Sunday, 14 October 2018

2nd Part The Feeling of Heart

LOVE,"THE FEELING OF HEART"


दोस्तो "द फीलिंग ऑफ हार्ट" के पहले भाग को आप सभी का भरपूर प्यार मिला।
"पहले भाग में माँ के प्यार का वर्णन सीता माता के लव-कुश प्रेम व माता सती के गणेश प्रेम के माध्यम से किया गया था।
हालांकि माता के प्रेम औऱ स्नेह की और भी सच्ची कहानियां हैं,
पर यहां सभी के बारे में एक साथ लिखना सम्भव नहीं है"
इसी कड़ी में आज हम पिता के प्रेम के बारे में बताने जा रहे हैं।
दोस्तो जिस तरह धरती को माता कहा गया है,उसी प्रकार आकाश को पिता।
अर्थात पिता शब्द एक विशालता का परिचायक है, जिस प्रकार आकाश का कहीं अंत नहीं;उसी प्रकार पिता के प्रेम की विशालता का कोई अंत नहीं है।
जिस प्रकार आकाश पृथ्वी को एक आवरण की तरह ढके रहता है,
उसी प्रकार पिता; अपनी पत्नी,अपनी संतान की रक्षा के लिए हर परिस्थिति में डटा रहता है।
आपने देखा होगा कि कैसे पिता घर की बागडोर को सम्भाले रहता है।
यद्यपि कई जगह इसके अपर्याय भी देखने को मिल जाते हैं,
जैसे धरती कहीं ऊंची-नीची होती है,
जैसे आकाश के ऊपर बादल छा जाते हैं,
उसी प्रकार कभी-2 कुछ एक मां-बाप भी समय के हाथ की कठपुतली बन के रह जाते हैं,फिर वो अपनी संतान को उस तरह का प्यार-दुलार नहीं दे पाते,जैसा उनके बच्चे चाहते हैं।

पिता प्रेम की कहानी देखिये

1-
राजा दशरथ के चार पुत्र थे,जिनमें ज्येष्ठ पुत्र श्री राम थे।
महाराज को अपने चारों ही पुत्रों से अगाध प्रेम था,
जब रानी कैकेयी ने राम के लिए वनवास मांगा,तो राजा दसरथ ने उन्हें वो वरदान दे दिया।क्योंकि
"रघुकुल रीति सदा चल आयी,प्राण जाएं पर वचन न जाई" 
चूंकि राजा दशरथ जानते थे कि राम के वन जाते ही उनके प्राण निकल जाएंगे,फिर भी उन्होंने पहले अपने कुल की गरिमा का मान रखा,अपने वचन को निभाया
यही पिता के ह्रदय की विशालता होती है।
एक तरफ अपार प्रेम,दूसरी तरह उसे जाहिर भी न होने देना।।
आज भी कई घरों में ऐसी विषम परिस्थितियां सामने आ जाती है, जिनका हल पिता को ही निकालना होता है।।

2-
कंश की बहन थी देवकी,
जिनका विवाह कंश ने वशुदेव जी के साथ कर दिया था,
यूं तो कंश राक्षस था,जिसने अपने पिता को भी कारागार में डाल दिया था,किन्तु अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था।
देवकी की विदाई के समय हुई एक भविष्यवाणी ने कंश और देवकी के प्रेम में एक खाई खोदने का कार्य किया।
उस भविष्यवाणी के अनुसार देवकी वशुदेव की आठवीं सन्तान,कंश का बध करने वाली थी,इसी डर से कंश ने देवकी को मारने की ठान ली,परन्तु वशुदेव जी ने कंश से इस वादे के साथ देवकी को बचा लिया,कि वो अपनी पहली से आठवीं तक सभी सन्तान कंश को दे देंगे।
वादानुसार वशुदेब जी ने ऐसा ही किया।
आठवीं सन्तान के रूप में स्वयं भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ।
चूंकि कृष्ण विष्णु के अवतार हैं, कंश का बध करने के लिए ही धरती पर आए थे,तो उनके अनुसार ही वशुदेव जी,
कृष्ण को गोकुल लेकर गए,
भादौं की काली रात,
उस पर भी घनघोर बारिश,
जमुना भी उफान पर थी,
पर एक पिता न डरा,न डर के पीछे हटा,
जिसकी सन्तान स्वयं विधाता बनकर आये, उनकी रक्षा के लिए एक पिता ने न सिर्फ अपने प्राण संकट में डाले,अपितु अपने पुत्र की रक्षा भी की।
यही होता है पिता का प्रेम,
जो बिना कुछ कहे सबकुछ कर जाता है।

युग बदलते हैं, स्वरूप बदलते हैं,
पर भावनाएं हमेशा वही रहती हैं,
बदलता है तो सिर्फ उन्हें दर्शाने का तरीका।।
माता-पिता के प्रेम से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता,क्योंकि वो अनमोल है, इसलिए हमेशा उनका सम्मान करें,
पता नहीं कब तक का साथ ईश्वर ने आपको दिया है।।

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To Be Continued

Sunday, 7 October 2018

The Feeling Of Heart

Love, "The feeling of heart"

प्यार- जैसे ही ये शब्द हमारे कानों में सुनाई पड़ता है,तो सिर्फ एक ही खयाल दिमाग में आता है, "लड़का-लड़की का प्यार" जिसे आम बोलचाल की भाषा में चक्कर भी कहा जाता है।
इसको हम गलत भी नहीं कह सकते,क्योंकि आमतौर पर हमारे समाज में ऐसी अवधारणा ही बन गयी है।

दोस्तों प्यार जैसे विशाल शब्द का अगर इतना सूक्ष्म अर्थ होता,तो शायद ये अबतक गायब हो गया होता।
इस एक शब्द का अर्थ हर एक के जीवन में, हर एक रिश्ते के लिए अलग-अलग होता है।
प्यार को स्नेह,लगाव,आत्मीयता जैसे शब्दों से भी जाना जाता है।

आज हम आपको मां के प्यार के बारे में बताने जा रहे हैं
मां शब्द में ही इतना प्यार समाहित होता है,जितना संसार के किसी अन्य शब्द में नहीं,शायद इसीलिए हमारे धर्म में धरती को भी मां कहकर संबोधित किया गया है।
यूं तो आपने कहानी,फिल्मों के माध्यम से मां की महिमा के बारे में सुना और देखा होगा,
पर हम आपको आदिकाल से आजतक के बारे में बताएंगे।

एक प्रसंग के माध्यम से समझाते है

दोस्तों माता पार्वती और शिव जी के पुत्र थे कर्तिकेय,और गणेश जी को माता पार्वती ने अपने प्रताप से अपने छुटाए हुए उबटन से प्रकट किया था।

माता पार्वती अपने पुत्र से अगाध प्रेम करती थी,
एक वार माता स्नान करने गयीं और बाल गणेश को पहरेदारी पर खड़ा कर गयी।माता की आज्ञा थी कि बिना उनकी अनुमति के वो किसी को अंदर न आने दें।
कुछ समय बाद शंकर भगवान वहां आये और अंदर जाने लगे,गणेश जी ने उनका काफी विरोध किया।चूंकि शंकर भगवान गणेश जी से परिचित नहीं थे,इस कारण उन्होंने गणेश जी को उनके मार्ग से हट जाने को कहा,
पर बाल गणेश ने उनकी एक न सुनी,
युद्ध हुआ,जिसमें बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।
इसी बीच माता पार्वती स्नान करके वापस गयी,
गणेश जी की ये दशा देख उनका क्रोध भड़क गया,शंकर जी के लाख समझाने पर भी मां का क्रोध शान्त न हुआ,
तब गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया।
कहने का भाव ये है कि शंकर जी से अपार प्रेम करने वाली सती ने पुत्र प्रेम के आगे पति को झुका दिया।

ऐसा ही एक व्रतांत त्रेतायुग में देखने को मिलता है
माता सीता ने राजभवन से जाने के बाद कभी उसकी तरफ पलटकर नहीं देखा,
प्रभु राम से अपार प्रेम को कभी कम न होने दिया
पर जब बात उनके पुत्रों के हक की आयी,
जब बात उनके पुत्रों की पहिचान की आयी,
तो स्वयं भरी सभा में जाकर अपनी बात कही।
वो माता सीता,जिन्होंने वन जाने के समय प्रभु राम के साथ जाना उचित समझा,किसी माता से कुछ नहीं कहा,
वो माता सीता,जिन्होंने धोबी की बात पर राजभवन से जाना उचित समझा,
वो माता सीता,जिन्होंने लंका से आने के बाद अग्नि परीक्षा दी,
पर न कभी किसी से कुछ कहा, न पूछा
उन्होंने भी अपनी संतान के लिए आवाज उठाई,
यही होता है माँ का प्रेम,जो अपनी संतान के लिए किसी भी हद तक चली जाती है।।
आज के समय की मां भी बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं।
और हो भी क्यों ना,माँ अपने बच्चे को तब से प्यार करने लगती है, जब उसने अपनी संतान को देखा भी नहीं होता।
अगर घर में कोई भी चीज कम है, तो मां अपना हिस्सा भी सन्तान को दे देती है, ये अद्भुत प्रेम है, जिसे विधाता भी नहीं समझ सकते।।
ये सिर्फ इंसानों में ही नहीं जानवरों में भी देखा जा सकता है।
शायद आपको पता न हो,
बन्दर के बच्चे के मरने के बाद भी बंदरिया उसको अपने से अलग नहीं करती।
पर हम इंसान ये कभी देख ही नहीं पाते।
हम कुत्ते के बच्चों को बेचकर अपना पेट भरते हैं,
गाय, बकरी के बच्चों को बेंचकर अपना पेट भरते हैं,
हम कभी नहीं सोचते कि जब हमारा बच्चा कुछ मिनट के लिए ना दिखे तो हम पर क्या बीतती है,
उसी तरह इन जानवरों के बच्चों को हम अलग कर देते हैं,तो उन पर क्या बीतती होगी?
सोचियेगा जरूर कि क्यों हम अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता बांध लेते हैं,
क्यों हम जीभ के स्वाद के लिए मासूम जीवो की,उनके बच्चों की हत्या कर देते हैं?
सोचिए और रोकिये।।
            To be continued


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Saturday, 6 October 2018

रामसेतु/Adom's Bridge

रामसेतु
जिसके बारे में हम सभी ने राम कथा या रामचरित मानस के माध्यम से सुना है।
दोस्तों ये वही सेतु है,जो नल-नील ने राम नाम के पत्थरों से बनाया था,जिसको पार करके प्रभु श्री राम लंका पहुंचे थे।
ऐसे बहुत से लोग हमारे समाज में मौजूद हैं,जो भगवान राम को सिर्फ एक काल्पनिक पात्र मानते हैं,
जिनको लगता है कि रामकथा एक कपोल कल्पित कथा है,
जबकि भारत ही नहीं बल्कि इंडोनेशिया,नेपाल जैसे देश आज भी राम को भगवान की तरह ही पूजते हैं।
कुछ वर्ष पूर्व कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में राम जी के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए थे,
जबकि आज वही पार्टी लोगों को छलने के लिए चित्रकूट में राम वन गमन पथ पर रथ यात्रा निकाल रही है।
कांग्रेस पार्टी ने तो अपने "सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट" के तहत राम सेतु को तुड़वाने के लिए समुद्र तक RDX व मशीनें भी भेज दी थी,
पर डॉ सुब्रमण्यम स्वामी जी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाल कर इस पर रोक लगवा दी थी।
इस याचिका की कहानी भी काफी दिलचस्प है-

रामसेतु टूटने की सूचना जब डॉ स्वामी को मिली तो वो तुरन्त उस पर स्टे लेने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे,पर उस समय चीफ जस्टिस को विदेश जाना था,और वो चले गए।
इस पर डॉ स्वामी ने दूसरे जज से बात की और उनको पूरी समस्या से अवगत कराया,साथ ही उनसे ये भी कहा कि चीफ जस्टिस की गैर हाजिरी में सीनियर मोस्ट जज इस पर अपना निर्णय दे सकते हैं,
ये सीनियर जज कोई और नहीं बल्कि बी एन अग्रवाल जी ही थे,जिनसे डॉ स्वामी बात कर रहे थे।
तुरन्त सुनवाई हुई,और बी एन अग्रवाल जी ने राम सेतु पर स्टे ऑर्डर दे दिया,और इस तरह राम सेतु को बचा लिया गया।।


अभी डॉ स्वामी रामसेतु को नेशनल हेरिटेज घोषित करवाना चाहते हैं,जिस पर सुप्रीम कोर्ट जल्द ही अपना निर्णय देगा।

रामसेतु को ही एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है।
नाशा द्वारा भी राम सेतु की पुष्टि हुई है, जिसका वीडियो आप देख सकते हैं👇



अवधपुरी दर्शन को जाऊँ

खुश हूँ मैं बहुत सुनो खुशी का तुमको राज बताऊँ आये हैं अक्षत अवधपुरी दर्शन को जाऊँ सुनो अवधपुरी में आज सभी है देव पधारे शिव इंद्र यक्ष गंधर्व...