Saturday, 11 July 2020

एक रिश्ता ऐसा भी

सोशल मीडिया के दिखावटी रिश्ते
कुछ ही दिन पहले बात हुई थी उससे; कि ऐसा लगने लगा था मानो जन्म जन्मांतर का रिश्ता हो।।
पहले ही दिन दीदी कहा था उसने,उसके ये शब्द मेरे जीवन में इस तरह समाए कि लगा मानों मेरा कोई बिछड़ा हुआ छोटा भाई मिल गया हो।।
चूंकि मुझे चैटिंग की बहुत आदत नहीं थी,इसलिए मैं अपनी तरफ से कभी मैसेज ना करती,पर जब भी उसका कोई मैसेज आता तो बिना एक पल की देर किए मैं रिप्लाई कर दिया करती थी।।

मैं बात कर रही थी उसकी,जिससे कुछ समय पहले ही फेसबुक पर मिली थी,चूँकि पहले ही दिन से रिश्ता भाई-बहिन का जुड़ा तो भरोसा करना स्वाभाविक था।।
एक दिन भाई ने मेरा नम्बर मांगा तो मैंने बिना किसी देरी के नम्बर दे दिया; अब तक जो बात फेसबुक पर होती थी,वो फोनकॉल व व्हाट्सएप पर होने लगी।
इसी बीच भाई ने 4-6बार मिलने के लिए बोला,हालांकि ऑनलाइन रिश्तों पर भरोसा करना मेरे स्वभाव के विपरीत था,फिरभी 1महीने बाद मैंने मिलने की हाँ कर दी।
हम मिले तो ऐसा लगा ही नहीं कि पहली बार मिले हों,
मन में बार-2 एक ही बात कचोट रही थी कि क्यों पहले ही नहीं मिल लिए।
मिलने मिलाने का शिलशिला चालू हुआ,तो मुझे भी भाई के खाने-पीने आने जाने की फिक्र होने लगी।
अब वो मैसेज करे,उससे पहले ही हम उसके खाने पीने का पूछ लेते थे।।
हमारा रिश्ता किसी सगे भाई बहन से कम नहीं था,भाई किसी से मिलने जाते तो खुद ही बताते, मेरे खाने पीने का पूछते और दिन में कम से कम 2बार कॉल करते।
सब बहुत अच्छा चल रहा था,हम लगभग हर जगह साथ ही जाते,
इसी बीच भाई ने एक दो बार अपनी एक दोस्त(जिससे कुछ महीने पहले ही उनकी दोस्ती हुई थी) से बात करवाई।
फिर कुछ समय बाद उनकी एक और दोस्त(जिससे कई सालों से दोस्ती चल रही रही थी) उनसे मिलने आयी, जिससे भाई ने हमें भी 2 बार मिलवाया।
सब बढ़िया चल रहा था,कि तभी भाई की दोनों दोस्तों का आपस में झगड़ा हो गया,
इस झगड़े ने मानों हर रिश्ते को हिलाकर रख दिया।
आरोप प्रत्यारोप चले,अंत में कुछ महीने पुरानी दोस्ती ने 6साल पुरानी दोस्ती को ग्रहण लगा दिया,

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए,गलती किसकी ये भी समझ नहीं आ रहा था।
कि भाई की उस नई दोस्त ने हमारे रिश्ते में भी टांग अडानी शुरू कर दी।
व्हाट्सएप स्टेटस पर भी चर्चा करती,
भाई जो कभी स्टेटस नहीं देखते थे,उनके कहने पर स्टेटस देख लिया करते।
अब भाई को बहन के ना किसी मैसेज के रिप्लाई से मतलब था न कॉल से,
मन होता तो मैसेज/कॉल करते,
नहीं तो सिर्फ अपनी नई दोस्त को ही पूरा समय देते।।
एक दिन उनकी दोस्त का मेरे पास कॉल आया कि आपके भाई से मेरा झगड़ा हुआ है, उनको आप अपने यहाँ बुला लो।
झगड़े की बात सुनते ही मेरा दिमाग खराब हो गया।
वो इंसान जिसकी बजह से भाई ने सबसे रिश्ते लगभग खत्म कर दिए,वो अपने झगड़े की बात कर रही थी।
इसी गुस्से में मैंने उनको मैसेज करके बोल दिया कि अपनी समस्याओं को अपने तक रखो, हर समय भाई को इनवॉल्व मत किया करो।
भाई की कुछ दिनों से तबियत भी खराब चल रही थी।
मेरा इतना कहना था कि मेरे इंटेंशन को समझे बिना,भाई ने मुझे ही 4बातें सुना डाली,जबकि उनकी दोस्त पहले ही मुझे सुना चुकी थी।।
उस दिन के बात 8-10 दिनों तक मेरी भाई से कोई बात नहीं हुई।
फिर एक दिन भाई की कॉल आयी,तो सोचा गुस्से में बोल गए होंगे,सब नॉर्मल कर देते हैं।
हर भाई बहन में झगड़ा होता है।
15दिन बाद मेरा जन्मदिन था, भाई की रात को कॉल आयी; हम काफी खुश थे,सोचा जन्मदिन भाई के साथ ही सेलेब्रेट करेंगे.,
पर जैसा सोचो,वैसा होता कहां है।
मेरे कहने पर भाई उस दिन एक प्रोग्राम में आये पर मुझसे ठीक से बात तक नहीं की,
मेरी किसी बात का कोई सीधा जबाव तक नहीं दिया।
उस दिन लगा मानों जिस रिश्ते को हम सहेजने की कोशिश कर रहे थे,वो शायद उस दिन पूरी तरह बिखर चुका था।
रोते गाते हम घर पहुंच गए,पर आज ना कोई मैसेज था,
ना कॉल।।
पहले जो कमरे तक छोड़ने आते थे,आज बीच रास्ते छोड़ चुके थे।
कुछ मैसेज हमने कर दिए तो कुछ उनके आ गए,
लिखित में तो वो लास्ट मैसेज थे।
अगले दिन भाई की छोटी फेसबुक बहन ने मुझे और भाई को मिलने बुलाया,सोचा शायद ये रिश्ता बच जाए,इस उम्मीद से वहाँ पहुँचे।
पर हम वहां भी गलत साबित हुए।
इस बार भाई ने उस छोटी बहन का लिहाज किये बिना,
उसके सामने ही हमारे रिश्ते की बैंड बजा दी।
रिश्ता तोड़ने का कारण,मेरा खाने पीने के लिए पूछना,
उनका समय से घर आना जाना,इत्यादि बताया।
उस दिन ना मेरी कसम की कोई कीमत थी,ना मां की कसम की।
न रिश्ते की कोई मर्यादा।
वो बातें जिनकी बजह से रिश्ता जुड़ा था,
वही केयर आज रिश्ता टूटने की बजह बनी थी...

Note- ये कोई कहानी नहीं, बल्कि वो सच है,जिसे लोग आजकल जी रहे हैं।।
और इससे मुझे या मेरे किसी रिश्ते को ना जोड़कर ना देखें।
एक और सच्ची कहानी के साथ फिर हाजिर होंगे🙏
अपनी प्रतिक्रिया इस विषय पर अवश्य दें।।

To be continued...

Saturday, 6 June 2020

Lock Down

ज़िन्दगी हमेशा की तरह चली जा रही थी,
वही रास्ते,
वही रोज के काम,
वही सोना
वही जगना
कि अचानक कोरोना नामक वायरस ने चीन में दस्तक दे दी।
देश-दुनियाँ की खबरों के माध्यम से हम सभी चीन में इस वायरस के फैलने और उससे होने वाली मौतों के बारे में सुन रहे थे।
इस भय से अंजान कि आखिर हमारे देश की सीमा भी चीन से मिलती है,हम बिना किसी चिंता-आशंका के अपने जीवन में व्यस्त थे।।
कि तभी देश की तरफ तेजी से आते कोरोना नामक खतरे को हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने भांपा और सभी एयरपोर्ट पर थर्मल स्क्रीनिंग शुरू कर दी।
पर कहते हैं ना कि किस्मत चार पैर आगे चलती है, जिसको हम एयरपोर्ट पर ही रोकने का प्रयास कर रहे थे,वो तो पहले ही देश के अंदर आ चुके थे।
जी हाँ, जब तक प्रधानमंत्री जी ने अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर रोक लगाई,तब तक कोरोना देश की वित्तीय राजधानी में दस्तक दे चुका था।
अब बारी थी इसे घर में ही रोकने की,
इसलिए सबसे पहली बार जनता कर्फ्यू का आवाहन किया गया; जिसे हँसी खुशी हम सभी ने माना और सांय 6बजे ताली थाली घण्टा, शंख आदि से अपने देश के वीर सैनिकों,डॉक्टरों व अन्य सेवा कर्मियों का धन्यवाद किया।।

अभी आमजन इसकी भयाभयता से अंजान ही थे,
कोरोना के मामले बढ़ते देख माननीय प्रधानमंत्री जी ने देश मे पहले लॉक डाउन वन की घोषणा कर दी।।
लॉकडाउन होते ही राज्यों ने अपनी सीमाएं लॉक कर दी,
रेलवे,एयरवेज, सब बन्द कर दिए गए,
जो जहां था वहीं फंसा, लॉक डाउन खुलने का इंतजार कर रहा था।।

Sunday, 19 January 2020

30Years Of KashmiriPandit Exodus

कश्मीरी पंडित
दोस्तों आज कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को निकले 30 साल पूरे हो गए,पर अफसोस कि उन्हें उनका घर आजतक वापस ना मिला,
उनको न्याय नहीं मिला।।
इसके पीछे राजनैतिक कारण ही रहे।
पर दोस्तो क्या अपने कभी सोचा कि क्यों भारत में हिंदू ही सताया गया,कैसे हम गुलाम बने।
यदि नहीं सोचा तो अब सोचिए

1990 में कश्मीर की मस्जिदों से ये एलान किया गया कि या तो कश्मीरी पंडित अपना धर्म बदल लें,या घर छोड़ दें।।
उस समय जम्मू कश्मीर में फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे,
और देश में कांग्रेस की सरकार थी,सत्ताधारी पार्टी के किसी नेता ने इसका विरोध नहीं किया।
नतीजा ये निकला कि तमाम कश्मीरी पंडितों का कत्ल कर दिया गया,महिलाओं का बलात्कार किया गया,
किसी को जिंदा ही तेजाब में डाल दिया गया।
पर अफसोस इतने वर्षों तक सरकारों ने कुछ ना किया
अफसोस हिन्दू सब देखकर सोता रहा।।

1992 में जब आपने बाबरी विध्वंस किया,तभी यदि कश्मीर की तरफ भी कूच कर जाते,
तो आज देश को CAA की जरूरत ना रह जाती,
आज सब अपने घरों में होते,
और किसी भी इस्लामिल संगठन की हिम्मत ना होती हम पर गुर्राने की।
उस समय इंटरनेट की सुविधा नहीं थी,
सोशल मीडिया नहीं था,
अखबार में वो आता,जो सरकार या मालिक चाहता
और चैनल का भी वही हाल था।

हमारे देश के गुलाम होने के पीछे भी यही कारण था,
अलग अलग राज्य मुगलों से लड़ते रहे,
संगठित होकर नहीं लड़े,
यदि हम संगठित होकर लड़ते,तो कोई भी देश समुद्री सीमा पार करके हमारे देश पर आक्रमण ही नहीं कर पाते।।

हम अपने अपनों को बचाते रहे,और एक दिन अपनों को भी गंवा बैठे।

इतिहास फिर से दोहरा रहा है,
हम पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को जो 31/दिसंबर/2014 के पहले भारत में आ गए,भारत उन्हें नागरिकता दे रहा है
यहां हम सब एक ही तरह के लोग अपनी जान बचाने के खातिर एक ही जगह(भारत) एकत्र हो जाएंगे,
फिर एक दिन या तो आक्रमण हो जाएगा,
या उड़ा दिए जाएंगे।
बेहतर होगा यदि हम संगठित रहें,किसी भी देश में क्यों ना हो,हम अपनों की मदद करें,क्योंकि हिंदुओं का कोई देश नहीं बचा विश्व में,क्योंकि भारत भी सेक्युलर है।
सच पूछो तो विश्व पटल पर हिंदू ही अल्पसंख्यक है।।

हमें सीखना होगा त्रेतायुग से,
राम जी ने सुग्रीव की मदद करके पंपापुर को बाली से मुक्त कराया और सुग्रीव को वहां का राजा बना दिया।
यही लंका में किया,रावण को मारकर शांति स्थापित की और विभीषण को वहां का राजा बनाया।
वही आज की सरकार करे,
बेशक 2014 से पहले आये लोगों को नागरिकता दे;
पर साथ ही पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश पर ऐसी कार्यवाही भी करे,ताकि वहां के किसी अल्पसंख्यक को फिर भारत में शरण लेने के लिए ना सोचना पड़े।
वो जहां रहें,ससम्मान रहें,हक से रहें।।

मोदी जी ने इस तरफ सुधार का कदम बढ़ाया है,पर कांग्रेस जैसी पार्टियों ने विरोध शुरू कर दिया।
कश्मीरी पंडितों को उनका घर दिलवाए,उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करे।।

अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें।।

अवधपुरी दर्शन को जाऊँ

खुश हूँ मैं बहुत सुनो खुशी का तुमको राज बताऊँ आये हैं अक्षत अवधपुरी दर्शन को जाऊँ सुनो अवधपुरी में आज सभी है देव पधारे शिव इंद्र यक्ष गंधर्व...