कलम और दिमाग का वार्तालाप
आज मैंने जब लिखना चाहा
कलम बोली कुछ ऐसा लिख दे
मिट जाए सरहदें नफरत की
प्यार का खत कुछ ऐसा लिख दे
बोला तभी दिमाग मेरा
कब तक सच को झुठलायेगी
गंगा जमुनी तहजीब नाम पर
कब तक झूठ लिखायेगी
बोली कलम सुनो भाई अब ये
मैं नफरत नहीं सिखाती हूँ
अरुंधति की तरह कभी ना
समाज को मैं भड़काती हूँ
मैं तो हूँ सीधी सच्ची सी
कोई चाल कभी ना चलती हूँ
लिखने वाला चाहे प्यार लिखे
मैं तो उस समय भी घिसती हूँ
बोला ये सुनकर दिमाग मेरा
ये बात सही तुम बोली हो
खुरापात दिमाग ही करता है
तुम तो बाकई में भोली हो
मैं वादा तुमसे करता हूँ
अब और ना कुछ होने दूंगा
चाहे जितना हो बैर भाव
मैं आग नहीं लगने दूंगा
जागृति गुप्ता✍️
जागृति गुप्ता✍️
बहुत खूबसूरत... मदन मोहन मालवीय जी ने कहा था कि जब हिन्दू मुस्लिम एक हो जायेंगे तो भारत अपने आप तरक्की की राह पर चल पड़ेगा।
ReplyDeleteदोनों में आपस में कुछ मुद्दों पर विचार अलग अलग हैं.. लेकिन ऐसा तो सभी घरों में होता है फिर भी सदस्य एक साथ रहते हैं।
कुछ विलेन (बुद्धिजीवी) भी होते हैं लेकिन अंत में बिगाड़ कुछ नहीं पाते।
अच्छी कविता... एक अच्छे संदेश के साथ।
9/10 Marks
- Kush
बहुत बहुत धन्यवाद🙏
Deleteकुछ लोगों की आदत होती है स्वयं को सुर्खियों में रखने की,
उसके लिए वो कुछ भी करते हैं,
ऐसा ही भारत में है,वो कुछ लोग ही आग लगवाते हैं
जी
ReplyDeleteAchi poetry hai..you have Different thinking.. wanna speak with you..
ReplyDeleteखूबसूरत लेखन शैली।👏👏
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