों से ही तेल के दीपक जलाने का चलन है।
सरसों का शुध्द तेल प्रदूषण को अवशोषित कर लेता है।
दूसरा कारण यह भी है,कि कुछ किसान धान के बजाय सरसों की खेती कर लेते हैं।
और हमारे देश की परंपरा रही है कि हम हर वस्तु को पहले भगवान को अर्पित करते हैं।
तो धान व सरसों की फसल की पूजा दीवाली पर हो जाती है।।
क्योंकि दीवाली के समय मौसम बदल चुका होता है,तो मिठाइयां एक दूसरे को देते हैं,
रसगुल्ला,गुलावजामुन,बालूशाही,इमरती,पूड़ी,कचौड़ी और न जाने कितने ही पकवान बनते हैं।।
हर त्यौहार के पकवान ऋतु के हिसाब से ही बनाये जाते हैं।
यही खूबसूरती है हमारे धर्म की,
यहां कोई चीज थोपी नहीं गयी,विज्ञान के हर पहलू को ध्यान में रखकर,हमारे ऋषियों ने शोध किये,
और पूजा पद्धति के माध्यम से सबकुछ आसान कर दिया।
अगर ये चीजें थोपी जातीं तो शायद हर कोई इसका पालन न करता,पर इतनी सरलता से सब कुछ आस्था से जोड़ के बताया,तो समाज के हर वर्ग ने खुशी से अपनाया।।
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To Be Continued

