यूँ तो राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर हर छोटे-बड़े,सत्ता पक्ष-विपक्ष के नेता, अभिनेता काफी कुछ बोलते हैं,
पर जब क्रियान्वन का नंबर आता है, तो सब भूल जाते हैं🙏🏻
नमस्कार, मैं जागृति गुप्ता; बात करने जा रही हूँ मौजूदा दौर में राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर। आप सभी अपने अपने गांव, कस्बा,तहसील,जिला, प्रदेश आदि में देखते होंगे कि लोग राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर बड़े-बड़े वक्तव्य देते हैं,पर वही लोग जब पद की बात आती है, तो महिलाओं का नाम लेना तक भूल जाते हैं, इतना ही नहीं, "महिला दिवस के अवसर पर भी महिलाओं को पीछे छोड़ स्वयं फीता काटने पहुंच जाते हैं।
और तो और यदि मंच पर कोई महिला है, तो उसको भी आगे नहीं बैठने देना चाहते,बोलने नहीं देना चाहते।और यदि कोई महिला बोल भी दे,तो उसको धीमे से किनारे कर दिया जाता है; ये बात अधिकांशतः लोगों पर सटीक बैठती है।
अब आप लोग कहेंगे कि राजनीति में महिलाएं तो काफी हैं, सभी पार्टियों में भी हैं, फिर हम ऐसी बात क्यों बोल रहे,तो दोस्तों हमने ये बात इसलिए कही है, क्योंकि हम राजनीति को काफी करीब से देख रहे हैं।
दरअसल राजनीति में महिलाओं की भागीदारी नहीं अपितु भाग्यदारी चलती है, अब आप सोचेंगे वो कैसे; तो वो ऐसे कि अधिकांशतः वो महिलाएं राजनीति में हैं, जिनके पिता,पति,ससुर आदि पहले से राजनीति में हैं।उनको सभी पार्टियां सीधे ही या चुनाव के माध्यम से पदासीन कर देतीं हैं।
यही कारण है कि राजनीति में महिलाओं का आरक्षण होने के बावजूद अपना अलग से कोई बजूद नहीं बना पाया।
98% सीटों पर महिलाएं चुनाव तब लड़तीं हैं,जब महिला सीट हो, और उसमें भी टिकट वो ही लोग ले जाते हैं, जिनके पति,पिता या ससुर उस सीट पर चुनाव लड़ते,यदि वो जनरल होती।
यही कारण है कि जब कोई महिला चुनाव जीतती है, तो कहा जाता है कि ये तो बस हस्ताक्षर करेंगी,राजनीति तो इनके परिजन ही करेंगे।
इसके उलट जो महिलाएं स्वयं निर्णय ले सकतीं हैं, जो कुछ अच्छा कर सकतीं हैं, वो कभी परिवार के कारण,कभी धन के अभाव के कारण, और अधिकतर पार्टियों में कोई पद व टिकट न मिल पाने के कारण पीछे रह जातीं हैं।
राजनीति में महिलाओं के पद देखिए, 40 लोगों की लिस्ट में 4श्रीमती होतीं हैं, और कहीं 400 से अधिक में देखने पर,2 नाम के आगे सुश्री दिखेगा,मतलब लड़कियों को राजनीति में पद न के बराबर दिया जाता है, यही कारण है कि राजनीति में आजतक महिलाओं का प्रतिशत बहुत कम है।।
इंसान ईश्वर की पूजा अर्चना तो करता है, परन्तु ईश्वर से कुछ सीखना नहीं चाहता। ब्रह्मांड में सभी प्रमुख पदों की जिम्मेदारियां देवियां ही उठा रही हैं।
क्या कहीं कुछ गड़बड़ हुई?
नहीं ना,
देवी लक्ष्मी हो,सरस्वती हों या देवी पार्वती, सभी अपने-अपने उत्तरदायित्व समान रूप बखूबी निभा रहीं हैं। हर महिला अपने घर, परिवार, समाज आदि की जिम्मेदारी बखूबी निभाती है,
इसके बाबजूद जब उसकी उपेक्षा की जाती है, तो उसका दुःखी होना स्वाभाविक ही है
जिस भारत ने दुनियाँ को नारी शक्ति से परिचित कराया,उसी देश में नारी की उपेक्षा की जाती है।जर्मनी जैसे विकासशील देश की चांसलर महिला है,बंग्लादेश जैसे कट्टर मुस्लिम देश की प्रधानमंत्री महिला है।
मौजूदा सरकार में भी महिलाएं अच्छे पदों पर है और नैतिकता के साथ अपनी जिम्मेदारी निभा रहीं हैं, इसलिए महिलाओं को कमतर मत समझिए,उनकी भागीदारी बढ़ाइए,उनके भाग्य विधाता मत बनिये।।
समय रहते सुधार कीजिये, ईश्वर आपका सहयोग करेंगे।।
-जागृति गुप्ता
प्रदेश सचिव(ABVEP)
जय श्रीराम जी 🚩🚩🙏🙏
ReplyDeleteजय श्री राम🙏🏻
Deleteआपकी सोच अच्छी है विचारधारा महिलाओं के लिए सर्वोत्तम हैं
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद🙏🏻
Deleteसुंदर लेखन ...उचित वक्तव्य ..
ReplyDeleteधन्यवाद🙏🏻
Deleteआपकी सोच को बारंबार नमस्कार।
ReplyDeleteधन्यवाद🙏🏻
Deleteसुंदर लेख
ReplyDeleteये बात कहां तक पहुंचेगी मुझे नही पता लेकिन बात आज के मौजूदा स्तर पर खरी उतरती है इस पर अमल होना चाहिये ।। जय श्री राम।।
ReplyDeleteसमझने हेतु धन्यवाद🙏🏻
Deleteजय श्री राम🚩
बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत अच्छा।
ReplyDeleteधन्यवाद🙏🏻
Deleteउत्तम, श्रेष्ठ! कृपया लिखते रहें, हमें प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteआप सभी का प्रोत्साहन ही लिखने की प्रेरणा देता है🙏🏻
Deleteधन्यवाद
सरल शब्दों में सुंदर प्रहार, भले ही हम नारी सशक्तीकरण की कितनी भी बातें कर लें किंतु इस पितृसत्तात्मक समाज मे महिलाओं के प्रति आज भी वही मानसिकता है, समय है इसे बदलने का, नीलमणि शर्मा (ट्विटर )
Deleteसत्य वचन,
Deleteजब सब जानते हैं कि बेहतर क्या है, इसके बावजूद उसको अपनाना नहीं चाहते, यही बिडंबना है।सोए हुए को जगाया जा सकता है, पर जो सोने का नाटक कर रहा हो,उसको कैसे जगाएं।फिर भी प्रयास जारी रहेगा।
अपना समय व प्रतिक्रिया देने हेतु धन्यवाद🙏🏻
जी अवश्य🙏🏻
Deleteधन्यवाद
बिल्कुल सत्य आम तौर पर सामान्य परिवार की महिलाएं राजनीति में सफल नही हो पाती है। इस देश मे महिलाओं के लिए खासकर राजनीति में दोहरा मापदंड है
ReplyDeleteसही कहा,
Deleteये बात अब समझने की आवश्यकता है, और जहां जरूरी लगे,वहां इसका विरोध भी करें🙏🏻
प्रतिक्रिया देने हेतु धन्यवाद🙏🏻
महिलाओं की राजनीति में भागीदारी इसलिए भी कम है क्योंकि उनको घर तक ही सीमित रखा गया हमेशा से ही वही चूल्हा चौका.... दूसरी ओर ज्यादातर महिलाये सीरियल प्रेमी है लगी हुई है बकवास देखने मे घर की किटपिट, रोने धोने वाले नाटक.... और बहुत ही कम संख्या वाली महिलाये सिर्फ चर्चा करती है राजनीति पर।
ReplyDeleteएक अच्छी संज्ञा दी आपने उन महिलाओं के लिए जो पहले से ही राजनीतिक परिवार से जुड़ी हैं.. "भागीदारी नहीं बल्कि भाग्यदारी".. बात एकदम सही है। Ex PM इंदिरा जी, पड़ोस की राबड़ी देवी जी, और 99% ग्राम प्रधान महिलाएं इसी भाग्यदारी वाले रास्ते से राजनीति में आई हैं। आपने एक बार प्रियंका गांधी को भी "दीवाली की झालर" की संज्ञा दी थी जो सिर्फ चुनाव में बाहर निकाली जाती हैं।�� उनका भी रूट यही है।
ReplyDeleteपरिवर्तन धीरे धीरे ही होता है। यहां भी होगा।
सुंदर लेख.. 9/10 Marks
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