Tuesday, 4 December 2018

4th Part The Feeling Of Heart

Love,"The Feeling Of Heart"

लव द फीलिंग ऑफ हार्ट का ये चौथा पोस्ट है,
जैसा कि प्रत्येक अंक में बताया कि प्यार कोई ढाई अक्षर का लिखा,पढ़ा या कहा गया शब्द नहीं है,
ये वो फीलिंग है जिसे बेजुबान जता सकता है,अंधा व्यक्ति भी महसूस कर सकता है,
यहां तक कि जानवर भी इंसान के प्यार को समझते हैं,जताते हैं,
हले व दूसरे भाग में आपने क्रमशः माता के प्यार व पिता के प्यार के बारे में जाना।जहां माता की तुलना धरती व पिता की तुलना आकाश से की गई है।माँ-बाप अपनी पूरी जिंदगी अपनी औलाद को पढाने औऱ काबिल बनाने में लगा देते हैं।वहीं तीसरे भाग में आपने भाई-भाई/बहिन-बहिन/भाई-बहिन के प्यार के बारे में पढ़ा।
दोस्तों आपने मेरे सभी पोस्ट्स को भरपूर प्यार दिया,इसके लिए हम आपके आभारी हैं।
आज के ब्लॉग में हम आपको पति-पत्नी के प्यार के बारे में बताएंगे।
शादी के बाद शुरू होता है इस प्यार का प्यारा सा सफर!
क्योंकि यहां आपके साथ होता है आपका हमसफ़र!!
ये प्यार का वो रिश्ता होता,जिसमें हर इंसान प्यार देखता है,
प्यार देखना चाहता है,
प्यार को महसूस करना चाहता है।
जोड़ा(pair) किसी का भी हो,
पक्षी हो,जानवर हो या फिर इंसान...हर कोई इनको साथ ही देखना चाहता है।
दोस्तों किसी भी रिश्ते में मतभेद हों तो हों,
पर मनभेद कभी नहीं होने चाहिए।।
ये एक ऐसा रिश्ता है जो दो परिवारों को जोड़ता है व नए रिश्तों की नींव रखता है।
शादी विभन्न धर्मों में,विभिन्न जातियों में,विभिन्न देशों में,विभन्न सम्प्रदाओं में अलग-अलग तरह से होती है,पर निष्कर्ष सभी का एक ही होता है,
दो लोगों का ज़िंदगी भर के लिए एक होना।
इस रिश्ते में हर कोई ये मान के चलता है,कि प्यार तो होगा ही,
और मेरा मानना है,"प्यार होना ही चाहिए"
क्योंकि असल मायने में सिर्फ यही रिश्ता,
तन,मन,धन तीनों से जुड़ता है।।
हमारे देश में 60% लोग अभी भी एक अनजान इंसान को ही अपना साथी बनाते हैं,
घर,परिवार की पसन्द को ही मान्यता देते हुए शादी के बंधन में बंधते हैं,फिर प्यार,स्नेह व भरोसे से इस रिश्ते को सींचते हैं।
इस रिश्ते में हम पति-पत्नी के प्यार को एक साथ ही लिखेंगे,
क्योंकि जो रिश्ता ही जोड़ से बनता है, उसको घटाकर या हटाकर;मेरा मतलब अलग-२ नहीं लिखा जा सकता।

पति-पत्नी का प्यार 

शादी विभिन्न धर्मों में अलग-2 रीति-रिवाजों से होती है,
पर सबसे खूबसूरती ये रिश्ता जुड़ता है,हिन्दू रीति रिवाज से।
जहां तेल,हल्दी,मेंहदी जैसे रिवाज दुल्हा व दुल्हन की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं,
वहीं जयमाला-फेरे जैसे रिवाज रंग जमा देते हैं,
फिर विदाई की रीति,
जहां से शुरू होती है,नई जिंदगी,नई प्रीति
शायद इसीलिए सदियों से चली आ रही है ये रीति।।

दोस्तों द फीलिंग ऑफ हार्ट के हर एक अंक की व्याख्या हमने रामायण के माध्यम से की है,
तो उसी श्रंखला में आगे बढ़ते हैं-
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥
जिस दिन से भगवान राम जी विवाह करके घर आये हैं, उस दिन से अयोध्या में रोज मंगलगीत व बधाई गीत गाये जा रहे हैं।
भगवान राम जी ने सीता जी को उपहार स्वरूप एक वचन दिया था,कि वो कभी दूसरी शादी नहीं करेंगे।
कुछ दिन बीते,
राम को राज्याभिषेक से पहले माता कैकेयी ने उन्हें वनवास दे दिया,सीता जी पतिव्रता स्त्री थी।
ऐसी कठिन घड़ी में ही पत्नी के प्रेम व धैर्य की परीक्षा होती है।
जो हमेशा महलों में रहीं, हमेशा सुख सुविधाओं में रहीं,
राजकुमारी बनकर रहीं, जनकदुलारी बनकर रहीं,
वो सीता माता आज पति के साथ वन जाने को तैयार हो गयीं,
यद्यपि श्री राम जी उनको चलने से मना किया,
पर जो कठिन समय में पति के साथ न चल सके,वो पत्नी नहीं हो सकती।
"जो पति के पतन में भी साथ रहे,वो पत्नी"
14साल का वनवास मिला था प्रभु राम को,
13वर्ष तक हर तरह से माता सीता,प्रभु राम के साथ रहीं।
इस दौरान प्रभु राम व लक्ष्मण जी ने कई राक्षसों का वध किया,
वन में आने के बाद,राम जी ने प्रतिज्ञा की थी,
"निश्चर हीन करूँ महि,भुज उठाये प्रण कीन"
एक दिन सुपर्णखा ने प्रभु राम से विवाह का प्रस्ताव रखा,जिसे राम जी ने ये कहकर ठुकरा दिया कि उनके साथ उनकी पत्नी जानकी हैं, वो चाहें तो लक्ष्मण जी से विवाह कर ले।
लक्ष्मण जी ने भी प्रस्ताव ठुकरा दिया,
तो वो सीता माता को मारने के लिए आगे बढ़ी,
ये देख लक्ष्मण जी ने उसके नाक कान काट दिए।
जिसका बदला लेने के लिए ,रावण ने सीता माता का हरण कर लिया।
प्रभु राम को जब ये ज्ञात हुआ कि सीता माता रावण की लंका में हैं,
तो उन्होंने हनुमान जी,सुग्रीव,अंगद व जामवंत की मदद से लंका पर आक्रमण की योजना बनाई।
चूंकि लंका जाने के लिए विशाल समुद्र को पार करना पड़ता था,
राम जी के पास न कोई विमान था,न ही मायावी सेना।
तो नल-नील की मदद से प्रभु राम ने भारत को लंका से जोड़ने के लिए पुल का निर्माण कराया,
जिसे रामसेतु के नाम से हम सभी जानते हैं।
दोस्तों इससे बढ़ा प्यार का प्रतीक दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
जो स्वयं अयोध्या के राजा हैं,
जिन्होंने पंपापुर जीतकर सुग्रीव को दे दिया,
लंका जीतकर विभीषण को दे दी,
जो चक्रवर्ती राजा हैं,
उन्होंने अपने रिश्ते को खोने नहीं दिया,
दूसरा विवाह नहीं किया,
पति का धर्म यही होता है,
पत्नी की रक्षा करना
जो कि प्रभु राम ने बखूबी निभाया।
राम जी को आदर्श इसीलिए माना गया है,
क्योंकि वो श्रेष्ठ बेटे,श्रेष्ठ भाई, श्रेष्ठ पति व श्रेष्ठ पिता हैं,
जगतपिता हैं वो।।

जो तोड़कर भी जोड़ दे है, वो हैं श्री राम
धनुष तोड़कर रिश्ता जोड़ा,
पुल बनाकर,रिश्तों के बीच पुल बांध दिया।
प्यार की डोर एक पुल की भांति ही होती है,
जो दो दिलों को जोड़े रहती है।

सत्यवान-सावित्री-

सावित्री एक राजकुमारी थी और सत्यवान लकड़हारा।
सावित्री के पिता उनके लिए योग्य वर की तलाश करके थक गए थे,तो उन्होंने सावित्री से कहा कि वो स्वयं वर चुन लें।
सावित्री इसी तलाश में निकली तो सत्यवान से बहुत प्रभावित हुईं
उनका विवाह कर दिया गया।
सत्यवान ने शादी से पहले ही बता दिया था कि उनकी आयु केवल एक साल शेष बची है,
तब भी सावित्री ने उनसे विवाह किया।
जब यमराज सत्यवान को लेने आये,
तो उन्होंने यमराज से कहा कि वो उन्हें भी साथ ले चलें,
यमराज ने उनसे मना कर दिया
ऐसे में जब सावित्री अपनी जिद पर आ गईं,तो यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस कर दिए।
ऐसे एक पत्नी का प्रेम मौत के मुंह से उसके पति को वापस ले आया।।

शिव-पार्वती-
भगवान शिव माता पार्वती से अगाध प्रेम करते हैं,
शिव अमर हैं,जबकि माता पार्वती ने हर जन्म में उन्ही का वरण किया।
शिव के गले में जो मुंडों की माला है, वो पार्वती जी के ही हर जन्म का शीश है।
माता पार्वती की मृत्यु के उपरांत,शिव जी उनके शीश को माला में लगाकर पहने रहते थे।
और जब तक माता से पुनः विवाह नहीं होता,वो समाधी में ही रहते थे।

शिव-पार्वती का प्रेम अमर है।
जयमाला सबसे पहले शिव-पार्वती ने ही डाली थी।अर्धनारीश्वर का रूप भी इसीलिए दिखाया गया है।

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धन्यवाद🙏

Saturday, 17 November 2018

भारतीय त्यौहार- दीपावली

🕯️दीपावली🕯️

दीपावली भारत में सनातन परम्परा का वो त्यौहार,जो हर तरह के व्यवहार को अपने आप में समाहित किए हुए है,फिर चाहे वो वैज्ञानिक हो या आध्यात्मिक👉
जहां एक तरफ लोग अपने घरों की सफाई,रंगाई,पुताई करते हैं; वहीं दूसरी तरफ स्वादिष्ट पकवान इसकी मिठास को कई गुना और बढ़ा देते हैं।
ये त्यौहार ऐसे समय पड़ता है,
जब वर्षा ऋतु के बाद कई तरह के विषैले कीट उतपन्न हो जाते हैं,तो दीपक की लौ से उनका खात्मा हो जाता है।
इतना ही नहीं,इस समय धान की फसल की कटाई शुरू हो जाती है,तो धान की खील से पूजा इत्यादि भी हो जाती है।।
दोस्तों हमारे हर बड़े से बड़े व छोटे से छोटे त्यौहार के पीछे एक वैज्ञानिक व आध्यात्मिक कारण अवश्य होता है।

दीपावली का आध्यात्मिक कारण- 

भगवान राम की पत्नी जानकी का हरण लंकापति रावण ने कर लिया था,हालांकि सीता माता अत्यंत साहसी,बुद्धिमान महिला थी,
यदि सीता माता चाहतीं तो रावण को स्वयं भी दंड दे सकती थी,पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
ये सीता माता के प्रताप का ही असर था कि रावण ने माता सीता को छूने का दुस्साहस नहीं किया।
सीता माता के प्रताप से राजा जनक भली भांति परिचित थे।
बचपन की बात है,माता सीता ने महाराज जनक को खीर परोसी,
राजा जनक खीर खा ही रहे थे कि तभी माता सीता की नजर खीर में पड़े तिनके पर पड़ी,तो उन्होंने उस तिनके को गुस्से से देखा,वो तिनका देखते ही जल गया।
ये बात जनक जी ने समझ ली,और माता सीता को कहा कि क्रोध में  वो किसी की तरफ न देखें,क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो उसका हस्र भी तिनके के समान ही होगा।
यदि माता सीता चाहतीं तो रावण को भी अपनी क्रोधाग्नि से जला सकती थी,पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
रावण जो कि महान ज्ञानी था,
जिसने सीता स्वयंवर के समय ही राम भगवान से कह दिया था,
"हे राम तुम्हारी वाम भृकुटि में पिता मरण वनवास लिखा,
दिस दक्ष दाहिनी दक्षिण में,इस लंकापति का नाश लिखा"
ऐसा विदित होने के बावजूद वो इस सच को समझ नहीं पाया कि सीता हरण करके उसने अपने विनाश की गाथा स्वयं लिख ली थी,
यूँ तो रावण को अंगद,हनुमान,लक्ष्मण सभी परास्त कर सकते थे पर उसका मरना नियति ने राम के हाथों ही लिखा था।
परिस्थितियां वैसी ही बनती गयी,निस्तारण भी वैसे ही होता रहा।
रावण का वध श्री राम जी ने किया,
और सीता माता को,लक्ष्मण जी के साथ सकुशल वापस अयोध्या लेकर आये।।
जब अयोध्या के लोगों को पता चला कि प्रभु राम,उनके होने वाले राजा वापस आ गए हैं, तो उन्होंने इस खुशी में दीपक जलाये, तभी से प्रतिवर्ष दीवाली मनाई जा रही है।।



दीपावली का वैज्ञानिक महत्व-


सनातन धर्म में हर त्यौहार की पूजा पद्धति,भोजन सब कुछ वैज्ञानिक ढंग से ही होती है,
दीवाली पर धान की फसल की कटाई हो चुकी होती है।
चूंकि पहले मकान कच्चे होते थे,तो उनकी साफ सफाई,रंगाई पुताई कर दी जाती है,क्योंकि गांव में फसल को खेत से घर मे लाना होता है,
औऱ वर्षा के कारण,कीट-पतंग अधिक हो जाते हैं तो साफ सफाई से उनका भी खात्मा हो जाता है।
वैज्ञानिक कारणों से ही तेल के दीपक जलाने का चलन है।
सरसों का शुध्द तेल प्रदूषण को अवशोषित कर लेता है।
दूसरा कारण यह भी है,कि कुछ किसान धान के बजाय सरसों की खेती कर लेते हैं।
और हमारे देश की परंपरा रही है कि हम हर वस्तु को पहले भगवान को अर्पित करते हैं।
तो धान व सरसों की फसल की पूजा दीवाली पर हो जाती है।।
क्योंकि दीवाली के समय मौसम बदल चुका होता है,तो मिठाइयां एक दूसरे को देते हैं,
रसगुल्ला,गुलावजामुन,बालूशाही,इमरती,पूड़ी,कचौड़ी और न जाने कितने ही पकवान बनते हैं।।
हर त्यौहार के पकवान ऋतु के हिसाब से ही बनाये जाते हैं।

यही खूबसूरती है हमारे धर्म की,
यहां कोई चीज थोपी नहीं गयी,विज्ञान के हर पहलू को ध्यान में रखकर,हमारे ऋषियों ने शोध किये,
और पूजा पद्धति के माध्यम से सबकुछ आसान कर दिया।
अगर ये चीजें थोपी जातीं तो शायद हर कोई इसका पालन न करता,पर इतनी सरलता से सब कुछ आस्था से जोड़ के बताया,तो समाज के हर वर्ग ने खुशी से अपनाया।।


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To Be Continued

अवधपुरी दर्शन को जाऊँ

खुश हूँ मैं बहुत सुनो खुशी का तुमको राज बताऊँ आये हैं अक्षत अवधपुरी दर्शन को जाऊँ सुनो अवधपुरी में आज सभी है देव पधारे शिव इंद्र यक्ष गंधर्व...