Wednesday, 31 October 2018

3rd Part The Feeling Of Heart

Love,"The Feeling Of Heart"

दोस्तों "द फीलिंग ऑफ हार्ट"के पहले व दूसरे भाग को आपने खूब सराहा,भरपूर प्यार व आशीर्वाद मिला।।
प्यार कहने को भले ही ढाई आखर से मिलकर बना है,पर इसे पाने में,जताने में,करने में पूरी जिंदगी लग जाती है।
पहले व दूसरे भाग में आपने क्रमशः माता के प्यार व पिता के प्यार के बारे में जाना।जहां माता की तुलना धरती व पिता की तुलना आकाश से की गई है।माँ-बाप अपनी पूरी जिंदगी अपनी औलाद को पढाने औऱ काबिल बनाने में लगा देते हैं।। 
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुये आज हम भाई-भाई-/बहिन-भाई/बहिन-बहिन के प्यार के बारे में बताने जा रहे हैं।
यूँ तो कुदरत हमें बहुत कुछ देती है,पर हम उसकी कद्र नहीं कर पाते,उसी तरह मां-बाप हमें ऐसा बहुत कुछ दे देते हैं,जो हम पूरी जिंदगी नहीं कमा सकते।
ऐसा ही अनमोल उपहार होते हैं भाई-बहिन/सहोदर के रिश्ते।।

दो कहानियों के माध्यम से आपको इन अनमोल रिश्तों के बारे में बताते हैं-:

१-भाई-भाई का रिश्ता
राम जी चार भाई थे-
राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुहन

राम जी सबसे बड़े व सभी के अत्यंत प्रिय थे,सभी भाइयों की शिक्षा-दीक्षा एक साथ हुई।विद्या ग्रहण करने के कुछ समय उपरांत ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास सहायता के लिए पहुंचे,
(ऋषि विश्वामित्र जब यज्ञ करते थे,तो राक्षस उसमें हड्डियां डाल जाते थे,सन्तों को मारते थे,अनेक प्रकार से यज्ञ में विघ्न डालते थे)
उनकी सहायतार्थ प्रभु राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ ऋषिवर के साथ चले गए,
जहां उन्होंने राक्षसों को मारा व यज्ञ/धर्म की रक्षा की।
इसके बाद ऋषिवर राम-लक्ष्मण जी को सीता स्वयंवर में लेकर गए,जहां प्रभु राम ने धनुष को तोड़ा और सीता जी से उनका विवाह हो गया।उसके बाद सीता जी की बहिनों का विवाह राम जी के भाइयों से हो गया।
राम-सीता
भरत-मांडवी
लक्ष्मण-उर्मिला
शत्रुहन-श्रुतिकीर्ति
विवाह उपरांत सब अयोध्या आ गए,ततपश्चात राम को राजा बनाने को बात हुई,दिन भी तय हो गया,
उधर नियति को कुछ और ही मंजूर था,
सुबह राम को राजा बनाया जाना था,
पर शाम को ही रानी कैकेयी ने दो वरदान मांगकर सब के अरमानों पर ये कहकर पानी फेर दिया,कि
राम को वनवास व भरत को राज्यपाठ दिया जाएगा।।
अब कथा शुरू होती है भाइयों के प्रेम की-
चूंकि सिर्फ राम जी को वनवास दिया गया था,परन्तु लक्ष्मण जी ने अविलंब साथ चलने को अनुमति मांगी,राम जी ने काफी समझाया पर लक्ष्मण जी ने एक न सुनी,
और राम जी के साथ वन को चले गए।
जब राम जी वन गए थे,उस समय भरत जी अपनी ननिहाल में थे,
वहां उनका मन अचानक ही बिचलित होने लगा,
उन्होंने अपने नाना श्री से आज्ञा ली,और अयोध्या के लिए प्रस्थान किया।
अयोध्या पहुंचकर भरत जी को ज्ञात हुआ कि उनकी मां ने उनके लिए राजगद्दी मांगी,जबकि उनके ज्येष्ठ भाई के लिए वनवास।
भरत जी के क्रोध की सीमा न रही,और उन्होंने कैकेयी को मां कहकर संबोधित भी नहीं किया।
उनको अपना हित रामजी की सेवा में दिखता था,
रामायण में इसका वर्णन भी है।
"हित हमार सिय पति सिवकाई,सो हरलीन मात कुटलाई"
इसके बाद भरतजी शत्रुहन को साथ लेकर राम जी को वापस अयोध्या लाने के लिए वन गए,
जहां रामजी ने उनसे कहा,कि मैं पिता के वचन का पालन कर रहा हूँ,मां की आज्ञा से आया हूँ,
तुम अयोध्या में राजपाठ संभालो।
भरत जी इस बात पर राजी नहीं हुए,तब राम जी ने उन्हें वापस जाने की आज्ञा दी,
जिसको उन्होंने माना,परन्तु सिंहासन पर न बैठने की बात दोहरा दी।
और राम जी की खड़ाऊं मांग ली।
दोस्तो ये भाई-भाई का प्रेम था,जिस पर अयोध्या ही नहीं सम्पूर्ण देश को नाज था।
जहां एक तरफ भरत ने राजसुख का त्याग किया,
वही लक्ष्मण जी अपनी पत्नी से अलग रहे,
शत्रुहन जी भरत जी की आज्ञानुसार कार्य करते रहे।
14 वर्ष तक अयोध्या के सिंहासन पर खड़ाऊं रखी रहीं।
आज 6 महीने राष्ट्रपति शासन लग जाये,तो भूचाल आ जाता है।
स्थिर व्यवस्था वही है,जहां राजा की अनुपस्थिति में भी सबकी उपस्थित चलती रहे,सब अनुशासित रहे।।
राम चरित मानस सिर्फ एक पुस्तक नहीं है,
जीने का ढंग सिखाती है रामायण,
ऐसे ही नहीं रामराज्य की बात की जाती है,
ऐसे ही नहीं संबिधान के प्रथम पृष्ठ पर आज भी राम विराजमान हैं।
२- भाई-बहिन का रिश्ता- 
बहिन भाई के रिश्ते के लिए हमें न इतिहास में जाने की जरूरत है न ही पौराणिक युग में।।
क्योंकि ये रिश्ता तो हर घर में खूबसूरती से निभाया जाता है,
ये वो रिश्ता होता है; जहां प्रेम की कोई सीमा नहीं होती,
अन्य किसी जरूरत नहीं होती,
जहां बिना झगड़े खाना हजम नहीं होता,
जहां झगड़ा,प्यार,तकरार सब का अपना अलग ही रंग होता है,
कहते हैं,
रिश्ते में गाँठ नहीं पड़नी चाहिए,
पर ये अपने आप में इतना अनोखा रिश्ता होता है,जो गाँठ बंधने पर और मजबूत हो जाता है।
ये गाँठ रेशम की डोरी में कलाई पर सजती है,
और प्रेम का अनोखा बन्धन बंध जाता है,
जिसे रक्षाबंधन के नाम से जाना जाता है।
रक्षाबंधन पर भाई, बहिन की रक्षा का वचन लेता है।।


कुछ महीने बाद आ जाता है भाई दूज का त्यौहार-
कहते हैं यमराज की बहन यमुना ने भाईदूज के दिन यम से ये वरदान मांगा था कि जो भी यमुना में स्नान करेगा,उसे यमपुरी नहीं जाना पड़ेगा।
ऐसी मान्यता है कि भाईदूज के दिन भाई की लंबी उम्र के लिए ही मनाया जाता है।
बहिन-भाई के प्रेम की अद्भुत मिशाल आप अपने आसपास भी देखते होंगे।
जमाना कितना ही खराब क्यों न हो गया हो,ये रिश्ता अब भी पवित्रता की नजर से ही देखा जाता है।।

३-बहिन-बहिन का रिश्ता-  
बहिनों का रिश्ता कितना प्यार भरा होता है,ये वही बता सकता है, जिसकी बहिन हो।
मुझे तो भगवान ने बड़ी बहिन भी दी है,
और छोटी भी।।
जहां बड़ी बहिन आपको निर्णय लेने में,सही-गलत का फर्क करने में मदद करती है,वहीं छोटी बहिन आपके सारे दुःख भुलबा देती है।

कहते हैं कि बड़ी बहिन मां समान होती है,और माँ दोस्त के समान।
आपकी बहिन हो,फिर किसी अन्य के साथ की जरूरत नहीं रह जाती।क्योंकि वो ऐसी दोस्त होती है,जिससे आपका कोई भी राज छुपता नहीं।।
ऐसे दोस्त से कभी डरने की भी आवश्यकता नही होती।।
फोगाट सिस्टर्स को ही देख लो,
उनकी दोस्ती ही उनके हुनर को दुनिया के सामने लाने का कारण बनीं।
न वो लड़का उनको गाली देता,न दोनों बहिनें उसको पीटतीं, न उनके घर शिकायत आती,न उनके पिता जी उनकी क्षमता को जान पाते।।


दोस्तो रिश्ता कोई भी हो,जब तक उसमें प्यार,सम्मान व मित्रता का भाव नहीं होगा,रिश्ता अभाव में रहेगा।।
मतलब रिश्ता मजबूत नहीं हो पायेगा।
हर रिश्ते को जरूरत होती,प्यार स्नेह रुपी खाद पानी की,
जिसे समय समय पर डालना मतलब जताना भी आवश्यक होता है।

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धन्यवाद🙏
 To Be Continued

Sunday, 14 October 2018

2nd Part The Feeling of Heart

LOVE,"THE FEELING OF HEART"


दोस्तो "द फीलिंग ऑफ हार्ट" के पहले भाग को आप सभी का भरपूर प्यार मिला।
"पहले भाग में माँ के प्यार का वर्णन सीता माता के लव-कुश प्रेम व माता सती के गणेश प्रेम के माध्यम से किया गया था।
हालांकि माता के प्रेम औऱ स्नेह की और भी सच्ची कहानियां हैं,
पर यहां सभी के बारे में एक साथ लिखना सम्भव नहीं है"
इसी कड़ी में आज हम पिता के प्रेम के बारे में बताने जा रहे हैं।
दोस्तो जिस तरह धरती को माता कहा गया है,उसी प्रकार आकाश को पिता।
अर्थात पिता शब्द एक विशालता का परिचायक है, जिस प्रकार आकाश का कहीं अंत नहीं;उसी प्रकार पिता के प्रेम की विशालता का कोई अंत नहीं है।
जिस प्रकार आकाश पृथ्वी को एक आवरण की तरह ढके रहता है,
उसी प्रकार पिता; अपनी पत्नी,अपनी संतान की रक्षा के लिए हर परिस्थिति में डटा रहता है।
आपने देखा होगा कि कैसे पिता घर की बागडोर को सम्भाले रहता है।
यद्यपि कई जगह इसके अपर्याय भी देखने को मिल जाते हैं,
जैसे धरती कहीं ऊंची-नीची होती है,
जैसे आकाश के ऊपर बादल छा जाते हैं,
उसी प्रकार कभी-2 कुछ एक मां-बाप भी समय के हाथ की कठपुतली बन के रह जाते हैं,फिर वो अपनी संतान को उस तरह का प्यार-दुलार नहीं दे पाते,जैसा उनके बच्चे चाहते हैं।

पिता प्रेम की कहानी देखिये

1-
राजा दशरथ के चार पुत्र थे,जिनमें ज्येष्ठ पुत्र श्री राम थे।
महाराज को अपने चारों ही पुत्रों से अगाध प्रेम था,
जब रानी कैकेयी ने राम के लिए वनवास मांगा,तो राजा दसरथ ने उन्हें वो वरदान दे दिया।क्योंकि
"रघुकुल रीति सदा चल आयी,प्राण जाएं पर वचन न जाई" 
चूंकि राजा दशरथ जानते थे कि राम के वन जाते ही उनके प्राण निकल जाएंगे,फिर भी उन्होंने पहले अपने कुल की गरिमा का मान रखा,अपने वचन को निभाया
यही पिता के ह्रदय की विशालता होती है।
एक तरफ अपार प्रेम,दूसरी तरह उसे जाहिर भी न होने देना।।
आज भी कई घरों में ऐसी विषम परिस्थितियां सामने आ जाती है, जिनका हल पिता को ही निकालना होता है।।

2-
कंश की बहन थी देवकी,
जिनका विवाह कंश ने वशुदेव जी के साथ कर दिया था,
यूं तो कंश राक्षस था,जिसने अपने पिता को भी कारागार में डाल दिया था,किन्तु अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था।
देवकी की विदाई के समय हुई एक भविष्यवाणी ने कंश और देवकी के प्रेम में एक खाई खोदने का कार्य किया।
उस भविष्यवाणी के अनुसार देवकी वशुदेव की आठवीं सन्तान,कंश का बध करने वाली थी,इसी डर से कंश ने देवकी को मारने की ठान ली,परन्तु वशुदेव जी ने कंश से इस वादे के साथ देवकी को बचा लिया,कि वो अपनी पहली से आठवीं तक सभी सन्तान कंश को दे देंगे।
वादानुसार वशुदेब जी ने ऐसा ही किया।
आठवीं सन्तान के रूप में स्वयं भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ।
चूंकि कृष्ण विष्णु के अवतार हैं, कंश का बध करने के लिए ही धरती पर आए थे,तो उनके अनुसार ही वशुदेव जी,
कृष्ण को गोकुल लेकर गए,
भादौं की काली रात,
उस पर भी घनघोर बारिश,
जमुना भी उफान पर थी,
पर एक पिता न डरा,न डर के पीछे हटा,
जिसकी सन्तान स्वयं विधाता बनकर आये, उनकी रक्षा के लिए एक पिता ने न सिर्फ अपने प्राण संकट में डाले,अपितु अपने पुत्र की रक्षा भी की।
यही होता है पिता का प्रेम,
जो बिना कुछ कहे सबकुछ कर जाता है।

युग बदलते हैं, स्वरूप बदलते हैं,
पर भावनाएं हमेशा वही रहती हैं,
बदलता है तो सिर्फ उन्हें दर्शाने का तरीका।।
माता-पिता के प्रेम से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता,क्योंकि वो अनमोल है, इसलिए हमेशा उनका सम्मान करें,
पता नहीं कब तक का साथ ईश्वर ने आपको दिया है।।

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To Be Continued

Sunday, 7 October 2018

The Feeling Of Heart

Love, "The feeling of heart"

प्यार- जैसे ही ये शब्द हमारे कानों में सुनाई पड़ता है,तो सिर्फ एक ही खयाल दिमाग में आता है, "लड़का-लड़की का प्यार" जिसे आम बोलचाल की भाषा में चक्कर भी कहा जाता है।
इसको हम गलत भी नहीं कह सकते,क्योंकि आमतौर पर हमारे समाज में ऐसी अवधारणा ही बन गयी है।

दोस्तों प्यार जैसे विशाल शब्द का अगर इतना सूक्ष्म अर्थ होता,तो शायद ये अबतक गायब हो गया होता।
इस एक शब्द का अर्थ हर एक के जीवन में, हर एक रिश्ते के लिए अलग-अलग होता है।
प्यार को स्नेह,लगाव,आत्मीयता जैसे शब्दों से भी जाना जाता है।

आज हम आपको मां के प्यार के बारे में बताने जा रहे हैं
मां शब्द में ही इतना प्यार समाहित होता है,जितना संसार के किसी अन्य शब्द में नहीं,शायद इसीलिए हमारे धर्म में धरती को भी मां कहकर संबोधित किया गया है।
यूं तो आपने कहानी,फिल्मों के माध्यम से मां की महिमा के बारे में सुना और देखा होगा,
पर हम आपको आदिकाल से आजतक के बारे में बताएंगे।

एक प्रसंग के माध्यम से समझाते है

दोस्तों माता पार्वती और शिव जी के पुत्र थे कर्तिकेय,और गणेश जी को माता पार्वती ने अपने प्रताप से अपने छुटाए हुए उबटन से प्रकट किया था।

माता पार्वती अपने पुत्र से अगाध प्रेम करती थी,
एक वार माता स्नान करने गयीं और बाल गणेश को पहरेदारी पर खड़ा कर गयी।माता की आज्ञा थी कि बिना उनकी अनुमति के वो किसी को अंदर न आने दें।
कुछ समय बाद शंकर भगवान वहां आये और अंदर जाने लगे,गणेश जी ने उनका काफी विरोध किया।चूंकि शंकर भगवान गणेश जी से परिचित नहीं थे,इस कारण उन्होंने गणेश जी को उनके मार्ग से हट जाने को कहा,
पर बाल गणेश ने उनकी एक न सुनी,
युद्ध हुआ,जिसमें बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।
इसी बीच माता पार्वती स्नान करके वापस गयी,
गणेश जी की ये दशा देख उनका क्रोध भड़क गया,शंकर जी के लाख समझाने पर भी मां का क्रोध शान्त न हुआ,
तब गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया।
कहने का भाव ये है कि शंकर जी से अपार प्रेम करने वाली सती ने पुत्र प्रेम के आगे पति को झुका दिया।

ऐसा ही एक व्रतांत त्रेतायुग में देखने को मिलता है
माता सीता ने राजभवन से जाने के बाद कभी उसकी तरफ पलटकर नहीं देखा,
प्रभु राम से अपार प्रेम को कभी कम न होने दिया
पर जब बात उनके पुत्रों के हक की आयी,
जब बात उनके पुत्रों की पहिचान की आयी,
तो स्वयं भरी सभा में जाकर अपनी बात कही।
वो माता सीता,जिन्होंने वन जाने के समय प्रभु राम के साथ जाना उचित समझा,किसी माता से कुछ नहीं कहा,
वो माता सीता,जिन्होंने धोबी की बात पर राजभवन से जाना उचित समझा,
वो माता सीता,जिन्होंने लंका से आने के बाद अग्नि परीक्षा दी,
पर न कभी किसी से कुछ कहा, न पूछा
उन्होंने भी अपनी संतान के लिए आवाज उठाई,
यही होता है माँ का प्रेम,जो अपनी संतान के लिए किसी भी हद तक चली जाती है।।
आज के समय की मां भी बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं।
और हो भी क्यों ना,माँ अपने बच्चे को तब से प्यार करने लगती है, जब उसने अपनी संतान को देखा भी नहीं होता।
अगर घर में कोई भी चीज कम है, तो मां अपना हिस्सा भी सन्तान को दे देती है, ये अद्भुत प्रेम है, जिसे विधाता भी नहीं समझ सकते।।
ये सिर्फ इंसानों में ही नहीं जानवरों में भी देखा जा सकता है।
शायद आपको पता न हो,
बन्दर के बच्चे के मरने के बाद भी बंदरिया उसको अपने से अलग नहीं करती।
पर हम इंसान ये कभी देख ही नहीं पाते।
हम कुत्ते के बच्चों को बेचकर अपना पेट भरते हैं,
गाय, बकरी के बच्चों को बेंचकर अपना पेट भरते हैं,
हम कभी नहीं सोचते कि जब हमारा बच्चा कुछ मिनट के लिए ना दिखे तो हम पर क्या बीतती है,
उसी तरह इन जानवरों के बच्चों को हम अलग कर देते हैं,तो उन पर क्या बीतती होगी?
सोचियेगा जरूर कि क्यों हम अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता बांध लेते हैं,
क्यों हम जीभ के स्वाद के लिए मासूम जीवो की,उनके बच्चों की हत्या कर देते हैं?
सोचिए और रोकिये।।
            To be continued


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धन्यवाद🙏


अवधपुरी दर्शन को जाऊँ

खुश हूँ मैं बहुत सुनो खुशी का तुमको राज बताऊँ आये हैं अक्षत अवधपुरी दर्शन को जाऊँ सुनो अवधपुरी में आज सभी है देव पधारे शिव इंद्र यक्ष गंधर्व...